बात और भाषा परस्पर जुड़े होते हैं, किंतु कभी-कभी भाषा के चक्कर में ‘सीधी बात भी टेढ़ी हो जाती है’ कैसे?
बात और भाषा का आपस में गहरा संबंध होता है। बात का अभिप्राय स्पष्ट करने के लिए सही भाषा का प्रयोग करना चाहिए किन्तु कई बार ऐसा होता है कि हम भाषा को सहज नहीं रहने देते। हम क्लिष्ट भाषा का प्रयोग कर सीधी सरल बात को भी शब्द-जाल में उलझाकर टेढ़ी बना देते हैं। प्रत्येक शब्द का अपना विशिष्ट अर्थ होता है, भले ही ऊपर से वे समानार्थी या पर्यायवाची प्रतीत होते हों। गलत शब्द का प्रयोग बात को उलझा देता है। शब्दों के चक्कर में उलझकर भाव अपना अर्थ खो बैठते हैं।