भारत जैसे देशों के लिए सोवियत संघ के विघटन के क्या परिणाम हुए?
भारत के सोवियत संघ से संबंध हमेशा से ही मैत्रीपूर्ण रहे हैं। इस में कोई दो राहें नहीं कि सोवियत संघ के विघटन से विश्व राजनीति में महत्वपूर्ण परिवर्तन आए। उसके पश्चात विश्व में केवल अमेरिका ही एकमात्र महाशक्ति के रूप में सामने आया। इसी कारण से उसने भारत तथा अन्य विकासशील देशों को कई प्रकार से प्रभावित करना आरंभ कर दिया। इन देशों की यह मजबूरी बन गई कि वे अपने विकास के लिए अमेरिका से धन तथा सैन्य समान प्राप्त करें।
इतना ही नहीं सोवियत संघ के विघटन के पश्चात अमेरिका का विकासशील देशों जैसे अफगानिस्तान ईरान तथा इराक में अनावश्यक हस्तक्षेप बढ़ गया था। विश्व के कई महत्वपूर्ण संगठन विश्व बैंक तथा अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष आदि पर अमेरिकी प्रभुत्व कायम हो गया था। जिसके कारण भारत जैसे देशों को इनसे सहायता लेने के लिए अमेरिकन नीतियों का ही समर्थन करना पड़ा। इसके परिणाम स्वरुप सोवियत संघ के साथ उनके रिश्ते में कुछ कमियाँ आ गई।
सोवियत संघ विघटन के बाद एक शंका यह उठने लगी कि अब भारत व सोवियत संघ के संबंधों का क्या होगा? क्या ये दोनों देश ऐसे समय में अपने संबंधों को बनाए रख पाएँगे? क्या विभाजन के बाद स्वतंत्र गणराज्य भारत के साथ संबंध कायम रख पाएँगे?
26 दिसंबर , 1991 को सोवियत संघ के विभाजन के बाद भारत व सोवियत संघ के संबंध इस प्रकार से प्रभावित हुए:
- दोनों देशों के हितों में व्यापक बदलाव आया।
- दोनों देशों ने नए वातावरण और नई दिशा में संबंधों को बढ़ाने की पहल की।
- दोनों देशों (रूस व भारत) के राज्याअध्यक्षों ने एक-दूसरे के देशों की यात्राएँ की जिससे व्यापारिक संबंधों में सहमति बनी।
- रक्षा समझौतों को संपन्न किया गया।
- 1998 में अमरीका के दबाव के बाद भी भारत व रूस ने भारत रूस 'सैन्य तकनीकी सहयोग समझौता' 2010 तक बढ़ाया।
- कारगिल संकट के समय रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने भारत की भूमिका को सराहा तथा पाकिस्तान को घुसपैठिए वापस बुलाने व नियंत्रण रेखा का सम्मान करने की सलाह दी।