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Hindi Writing Skill

Question
CBSEHIHN10002892

दिए गए संकेत-बिन्दुओं के आधार पर किसी एक विषय पर लगभग 80 − 100 शब्दों में एक अनुच्छेद लिखिए :

(क) महँगाई के बढ़ते कदम

• कारण
• प्रभाव
• दूर करने के उपाय


(ख) मानवता − सबसे श्रेष्ठ धर्म

• मानवता क्या है?
• महापुरुषों का उल्लेख
• लाभ


(ग) बढ़ता आतंकवाद

• कारण और रुप
• विश्व-स्तर पर प्रभाव
• दूर करने के सुझाव

Solution

 (क)महँगाई के बढ़ते कदम
जमाखोरी, अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में मंदी, मौसम की मार इत्यादि कारण महँगाई को बढ़ाते हैं। इनके प्रभाव से वस्तुओं की कीमतों पर उछाल आ जाता है और महँगाई बढ़ जाती है। आज खान-पान, वस्त्रों, घरेलू समानों, रेल-टिकटों, हवाई जहाज़ यात्रा, और पेट्रोल-डीजल की कीमतों में वृद्धि दिखाई दे रही हैं। इससे सबसे अधिक प्रभावित आम-आदमी होता है। आमदनी का दायरा सीमित है परन्तु महँगाई का असीमित। इससे लोगों के जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। खाने तथा अन्य सामानों पर वृद्धि उनके जीवन को कठिन बना देती है। भुखे मरने तक की नौबत आ जाती है। लोगों को घर चलाने के लिए अन्य साधनों को तलाशना पड़ता है। सरकार को चाहिए कि वस्तुओं तथा खाने-पीने के सामानों की जमाखोरी को रोके। देश की आर्थिक व्यवस्था को मज़बूत बनाएँ, जिससे अंतराराष्ट्रीय बाज़ार में उत्पन्न मंदी से देश को बचाया जा सके। मौसम के प्रभाव से बचने के लिए पहले से ही आवश्यक कदम उठाएँ जाएँ।

 

(ख)मानवता − सबसे श्रेष्ठ धर्म
दूसरे प्राणियों के प्रति सेवाभाव, कल्याण की भावना और परोपकार को मानवता कहा जाता है। मानवता के कारण ही हम मानव कहलाते हैं। मानवता हमें मानव मात्र से नहीं अपितु संसार के हर प्राणी से प्रेम करना सिखाती है। इतिहास में ऐसे अनेक उदाहरण विद्यमान हैं, जिन्होंने मानवता की सेवा के लिए अपना जीवन न्योछावर कर दिया। इसमें कर्ण, ऋषि दधीचि, राजा उशीनर, मदर टेरेसा, महात्मा गाँधी का नाम उल्लेखनीय हैं। मानवता ऐसा भाव है, जिसमें हानि के स्थान पर लाभ ही लाभ हैं। इससे मानव जाति का कल्याण होता है। प्रेम और भाईचारे का प्रसार होता है। लोगों को जीने का उद्देश्य प्राप्त होता है। आज मानवता के कारण ही यह संसार जीने योग्य है।  

(ग)बढ़ता आतंकवाद

आतंकवाद आंतरिक विद्रोह से जन्म लेता है। जब यह देश से बाहर व्यापक स्तर पर फैल जाता है, तो आतंकवाद का रूप धारण कर लेता है। अलकायदा और तालिबान गुट इसके सबसे बड़े उदाहरण है। आतंकवाद का भयानक रूप हिंसा है। आज यह विश्व के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। किसी भी देश की आर्थिक व्यवस्था और उसकी सुरक्षा पर एक सवालिए निशान की भांति है। आतंकवादी घटनाओं ने विश्व में आतंक मचाया हुआ है। विश्व में लाखों-करोड़ों बेकसूर लोग इसके शिकार हो रहे हैं। विश्व में इस विषय पर सबको एक हो जाना चाहिए और इसके लिए विश्वव्यापी प्रयास करने चाहिए। लोगों को इस विषय पर जागरूक करना चाहिए क्योंकि आतंकवादी गुट लोगों को गुमराह करके फलते-फूलते हैं।

Some More Questions From Hindi Writing Skill Chapter

Q10निम्नलिखित गद्याशं को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-   (2 + 2 + 1 =5)

खुद ऊपर चढ़ें और अपने साथ दूसरों को भी ऊपर ले चलें, यही महत्त्व की बात है। यह काम तो हमेशा आदर्शवादी लोगों ने ही किया है। समाज के पास अगर शाश्वत मूल्यों जैसा कुछ है तो आदर्शवादी लोगों का ही दिया हुआ है। व्यवहारवादी लोगों ने तो समाज को गिराया ही है।

(क) महत्त्व की बात क्या है और क्यों?

(ख) शाश्वत मूल्य क्या हैं? इन मूल्यों से समाज को क्या लाभ हैं?

(ग) समाज को पतन की ओर ले जाने वाले लोग कौन हैं?

 

निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिएः

महात्माओं और विद्वानों का सबसे बड़ा लक्षण है- आवाज़ को ध्यान से सुनना। यह आवाज़ कुछ भी हो सकती है। कौओं की कर्कश आवाज़ से लेकर नदियों की छलछल तक। मार्टिन लूथर किंग के भाषण से लेकर किसी पागल के बड़बड़ाने तक। अमूमन ऐसा होता नहीं। सच यह है कि हम सुनना चाहते ही नहीं। बस बोलना चाहते हैं। हमें लगता है कि इससे लोग हमें बेहतर तरीके से समझेंगे। हालांकि ऐसा होता नहीं। हमें पता ही नहीं चलता और अधिक बोलने की कला हमें अनसुना करने की कला में पारंगत कर देती है। एक मनोवैज्ञानिक ने अपने अध्ययन में पाया कि जिन घरों के अभिभावक ज्यादा बोलते हैं, वहाँ बच्चों में सही-गलत से जुड़ा स्वाभाविक ज्ञान कम विकसित हो पाता है, क्योंकि ज्यादा बोलना बातों को विरोधाभासी तरीके से सामने रखता है और सामने वाला बस शब्दों के जाल में फँसकर रह जाता है। बात औपचारिक हो या अनौपचारिक, दोनों स्थितियों में हम दूसरे की न सुन, बस हावी होने की कोशिश करते हैं। खुद ज्यादा बोलने और दूसरों को अनुसना करने से जाहिर होता है कि हम अपने बारे में ज्यादा सोचते हैं और दूसरों के बारे में कम। ज्यादा बोलने वालों के दुश्मनों की भी संख्या ज्यादा होती है। अगर आप नए दुश्मन बनाना चाहते हैं, तो अपने दोस्तों से ज्यादा बोलें और अगर आप नए दोस्त बनाना चाहते हैं, तो दुश्मनों से कम बोलें। अमेरिका के सर्वाधिक चर्चित राष्ट्रपति रूजवेल्ट अपने माली तक के साथ कुछ समय बिताते और इस दौरान उनकी बातें ज्यादा सुनने की कोशिश करते। वह कहते थे कि लोगों को अनसुना करना अपनी लोकप्रियता के साथ खिलवाड़ करने जैसा है। इसका लाभ यह मिला कि ज्यादात अमेरिकी नागरिक उनके सुख में सुखी होते, और दुख में दुखी।

(क) अनसुना करने की कला क्यों विकसित होती है?
(ख) अधिक बोलने वाले अभिभावकों का बच्चों पर क्या प्रभाव पड़ता है और क्यों?
(ग) अधिक बोलना किन बातों का सूचक है?
(घ) रूजवेल्ट की लोकप्रियता का क्या कारण बताया गया है?
(ङ) तर्कसम्मत टिप्पणी कीजिए- ''हम सुनना चाहते ही नहीं।''
(च) अनुच्छेद का मूल भाव तीन-चार वाक्यों में लिखिए। 

निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिएः
यादें होती हैं गहरी नदी में उठी भँवर की तरह
नसों में उतरती कड़वी दवा की तरह
या खुद के भीतर छिपे बैठे साँप की तरह
जो औचक्के में देख लिया करता है
यादें होती हैं जानलेवा खुशबू की तरह
प्राणों के स्थान पर बैठे जानी दुश्मन की तरह
शरीर में धँसे उस काँच की तरह
जो कभी नहीं दिखता
पर जब-तब अपनी सत्ता का
भरपूर एहसास दिलाता रहता है
यादों पर कुछ भी कहना
खुद को कठघरे में खड़ा करना है
पर कहना ज़रूरत नहीं, मेरी मजबूरी है।
(क) यादों को गहरी नदी में उठी भँवर की तरह क्यों कहा गया है?
(ख) यादों को जानी दुश्मन की तरह मानने का क्या आशय है?
(ग) शरीर में धँसे काँच से यादों का साम्य कैसे बिठाया जा सकता है?
(घ) आशय स्पष्ट कीजिए-
'यादों पर कुछ भी कहना
खुद को कठघरे में खड़ा करना है।' 

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिएः

संसार की रचना भले ही कैसे हुए हो लेकिन धरती किसी एक की नहीं है। पंछी, मानव, पशु, नदी, पर्वत, समंदर, आदि की इसमें बराबर की हिस्सेदारी है। यह और बात है कि इस हिस्सेदारी में मानव जाति ने अपनी बुद्धि से बड़ी-बड़ी दीवारें खड़ी कर दी हैं। पहले पूरा संसार एक परिवार के समान था अब टुकड़ों में बँटकर एक दूसरे से दूर हो चुका है।

(क) 'मानव जाति ने अपनी बुद्धि से बड़ी-बड़ी दीवारें खड़ी कर दीं'- कथन का क्या आशय है?
(ख) परिवार के टुकड़ों में बँटकर एक दूसरे से दूर होने के क्या कारण हैं?
(ग) आशय समझाइए धरती किसी एक की नहीं है।

दिए गए संकेत बिंदुओं के आधार पर निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर लगभग 100 शब्दों में अनुच्छेद लिखिएः
(क) मित्रता
•    मित्रता का महत्त्व
•    अच्छे मित्र के लक्षण
•    लाभ-हानि

(ख) दहेज प्रथा- एक अभिशाप
•    सामाजिक समस्या
•    रोकथाम के उपाय
•    युवकों का कर्त्तव्य

(ग) कम्प्यूटर
•    उपयोगी वैज्ञानिक आविष्कार
•    विविध क्षेत्रों का कंप्यूटर
•    लाभ-हानि

 

आपके नाम से प्रेषित एक हजार रु. के मनीआर्डर की प्राप्ति न होने का शिकायत पत्र अधीक्षक, पोस्ट आफिस को लिखिए। 

विद्यालय में आयोजित होने वाली वाद-विवाद प्रतियोगिता के लिए एक सूचना लगभाग 30 शब्दों में साहित्यिक क्लब के सचिव की ओर से विद्यालय सूचना पट के लिए लिखिए। 

खाद्य-पदार्थों में होने वाली मिलावट के बारे में मित्र के साथ हुए संवाद को लगभग 50 शब्दों में लिखिए। 

अपने पुराने मकान के बेचने संबंधी विज्ञापन का आलेख लगभग 25 शब्दों में तैयार कीजिए। 

निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए – 

चरित्र का मूल भी भावों के विशेष प्रकार के संगठन में ही समझना चाहिए। लोकरक्षा और लोक–रंजन की सारी व्यवस्था का ढाँचा इन्हीं पर ठहराया गया है। धर्म–शासन, राज–शासन, मत–शासन – सबमें इनसे पूरा काम लिया गया है। इनका सदुपयोग भी हुआ है और दुरुपयोग भी। जिस प्रकार लोक–कल्याण के व्यापक उद्देश्य की सिद्धि के लिए मनुष्य के मनोविकार काम में लाए गए हैं उसी प्रकार संप्रदाय या संस्था के संकुचित और परिमित विधान की सफलता के लिए भी। सब प्रकार के शासन में – चाहे धर्म–शासन हो, चाहे राज–शासन, मनुष्य–जाति से भय और लोभ से पूरा काम लिया गया है। दंड का भय और अनुग्रह का लोभ दिखाते हुए राज–शासन तथा नरक का भय और स्वर्ग का लोभ दिखाते हुए धर्म–शासन और मत–शासन चलते आ रहे हैं। इसके द्वारा भय और लोभ का प्रवर्तन सीमा के बाहर भी प्राय: हुआ है और होता रहता है। जिस प्रकार शासक–वर्ग अपनी रक्षा और स्वार्थसिद्धि के लिए भी इनसे काम लेते आए हैं उसी प्रकार धर्म–प्रवर्तक और आचार्य अपने स्वरूप वैचित्र्य की रक्षा और अपने प्रभाव की प्रतिष्ठा के लिए भी। शासक वर्ग अपने अन्याय और अत्याचार के विरोध की शान्ति के लिए भी डराते और ललचाते आए हैं। मत–प्रवर्तक अपने द्वेष और संकुचित विचारों के प्रचार के लिए भी कँपाते और डराते आए हैं। एक जाति को मूर्ति–पूजा करते देख दूसरी जाति के मत–प्रवर्तकों ने उसे पापों में गिना है। एक संप्रदाय को भस्म और रुद्राक्ष धारण करते देख दूसरे संप्रदाय के प्रचारकों ने उनके दर्शन तक को पाप माना है।

(क) लोकरंजन की व्यवस्था का ढाँचा किस पर आधारित है ? तथा इसका उपयोग कहाँ किया गया है ?
(ख) दंड का भय और अनुग्रह का लोभ किसने और क्यों दिखाया है ?
(ग) धर्म–प्रवर्तकों ने स्वर्ग–नरक का भय और लोभ क्यों दिखाया है ?
(घ) शासन व्यवस्था किन कारणों से भय और लालच का सहारा लेती है ?
(ङ) संप्रदायों–जातियों की भिन्नता किन रूपों में दिखाई देती है ?
(च) प्रतिष्ठा और लोभ शब्दों के समानार्थक शब्द लिखिए।