कीचड़ का काव्य - काका कालेलकर
कीचड़ के प्रति किंसी को सहानुभूति नहीं होती क्योंकि लोग केवल ऊपरी शोभा को ही देखते हैं। वे स्थिरता के साथ विचार नहीं करते हैं। लोग कीचड़ को गंदा मानते है। उन्हें लगता है कि कीचड़ से शरीर गंदा होता है, कपड़े मैले होते हैं। किसी को भी अपने शरीर पर कीचड़ उछालना अच्छा नहीं लगता यही कारण है कि किसी को भी कीचड़ से सहानुभूति नहीं होती है।
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