यह सबसे कठिन समय नहीं
प्रतीक्षा करने वाला सदा स्वजन ही होता है। जब हम विद्यालय से घर जाते हैं या शाम को खेल के मैदान में डूबता सूरज यह संदेश देता है कि घर जाना चाहिए, तो मन में केवल एक ही भाव उठता है कि माँ प्रतीक्षा कर रही होंगी। माँ सदा चाहती है कि स्कूल से बच्चे समय पर घर आएँ, मैदान में खेलते हुए दिन ढलने लगे तो वे घर आ जाएं। वास्तव में वह अपनी नजरों से बच्चों को दूर नहीं करना चाहती। सदा अपना स्नेह और प्रेम उन पर बनाए रखना चाहती है। यदि किसी दिन मां घर पर न हो तो हमारा मन ही नहीं लगता। सिर्फ माँ की याद ही सताती रहती है। हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि हमारी प्रतीक्षा सदा वही करता है, जो हमें सबसे अधिक प्रेम करता है।
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