दोहे - रहीम
रहीम जी लोगों को अपने मन की पीड़ा दूसरों को न बताने का उपदेश देते हुए कहते हैं कि अपने मन के दुख को मन में ही रखना चाहिए। किसी के सामने प्रकट नहीं करना चाहिए। क्योंकि लोग सुनकर मजाक उड़ाते हैं। दूसरों के दुखों को कोई बाँटना नहीं चाहता। अर्थात् दूसरों के दुख सुनना लोगों की आदत नहीं है। वे उसका मजाक ही उड़ाते है। उसके दुख में सहयोग नहीं देना चाहते।
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