श्रम विभाजन की दृष्टि भी जाति-प्रथा गंभीर दोषों से युक्त है। तर्क सहित स्पष्ट कीजिए।
श्रम-विभाजन की दृष्टि से भी जाति-प्रथा गंभीर दोषो से युक्त है। इस विषय में निम्नलिखित तर्क दृष्टव्य हैं-
1. जाति-प्रथा का श्रम विभाजन मनुष्य की स्वेच्छा पर निर्भर नहीं रहता।
2. इसमें मनुष्य की व्यक्तिगत भावना और रुचि का कोई स्थान अथवा महत्त्व नहीं होता।
3. जाति-प्रथा द्वारा श्रम विभाजन मनुष्य को दुर्भावना से ग्रस्त कर चालू काम करने व कम काम करने के लिए प्रेरित करती है।
4. जाति-प्रथा के कारण श्रम-विभाजन होने पर निम्न कार्य समझे जाने वाले कार्य को करने वाले श्रमिक को भी हिंदू समाज घृणित एवं त्याज्य समझता है।