तुम कब आओगे अतिथि - शरद जोशी
दूसरे दिन मन में आया कि बस इस अतिथि को अब और अधिक नहीं झेला जा सकता।
- तीसरे दिन उसका देवत्व समाप्त हो गया वह राक्षस दिखाई देने लगा।
- चौथे दिन मुस्कान फीकी पड़ गई। बातचीत रूक गई। डिनर की बजाय खिचड़ी, बन गई। मन में आया कि उसे ‘गेट आउट’ कह दिया जाए।
Sponsor Area
Sponsor Area
Sponsor Area