कीचड़ का काव्य - काका कालेलकर
(क) पाठ-कीचड़ का काव्य, लेखक-काका कालेलकर।
(ख) अन्न कीचड़ से पैदा होता है। इस बात को न जानने के कारण मनुष्य कीचड़ का तिरस्कार करता है।
(ग) कवि मनमाने ढंग से कमल को अति सुन्दर कहकर प्रसन्नता प्रकट करते है और कीचड़ को घृणित कहकर अपमानित करते है। कवि की दृष्टि में उनकी यह भेद भावना युक्ति शून्य है अर्थात् तर्कहीन है और समझ से परे है।
(घ) कविजन कमल की प्रशंसा और मल की निन्दा करने के पीछे निम्नलिखित तर्क देते है:
- हम वासुदेव कृष्ण की पूजा करते है किन्तु उनके पिता वसुदेव की पूजा नहीं करते।
- हम हीरे को मूल्यवान समझते है किन्तु उनके स्रोत कोयले, पत्थर को मूल्यवान नहीं मानते।
- हम मोती को गले में धारण करते है किन्तु उसे जन्म देने वाली सीपी को गले में धारण नहीं करते।
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