अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक विनिमयों में तीन तरह की गतियों या प्रभावों की व्याख्या करें। तीनों प्रकार की गतियों के भारत और भारतीयों से संबंधित एक-एक उदाहरण दे और उनके बारे में संक्षेप में लिखें।
अर्थशास्त्रीयों ने अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक विनिमय में तीन तरह की गतियों या 'प्रवाहों' का वर्णन किया है। इनका वर्णन इस प्रकार है-
(i) व्यापार का प्रवाह
(ii)श्रम का प्रवाह
(iii) पूँजी प्रवाह
व्यापार का प्रवाह: 18 वी शताब्दी के अंतिम दशकों में ब्रिटेन की जनसंख्या तेज़ी से बढ़ने लगी थी । नतीजा, देश में भोजन की माँग भी बढ़ी। जैसे-जैसे शहर फैले और उद्योग बढ़ने लगे, कृषि उत्पादों की माँग भी बढ़ने लगी। कृषि उत्पाद भी महँगे होने लगे। अंग्रेजों ने अपनी कृषि उत्पादों की माँग को पूरा करने के लिए व्यापार प्रवाह के माध्यम से भारत से इंग्लैंड में खाद्यान्नों और कपास का आयत किया। बहुत छोटे पैमाने पर ही सही लेकिन इस तरह के नाटकीय बदलाव हम अपने यहाँ पंजाब में भी देख सकते हैं। ब्रिटिश सरकार ने अर्द्ध-रेगिस्तानी परती भूमि को उपजाऊ बनाने के लिए नहरों का जाल बिछा दिया ताकि निर्यात के लिए गेहूँ और कपास की कृषि की जा सके। नई नहरों की सिंचाई वाले क्षेत्रों में पंजाब के अन्य स्थानों के लोगों को लाकर बसाया गया। उनकी बस्तियों को केनाल कॉलोनी(नहर बस्ती) कहा जाता था।
श्रम का प्रवाह: 19 वीं सदी में भारत और चीन के लाखों मज़दूरों के खदानों बगानों और सड़क व रेलवे निर्माण परियोजनाओं में कार्य करने के लिए दूर-दूर के देशों में ले जाया जाता था। भारतीय अनुबंदित श्रमिकों को विशेष प्रकार के अनुबंध के अंतर्गत ले जाया जाता था। इन अनुबंधों में यह शर्त होती थी कि यदि मज़दूर अपने मालिक के बागानों से 5 साल काम कर लेंगे तो वह स्वदेश लौट सकते हैं। भारत के अधिकतर अनुबंधित श्रमिक पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य भारत और तमिलनाडु के सूखे लाखों से जाते थे।
पूंजी का प्रवाह: विश्व बाजार के लिए खाद्य पदार्थ व फसलें उगाने के लिए पूँजी की आवश्यकता थी। इसके लिए छोटे किसान महाजनों एवं सूदखोरों से कर्ज लेते थे। इसके लिए ये लोग या तो अपनी पूँजी लगाते थे या यूरोपीय बैंकों से क़र्ज़ लेते थे। उनके पास दूर-दूर तक पहुँचाने की एक व्यवस्थित पद्धति होती थी। यहाँ तक कि उन्होंने व्यवसायिक संगठनों और क्रियाकलापों के देशी स्वरुप भी विकसित कर लिए थे।



