ज़ोर ज़बर्दस्ती से
बात की चूड़ी मर गई
और वह भाषा में बेकार घूमने लगी!
हार कर मैंने उसे कील की तरह
उसी जगह ठोंक दिया।
ऊपर से ठीक-ठाक
पर अंदर से
न तो उसमें कसाव था
न ताक़त!
बात ने, जो एक शरारती बच्चे की तरह
मुझसे खेल रही थी,
मुझे पसीना पोंछते देख कर पूछा-
“क्या तुमने भाषा को
सहूलियत से बरतना कभी नहीं सीखा?”
बात की चूड़ी कब मरती है, ‘चूड़ी मर जाने का आशय क्या है?बात की चूड़ी मर जाने से कवि यह कहना चाहता है-बात का प्रभावहीन हो जाना। ‘उसका बेकार घूमना’ से कवि का आशय है-अभिव्यक्ति में शब्दों की कलाकारी तो बहुत हो पर उसका संदेश स्पष्ट न हो। इससे कवि यह कहना चाहता है कि जब कथ्य भाषा के शबद-जाल में उलझ जाता है तब उसका अपेक्षित प्रभाव नहीं पड़ता।