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कुँवर नारायण

Question
CBSEENHN12026128

‘कविता के बहाने’ कविता का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।

Solution

यह शंका व्यक्त की जा रही है कि यांत्रिकता के दबाव से कविता का अस्तित्व नहीं रह पाएगा। यह कविता की अपार संभावनाओं को टटोलने का अवसर देती है। यह एक ऐसी यात्रा है जो चिड़िया, फूल से लेकर बच्चों तक है। चिड़िया की उड़ान की सीमा है, फूल के खिलने के साथ उसकी परिणति निश्चित है लेकिन बच्चे के सपने असीम हैं। कविता भी शब्दों का खेल है। बच्चों के खेल के समान इसकी भी कोई सीमा या निश्चित स्थान नहीं है।

Some More Questions From कुँवर नारायण Chapter

कविता और फूलों में क्या अंतर है?

कविता बच्चों के खेल के समान कैसे है?

इस काव्यांश में कविता की क्या-क्या विशेषताएँ उभर कर सामने आती हैं?

प्रस्तुत पक्तियों का सप्रसंग व्याख्या करें?

बात सीधी थी पर एक बार

भाषा के चक्कर में

 

जरा टेढ़ी फँस गई।

 

उसे पाने की कोशिश में

 

भाषा को उलटा पलटा

 

तोड़ा मरोड़ा

 

घुमाया फिराया

 

कि बात या तो बने

 

या फिर भाषा से बाहर आए-

 

लेकिन इससे भाषा के साथ साथ

 

बात और भी पेचीदा होती चली गई।

 

कवि ने अपनी बात के बारे में क्या कहा है?

कवि ने अपनी बात के लक्ष्य को पाने के लिए क्या-क्या किया?

कवि अपने लक्ष्य को क्यों नही पा सका?

बात पेचीदा क्यों होती चली गई?

प्रस्तुत पक्तियों का सप्रसंग व्याख्या करें?

सारी मुश्किल को धैर्य से समझे बिना

मैं पेंच को खोलने के बजाए

उसे बेतरह कसता चला जा रहा था

क्यों कि इस करतब पर मुझे

साफ सुनाई दे रही थी

तमाशबीनों की शाबाशी और वाह वाह!

आखिरकार वही हुआ जिसका मुझे डर था

जो़र ज़बरदस्ती से

बात की चूड़ी मर गई

और वह भाषा में बेकार घूमने लगी!

पेंच को खोलने की बजाय कसना’ का आशय स्पष्ट करो।