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गजानन माधव मुक्तिबोध

Question
CBSEENHN12026214

सचमुच मुझे दंड दो कि भूलूँ मैं भूलूँ मैं

तुम्हें भूल जाने को

दक्षिण ध्रुवी अंधकार अमावस्या

शरीर पर, चेहरे पर, अंतर में पा लूँ मैं

झेलूँ मैं, उसी में नहा लूँ मैं

इसलिए कि तुमसे ही परिवेष्टित आच्छादित

रहने का रमणीय यह उजेला अब

सहा नहीं जाता है।

  • जिसे कवि ने ‘सहर्ष स्वीकार’ था, उसे ही क्यों भूल जाना चाहता है?

  • कवि ने व्यक्तिगत सदंर्भ में किस स्थिति को ‘अमावस्या’ कहा है?

  • ‘मैं तुम्हें भूल जाना चाहता हूँ’ - यह कहने के लिए कवि ने क्या युक्ति अपनाई है?

  • आशय स्पष्ट कीजिए:

    यह उजेला अब सहा नहीं जाता है।

Solution

A.

जिसे कवि ने ‘सहर्ष स्वीकार’ था, उसे ही क्यों भूल जाना चाहता है?

Some More Questions From गजानन माधव मुक्तिबोध Chapter

कवि ने इसे क्यों स्वीकार कर लिया है?

यह कविता क्या प्रेरणा देती है?

प्रस्तुत पक्तियों की सप्रंसग व्याख्या करें

गरबीली गरीबी यह, ये गंभीर अनुभव सब

यह विचार-वैभव सब

दृढ़ता यह, भीतर की सरिता यह अभिनय सब

मौलिक है, मौलिक है,

इसलिए कि पल-पल में

जो कुछ भी जागृत है, अपलक है-

संवेदन तुम्हारा है!!

कवि किस-किसको मौलिक मानता है और क्यों?

इन पर किसकी संवेदना का प्रभाव है?

इस कविता पर किस बाद का प्रभाव झलकता है?

प्रस्तुत पक्तियों की सप्रंसग व्याख्या करें

जाने क्या रिश्ता है, जाने क्या नाता है

जितना भी उँडेलता हूँ, भर-भर फिर आता है

दिल में क्या झरना है?

मीठे पानी का सोता है

भीतर वह, ऊपर तुम

मुस्काता चाँद ज्यों धरती पर रात-भर

मुझ पर त्यों तुम्हारा ही खिलता वह चेहरा है।

कवि अपने दिल की तुलना किससे करता है और क्यों?

ऊपर कौन है?

कवि किससे प्रभावित है?