गिल्लू - महादेवी वर्मा
विधाता प्रदत्त जीवन के दो पहलू हैं जीवन और मरण। जीवन खुशी का अनुभव कराता है तो मृत्यु दुख का। गिल्लू के जीवन का मार्मिक अंत हो गया। सुबह का उजाला पुन: फैलाने के लिए वह मृत्यु की गोद में समा गया था। मृत्यु का आभास वेदनापूर्ण था पारिवारिक माहौल को उसने अवसाद से भर दिया।
जिन्हें परिवार के सदस्य की भाँति पाला पोसा गया हो और जब वही छोड्कर चले जाते हैं तो जीवन को अनुभूति दुखद हो जाती है। गिल्लू भी महादेवी के लिए पारिवारिक सदस्य की भाँति था। उसके साथ उनका साहचर्यजनित लगाव था। परंतु अधूरेपन व अल्पावधि का अनुभव कराकर गिल्लू का प्रभात की प्रथम किरण के रूप में मौत की गोद में सो जाना लेखिका को हिलाकर रख गया। मृत्यु पर किसी का वश नही चलता इसी कारण सभी हाथ पर हाथ रखकर बैठने के सिवा कुछ नहीं कर सकते।
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