मेरा छोटा- सा निजी पुस्तकालय - धर्मवीर भारती
लेखक को किताब पढ़ने व सहेजने का शौक बचपन से था। उस समय आर्य समाज का सुधारवादी आंदोलन अपने पूरे जोर पर था। उनके पिता आर्य समाज रानी मंडी के प्रधान थे और माँ ने स्त्री शिक्षा के लिए आदर्श कन्या पाठशाला की स्थापना की। वे घर में ‘सत्यार्थ-प्रकाश’ और स्वामी दयानंद की जीवनी बड़ी रुचि से पढ़ते थे। उनकी रोमांचक कथाएँ उन्हें प्रभावित करती थीं। वह ‘बालसखा’ चमचम की कहानियाँ पढ़ते थे। उसी से उन्हें किताबें पढ़ने का शौक लगा। पाँचवी कक्षा में प्रथम आने पर अंग्रेजी की दो किताबों ने उनके लिए नई दुनिया का द्वार खोल दिया था। पिता की प्रेरणा से उन्होंने अपनी किताबों को इकट्ठा करना शुरू कर दिया था। इससे उनके निजी पुस्तकालय की शुरूआत हो गई।
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