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गजानन माधव मुक्तिबोध

Question
CBSEENHN12026195

भय’ शब्द पर सोचिए। सोचिए कि मन में किन-किन चीजों का भय बैठा है? उससे निबटने के लिए आप क्या करते हैं और कवि की मनःस्थिति से अपनी मनःस्थिति की तुलना कीजिए।

Solution

भय, डर को कहते हैं। कई बार किसी चीज के बारे में हमारे मन में भय बैठ जाता है और हम उससे बचने की कोशिश करते हैं।

मेरे मन में ‘गणित’ विषय के प्रति भय बैठा हुआ है। मुझे लगता है कि मैं गणित के प्रश्नों को कभी हल नहीं कर पाऊँगा। इस स्थिति से निबटने के लिए मैं अपने मित्र की मदद लेता हूँ। कवि की मन:स्थिति प्रिय के प्रति अतिशय प्रेमभावना को लेकर द्विविधाग्रस्त है। मेरी मन:स्थिति में किसी प्रकार की द्विविधा नहीं है, बल्कि वह एक विषय को न समझ पाने से उत्पन्न भय की स्थिति है।

Some More Questions From गजानन माधव मुक्तिबोध Chapter

यह कविता क्या प्रेरणा देती है?

प्रस्तुत पक्तियों की सप्रंसग व्याख्या करें

गरबीली गरीबी यह, ये गंभीर अनुभव सब

यह विचार-वैभव सब

दृढ़ता यह, भीतर की सरिता यह अभिनय सब

मौलिक है, मौलिक है,

इसलिए कि पल-पल में

जो कुछ भी जागृत है, अपलक है-

संवेदन तुम्हारा है!!

कवि किस-किसको मौलिक मानता है और क्यों?

इन पर किसकी संवेदना का प्रभाव है?

इस कविता पर किस बाद का प्रभाव झलकता है?

प्रस्तुत पक्तियों की सप्रंसग व्याख्या करें

जाने क्या रिश्ता है, जाने क्या नाता है

जितना भी उँडेलता हूँ, भर-भर फिर आता है

दिल में क्या झरना है?

मीठे पानी का सोता है

भीतर वह, ऊपर तुम

मुस्काता चाँद ज्यों धरती पर रात-भर

मुझ पर त्यों तुम्हारा ही खिलता वह चेहरा है।

कवि अपने दिल की तुलना किससे करता है और क्यों?

ऊपर कौन है?

कवि किससे प्रभावित है?

प्रस्तुत पक्तियों की सप्रंसग व्याख्या करें

सचमुच मुझे दंड दो कि

भूलूँ मैं

प्ले मैं

तुम्हें भूल जाने की

दक्षिण ध्रुवि अंधकार अमावस्या

शरीर पर, चेहरे पर, अंतर में पालूँ मैं

झेलूँ मैं, उसी में नहा लूँ मैं

इसलिए कि तुमसे ही परिवेष्टित आच्छादित

रहने का रमणीय यह उजेला अब

सहा नहीं जाता है।

नहीं सहा जाता है।