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जीव जनन कैसे करते है
ऋतुस्त्राव क्यों होता है?
आवर्त चक्र (लैंगिक चक्र) के अंतिम दिन से पहले 14वें दिन अंडाशय से अंड मोचित होता है। अंडाशय की भित्ति निषेचित अंड को ग्रहण करने के लिए स्वयं को तैयार करती है। गर्भाशय की भित्ति मोटी होती चली जाती है, इसमें प्रचुर रक्त कोशिकाएँ विद्यमान होती हैं।
लेकिन निषेचन न होने की अवस्था में इस पर्त की आवश्यकता नहीं रहती, इसलिए यह पर्त धीरे-धीरे टूटकर योनि मार्ग से रुधिर एवं म्यूकस के रूप में निष्कासित होती है। भित्ति में उपस्तिथ रक्त कोशिकाएँ फट जाती हैं, इसलिए रक्तस्त्राव होता है जिसमें रक्त के साथ-साथ ऊतक तथा बहुत सारा पानी भी होता है इसे ऋतुस्त्राव कहते हैं। यह 2 से 8 दिन तक जारी रहता है।
इसके पश्चात गर्भाशय की भित्ति निषेचित अंड को ग्रहण करने के लिए तैयारी करने लगती है।
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