धर्म की आड़ - गणेशशंकर विद्यार्थी
इससे लेखक का अभिप्राय है कि स्वयं का प्रभुत्व जमाकर लोगों की नजरों में भगवान बनने से अच्छा है सच्चा मनुष्य बना जाए। मानव मात्र की सेवा के लिए जीवन लगाया जाए।
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