अंतिम दौर-एक
टैगोर कोई राजनीतिज्ञ नहीं थे। वे एक संवेदनशील व्यक्ति थे। उन्होंने अपना जीवन देश हेतु समर्पित किया। बंगाल के स्वदेशी आंदोलनों में उन्होंने बढ़-चढ़कर भाग लिया। ब्रिटिश सरकार के पूर्णतया विरोधी थे। अमृतसर के हत्याकांड के बाद उन्होंने सरकार को अपनी ‘सर’ की उपाधि भी लौटा दी। वे बाहर के देशों के ज्ञान को भारत में लाने व भारत के ज्ञान को विदेशों में फैलाने में भी सक्षम हुए। उनका मस्तिष्क उपनिषदों के ज्ञान से ओत-प्रोत था। उन्होंने अपने जीवन में लोगों को संकीर्ण भावनाओं से बाहर निकाल मानवता का संदेश दिया।
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