आरक्षण पर आदेश का उदाहरण पढ़कर तीन विद्यार्थियों की न्यायपालिका की भूमिका पर अलग-अलग प्रतिक्रिया थी। इनमें से कोन-सी प्रतिक्रिया, न्यायपालिका की भूमिका को सही तरह से समझती है?
आपकी राय में कौन-सा विचार सबसे सही है।
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श्रीनिवास का तर्क है कि चूँकि सर्वोच्च न्यायालय सरकार के साथ सहमत हो गया है लिहाता वह स्वतंत्र नहीं है।
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अंजैया का कहना है कि न्यायपालिका स्वतंत्र हैं क्योंकि वह सरकार के आदेश के खिलाफ़ फ़ैसला सुना सकती थी। सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को उसमें संशोधन का निर्देश दिया।
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विजया का मानना हैं कि न्यायपालिका न तो स्वतंत्र है न ही किसी के अनुसार चलने वाली है बल्कि वह विरोधी समूहों के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाती है। न्यायालय ने इस आदेश के समर्थकों और विरोधियों के बीच बढ़िया संतुलन बनाया।
B.
अंजैया का कहना है कि न्यायपालिका स्वतंत्र हैं क्योंकि वह सरकार के आदेश के खिलाफ़ फ़ैसला सुना सकती थी। सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को उसमें संशोधन का निर्देश दिया।
अंजैया द्वारा व्यक्त विचार सही है।
भारत में न्यायपालिका स्वतंत्र है । सर्वोच्च न्यायालय ने कई मामलों में सरकार के आदेश के खिलाफ आदेश दिया है। नवंबर 1992 में सुप्रीम कोर्ट ने बहुमत से फैसला किया की भारत सरकार का आदेश अवैध नहीं है, परन्तु सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार से उसके मूल आदेश में कुछ संशोधन करने को कहा। उसने कहा की पिछड़े वर्ग के अच्छी स्थिति वाले लोगों को आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी माना कि सभी आरक्षणों का अधिकतम आकार 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए।



