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कुँवर नारायण

Question
CBSEENHN12026119

व्याख्या कीजिए

जोर जबरदस्ती से

बात की चूड़ी मर गई

और वह भाषा में बेकार घूमने लगी।

Solution

कुँवर नारायण की कविता ‘‘बात सीधी थी पर’ से अवतरित इन पंक्तियों मे बात के सहज बने रहने में ही उसकी सार्थकता दर्शाई है। जब हम किसी बात को असहज बना देते हैं तब वह उलझकर रह जाती है। जिम प्रकार हम किसी पेंच के कसने में जोर-जबरदस्ती करते हैं तो उसकी चूड़ी मर जाती है और फिर वह ठीक प्रकार से कसा नहीं जाता, ढीला रह जाता हे। यही स्थिति बात की है। जब किसी बात के साथ जोर-जबरदस्ती को जाती है तब बात की धार मारी जाती है। वह अपेक्षित प्रभाव उत्पन्न नहीं कर पाती। ऐसा तब होता है जब हम उसे व्यक्त करने क लिए भाषा के उपयुक्त शब्दों का प्रयोग नहीं करते। सही शब्द-प्रयोग ही बात को प्रभावी बनाता है। बलपूर्वक की गई बात महत्त्वहीन हो जाती है। इसका कोई नतीजा नहीं निकलता।

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कविता बच्चों के खेल के समान कैसे है?

इस काव्यांश में कविता की क्या-क्या विशेषताएँ उभर कर सामने आती हैं?

प्रस्तुत पक्तियों का सप्रसंग व्याख्या करें?

बात सीधी थी पर एक बार

भाषा के चक्कर में

 

जरा टेढ़ी फँस गई।

 

उसे पाने की कोशिश में

 

भाषा को उलटा पलटा

 

तोड़ा मरोड़ा

 

घुमाया फिराया

 

कि बात या तो बने

 

या फिर भाषा से बाहर आए-

 

लेकिन इससे भाषा के साथ साथ

 

बात और भी पेचीदा होती चली गई।

 

कवि ने अपनी बात के बारे में क्या कहा है?

कवि ने अपनी बात के लक्ष्य को पाने के लिए क्या-क्या किया?

कवि अपने लक्ष्य को क्यों नही पा सका?

बात पेचीदा क्यों होती चली गई?

प्रस्तुत पक्तियों का सप्रसंग व्याख्या करें?

सारी मुश्किल को धैर्य से समझे बिना

मैं पेंच को खोलने के बजाए

उसे बेतरह कसता चला जा रहा था

क्यों कि इस करतब पर मुझे

साफ सुनाई दे रही थी

तमाशबीनों की शाबाशी और वाह वाह!

आखिरकार वही हुआ जिसका मुझे डर था

जो़र ज़बरदस्ती से

बात की चूड़ी मर गई

और वह भाषा में बेकार घूमने लगी!

पेंच को खोलने की बजाय कसना’ का आशय स्पष्ट करो।

गलत कामों पर किनकी शाबासी मिलती और क्यों?