दुःख का अधिकार - यशपाल

Question

निन्नलिखित प्रशनों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए-
पोशाक हमारे लिए कब बंधन और अड़चन बन जाती है?

Answer

जब भी कोई ऐसी परिस्थितियाँ आती है कि किसी दुखी व्यक्ति को देखकर व्यथा और दुख का भाव उत्पन्न होता है हमें उसके दुख का कारण जानने के लिए उसके समीप बैठने में हमारी पोशाक बंधन और अड़चन बन जाती है। उत्तम पोशाक हमें नीचे झुकने नहीं देती। ये हमें अमीरी का बोध कराती है। मानव-मानव के बीच दूरियां बढ़ाने का काम पोशाक करती है। ये पोशाक ही नियमों का उल्लंघन करती है। यदि हम निचली श्रेणियों के दुख को कम करके उन्हें दिलासा देना चाहते है तो ये पोशाक उसके लिए अड़चन बन जाती है।

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Some More Questions From दुःख का अधिकार - यशपाल Chapter

निन्नलिखित प्रशनों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए-
पोशाक हमारे लिए कब बंधन और अड़चन बन जाती है?

(क) निन्नलिखित प्रशनों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए-
लेखक उस स्त्री के रोने का कारण क्यों नहीं जान पाया?

(क) निन्नलिखित प्रशनों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए-
भगवाना अपने परिवार का निर्वाह कैसे करता था?

(क) निन्नलिखित प्रशनों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए-
लड़के की मृत्यु के दूसरे ही दिन बुढ़िया खरबूज़े बेचने क्यों चल पड़ी?

(क) निन्नलिखित प्रशनों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए-
बुढ़िया के दु:ख को देखकर लेखक को अपने पड़ोस की सभ्रांत महिला की याद क्यों आई?

(ख) निम्नलिखित प्रशनों के उत्तर (50-60 शब्दों मे) लिखिए:
बाज़ार के लोग खरबूज़े बेचनेवाली स्त्री के बारे में क्या-क्या कह रहे थे? अपने शब्दों में लिखिए।



(ख) निम्नलिखित प्रशनों के उत्तर (50-60 शब्दों मे) लिखिए:
पास-पड़ोस की दुकानों से पूछने पर लेखक को क्या पता चला?

(ख) निम्नलिखित प्रशनों के उत्तर (50-60 शब्दों मे) लिखिए:
लड़के को बचाने के लिए बुढ़िया माँ ने क्या-क्या उपाय किए?

(ख) निम्नलिखित प्रशनों के उत्तर (50-60 शब्दों मे) लिखिए:
लेखक ने बुढ़िया के दुःख का अंदाज़ा कैसे लगाया?

(ख) निम्नलिखित प्रशनों के उत्तर (50-60 शब्दों मे) लिखिए:
इस पाठ का शीर्षक ‘दुःख का अधिकार’ कहाँ तक सार्थक है? स्पष्ट कीजिए?