राजनीतिक दलों के सामने क्या चुनौतियाँ है?
राजनीतिक दलों के सामने निम्नलिखित चुनौतियाँ है-
(i) राजनीतिक दलों के सामने सबसे पहली चुनौती है कि लोकतंत्र में केवल कुछ नेताओं के हाथों में ही सारी ताकत है। लोकतंत्र में यह आवश्यक है कि कोई भी फैसला लेने से पहले कार्यकर्ताओं से परामर्श लिया जाए लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है। राजनीतिक दलों में नियमित बैठक नहीं होती और न ही इसके आंतरिक चुनाव होते है। वे कार्यकर्ताओं से सूचना साँझा नहीं करते और इसका हानिकारक परिणाम जनता को भुगता पड़ता है।
(ii) अधिकतर नेता राजनीति में ऊँचे-ऊँचे पदों पर अपने करीबी रिश्तेदारों और नजदीकी सदस्यों को स्थान दे देते है। इस प्रकार यह स्थिति सामान्य कार्यकर्ताओं के साथ अन्याय कि स्थिति होती है। यह पूरी तरह से लोकतंत्र के विरुद्ध है। कई बार देखा जाता है कि अनुभवहीन लोग ऊँचे ऊँचे पड़ाव पर आसीन होते है। भारत की राजनीति में यही प्रवृति प्रचलित है।
(iii) कई बार राजनितिक दल चुनाव जितने के लिए धन और बल का भी प्रयोग करते है। इसके लिए वे अपराध और अपराधिकों का भी सहरा लेने से भी परहेज नहीं करते। साथ ही वे किसी धनवान व्यक्ति और कंपनी के प्रभाव में भी आ जाते है जिससे दल को उस व्यक्ति विशेष और कंपनी के अनुसार नीतियाँ निर्धारित करनी पड़ती है। इस तरह के कार्य लोकतंत्र के विकास को रोकते है और दल के भीतर अच्छे नेताओं के महत्व को कम करते है।
(iv) आज के युग में दलों के बीच वैचारिक अंतर कम होता जा रहा है। दलों के बीच विकल्प हीनता की स्थिति है। भिन्न-भिन्न पार्टियों की नीति व सिद्धांत भिन्न-भिन्न होती है, परन्तु आजकल बड़ी राजनीतिक पार्टियों की नीतियों में बहुत कम अंतर रह गया है। जैसे कांग्रेंस, समाजवादी पार्टी तथा बहुजन समाजवादी पार्टी आदि की नीतियों में कोई विशेष अंतर नहीं है। अतः जनता के लिए विकल्पों का चुनाव सीमित है।