-->

कुँवर नारायण

Question
CBSEENHN12026126

ज़ोर ज़बर्दस्ती से

बात की चूड़ी मर गई

और वह भाषा में बेकार घूमने लगी!

हार कर मैंने उसे कील की तरह

उसी जगह ठोंक दिया।

ऊपर से ठीक-ठाक

पर अंदर से

न तो उसमें कसाव था

न ताक़त!

बात ने, जो एक शरारती बच्चे की तरह

मुझसे खेल रही थी,

मुझे पसीना पोंछते देख कर पूछा-

“क्या तुमने भाषा को

सहूलियत से बरतना कभी नहीं सीखा?”

बात की चूड़ी कब मरती है, ‘चूड़ी मर जाने का आशय क्या है?

Solution

बात की चूड़ी मर जाने से कवि यह कहना चाहता है-बात का प्रभावहीन हो जाना। ‘उसका बेकार घूमना’ से कवि का आशय है-अभिव्यक्ति में शब्दों की कलाकारी तो बहुत हो पर उसका संदेश स्पष्ट न हो। इससे कवि यह कहना चाहता है कि जब कथ्य भाषा के शबद-जाल में उलझ जाता है तब उसका अपेक्षित प्रभाव नहीं पड़ता।

Some More Questions From कुँवर नारायण Chapter

प्रस्तुत पक्तियों का सप्रसंग व्याख्या करें?

कविता एक खिलना है फूलों के बहाने

कविता का खिलना भला फूल क्या जाने!

बाहर भीतर

इस घर, उस घर

बिना मुरझाए महकने के माने

फूल क्या जाने?

कविता एक खेल है बच्चों के बहाने

बाहर भीतर

यह घर, वह घर

सब घर एक कर देने के माने

बच्चा ही जाने!

कविता का फूलों के बहाने खिलना कैसे है?

कविता और फूलों में क्या अंतर है?

कविता बच्चों के खेल के समान कैसे है?

इस काव्यांश में कविता की क्या-क्या विशेषताएँ उभर कर सामने आती हैं?

प्रस्तुत पक्तियों का सप्रसंग व्याख्या करें?

बात सीधी थी पर एक बार

भाषा के चक्कर में

 

जरा टेढ़ी फँस गई।

 

उसे पाने की कोशिश में

 

भाषा को उलटा पलटा

 

तोड़ा मरोड़ा

 

घुमाया फिराया

 

कि बात या तो बने

 

या फिर भाषा से बाहर आए-

 

लेकिन इससे भाषा के साथ साथ

 

बात और भी पेचीदा होती चली गई।

 

कवि ने अपनी बात के बारे में क्या कहा है?

कवि ने अपनी बात के लक्ष्य को पाने के लिए क्या-क्या किया?

कवि अपने लक्ष्य को क्यों नही पा सका?

बात पेचीदा क्यों होती चली गई?