गिल्लू - महादेवी वर्मा
सोनजूही की पीली कली की लता पुन: खिली थी अर्थात् मृत्यु के बाद पुनर्जन्म की कामना मन को संतुष्ट कर रही थी। गिल्लू को सोनजूही से लगाव था। वह उसकी सघन छाया में छिपकर बैठ जाता था। उसकी हरियाली उसके मन की भाँति थी। सोनजूही का खिलना उस लघुगात के पुन: लौटने की आशा को जाग्रत करता है। इसी कारण शायद उसकी समाधि सोनजूही की गोद में बनाई गई है।
पौधों के पुर्नप्रस्फूटन की प्रथा तो देखी गई है परंतु जीव का लौटना असंभव है फिर भी एक अपूर्ण सी कामना की झलक मन को आशा से परिपूर्ण करती है। महादेवी जी भी इसी मनोकामना से आश्वस्त दिखाई देती है।
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