कीचड़ का काव्य - काका कालेलकर
लेखक ने कीचड़ में सौन्दर्य का दर्शन अनेक स्थलों पर किया है। उन्हें सूखी हुई कीचड़ ऐसी प्रतीत हुई मानो धरती पर खोपरे सुखाने के लिए डाले गए हो। उन्हें सूखी कीचड़ के ऊपर चलते हुए बगुले तथा अन्य पक्षी भी सुंदर प्रतीत हुए। अधिक सूखने पर उन्हें गायों, भैंसों, बैलों, पाडों, भेड़ों और बकरियों का चलना सुंदर प्रतीत हुआ। दो पाडों के युद्ध के कारण मची हुई हलचल को लेखक/कवि कीचड़ का सुन्दरतम दृश्य मानते हैं।
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