दरवार लोग बड़े-बड़े रियासतदार थे। उन्होंने अपनी इच्छा से रियासत की सुख-सुविधाएँ त्याग दी थी और राष्ट्रीय आंदोलन में लग गए थे। ये रास में ही बस गए थे। इसलिए गाँधीजी ने इन्हें त्याग के उदाहरण के रूप में पेश किया।
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