दुःख का अधिकार - यशपाल
‘दुःख का अधिकार’ शीर्षक अत्यन्त सटीक है। सम्पूर्ण कथावस्तु दो वर्गो का प्रतिनिधित्व करती है पहला शोषित वर्ग है जिसके शोषण का समाज को अहसास नहीं है और दूसरा शोषक वर्ग, जिसका दुख लोगों के हृदय तक पहुंचता है और आँखों से आँसू बहने लगते हैं। गरीब के दुःख से लोग सर्वथा वंचित रहते है। उसके जीवन की कठिनाईयों को समझना नहीं चाहते। शोक या गम के लिए उसे सहूलियत नहीं देना चाहते दुखी होने को भी एक अधिकार मानते हैं। दुःख मनाने का अधिकार भी केवल संपन्न वर्ग को है। दुःख तो सभी को होता है, पर संपन्न वर्ग इस दुःख का दिखावा करता है, गरीब को कमाने खाने की चिन्ता दम नहीं लेने देती। अत: शीर्षक उपयुक्त ही है।
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