कीचड़ का काव्य - काका कालेलकर
मनुष्य को यह भान नहीं होता है कि जो वह अन्न खाता है, वह अन्न कीचड़ से उत्पन्न होता है। यह पता लगने पर वह शायद कीचड़ का तिरस्कार नहीं करता क्योंकि कीचड़ में ही सभी प्रकार के अन्न उत्पन्न होते है। यह दुर्भाग्य की बात है कि हम कीचड़ का तिरस्कार करते हैं।
Sponsor Area
Sponsor Area
Sponsor Area