मनुष्य में दोहरा परिसंचरण की व्याख्या कीजिए। यह क्यों आवश्यक है?
दोहरा परिसंचरण- विऑक्सिजनित रक्त शरीर के विभिन्न भागों से महाशिराओं द्वारा दाएँ अलिंद में इकट्ठा किया जाता है। जब दायाँ अलिंद सिकुड़ता है तो यह दाएँ निलय में चला जाता है। जब दायाँ निलय सिकुड़ता है तो यह विऑक्सिजनित रक्त फुफ्फुस धमनी के माध्यम से फुस्फुस (फेफड़ों) में चला जाता है, जहाँ पर गैसों का विनिमय होता है। यह रक्त ऑक्सिजनित होकर फुफ्फुस शिराओं के द्वारा वापिस ह्दय में बाएँ अलिंद में आ जाता है। जब बायाँ अलिंद सिकुड़ता है तो यह ऑक्सिजनित रक्त बाएँ निलय में आता है। जब बायाँ निलय सिकुड़ता है तो यह रक्त शरीर के विभिन्न भागों में महाधमनी के माध्यम से वितरित किया जाता है।
अत: वही रक्त ह्दय चक्र में ह्दय में से दो बार गुज़रता है, एक बार ऑक्सिजनित तथा दूसरी बार विऑक्सिजनित रक्त के रूप में। इसी को दोहरा परिसंचरण कहते हैं।
महत्व- हमारा ह्दय चार कोष्ठकों से मिलकर बना है इसके ही कारण से हमारे शरीर के सभी भागों को ऑक्सिजनित रक्त वितरित किया जाता है। इसके कारण से ही कोशिकाओं व ऊतकों में ऑक्सीजन का वितरण सही आवश्यकता अनुसार बना रहता है।