अकाल ने कलकत्ता की आम जनता को अधिक प्रभावित किया, सड़कों पर लोगों की लाशें बिछी थीं और दूसरी ओर अभिजात्य वर्ग था जिस पर अकाल या लोगों के दुख-दर्द का कोई असर ही न था। वह अपनी ही विलासिता में मस्त था।
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