‘बादल राग’ कविता के आधार पर निराला जी की भाषा-शैली की समीक्षा कीजिए।
‘बादल राग’ कविता भाषा-शैली की दृष्टि से निराला की प्रतिनिधि रचना कही जा सकती है। इसमें आद्यात भाषा का। ओज गुण विद्यमान है। समासपद संयुक्त-व्यंजन तथा कठोर वर्णो के उपयोग में ओज गुण का निर्वाह हुआ है। उनके शब्द-चयन में शक्ति और प्राणवत्ता है। वर्णों और कहीं-कहीं शब्दों की आवृत्ति में जहाँ ओजस्विता है, वहाँ भाषा व छंद को अद्भुत गति मिलती है-
‘अशनि-पात से शायित उन्नत शत शत वीर।’
शब्द की ध्वनि और उसका नाद सौंदर्य भी अभिव्यंजना में सहायक हुआ है। शब्द अपनी ध्वनि में शब्द-चित्र सा प्रस्तुत कर देते हैं-’क्षत-विक्षत इसी अचल शरीर।’ इसी प्रकार ‘हिल-हिल, खिल-खिल’ आदि शब्दों के जोड़े अपनी ध्वनि में लहलहाती और खिली फसलों का रूप उभारते हैं।
इसमें दो प्रमुख बिंब सामने आते हैं-एक बिंब वर्षा और वज्र से आहत क्षत-विक्षत पर्वत का है और दूसरा हँसते सुकुमार पौधों का है। प्रतीक बड़े सार्थक हैं। बादल सामाजिक क्रांति का प्रतीक है। बादल का गर्जन ही क्रांति का शंखनाद है। शोषक और शोषित वर्ग के लिए क्रमश: पैक और जलज के प्रतीक उपस्थित किए गए हैं।
कवि ने मुहावरों का प्रयोग कर भाषा का चमत्कार बढ़ा दिया है। भाषा में सर्वत्र उन्मुक्तता एवं प्रबल गति है। प्रस्तुत कविता निराला जी की ओजपूर्ण एवं चित्रमय भाषा-शैली का एक अद्भुत नमूना है।