नीचे लिखे गद्यांश को पढ़िए और पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए- ”तू समझती नहीं।” गवरा हँसकर बोला. “कपड़े पहन-पहनकर जाड़ा-गरमी-बरसात सहने की उनकी सकत भी जाती रही है। ... और इस कपड़े में बड़ा लफड़ा भी है। कपड़ा पहनते ही पहननेवाले की औकात पता चल जाती हैं ... आदमी-आदमी की हैसियत में भेद पैदा हो जाता है।”