टोपी
एक मज़दूर था जो मकान बनाने का काम करता था। उसके मालिक ने एक दिन उसके द्वारा थोड़ा-सा सही कार्य न करने पर पूरे दिन की मज़दूरी काट ली, जबकि उसे सौ रुपए प्रतिदिन के हिसाब से मिलते थे। उस दिन वह बेचारा बहुत परेशान था। वह मेरे घर के पास ही रहता था। इसलिए उसके रोते बच्चे को देखकर मैं पूछ ही बैठा कि बच्चा इतना क्यों रो रहा है? उसने मुझे बात बताई और कहा कि आज उसे मजदूरी नहीं मिली। घर में खाना खाने को पैसे नहीं। में तो ताजा कमाता हूँ और ताजा ही खाता हूँ। में अब कहाँ से कुछ खाने को लाऊँ वह बेचारा अपने-आप में पछतावा कर रहा था। उसकी आँखें आँसुओं से भरी थीं। ऐसे में वह मालिक को भी भला-बुरा कह रहा था। लेकिन वह लाचार था क्योंकि अगले दिन फिर उसे वहीं काम करने जाना था।
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