दिये गये काव्यांशों की सप्रसंग व्याखा करें
इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है
या मेरा जो होता-सा लगता है, होता-सा संभव है
सभी वह तुम्हारे ही कारण के कार्यों का घेरा है,
कार्यों का वैभव है
अब तक तो जिंदगी में जो कुछ था, जो कुछ है
सहर्ष स्वीकारा है
इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है,
वह तुम्हें प्यारा है।
प्रसंग: प्रस्तुत पक्तियां मुक्तिबोध की रचना ‘सहर्ष स्वीकारा है’ में से अवतरित हैं। इसमें कवि ने अपनी प्रत्येक अनुभूति, परिस्थिति और स्थिति पर अपने प्रिय की छाप का अनुभव किया है। यही कारण है कि वह प्रत्येक क्षण एवं स्थिति को सहर्ष स्वीकार कर लेता है। कवि अँधेरी गुफा के अदंर भी प्रिय के संवेदना का अनुभव करता है। कवि बताता है-
व्याख्या: हे प्रिय! मेरे जीवन में जो कुछ भी है या जो कुछ मेरा होता-सा लगता है (वह शायद मेरा हो जाए) वह सब तुम्हारे कारण ही है। मेरी जो सत्ता है, मेरी जो स्थितियाँ हैं, मेरी जो स्थितियाँ हो सकती हैं, मेरी उन्नति या अवनति की जो संभावनाएँ हैं, वे सभी तुम्हारे कारण हैं। मेरा हर्ष-विषाद, उन्नति- अवनति सदा तुम्हारे कारण हैं। मेरा हर्ष-विषाद, उन्नति- अवनति सदा तुम्हीं से जुड़ी रही हैं। हे प्रिय! मेरे जीवन में जो भी सुख-दु:ख, सफलताएँ- असफलताएँ हैं, मैंने उन्हें प्रसन्नतापूर्वक इसलिए स्वीकार किया है क्योंकि तुमने उन सबको अपना माना है, वे सब तुम्हें प्रिय हैं। जो तुम्हें प्रिय हैं, उन्हें अस्वीकार कर पाना मेरे लिए असंभव है।
भाव यह है कि कवि के जीवन की प्रत्येक उपलब्धि, संपन्नता, हर्ष-विषाद आदि सभी कुछ प्रिय की ही देन है। यही कारण है कि कवि का जो कुछ था, जो कुछ है और जो कुछ होता-सा लगता है, को प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार कर लिया है।
विशेष: 1. इस सशक्त कविता में कवि ने अपने जीवन के समस्त खट्टे-मीठे अनुभवों, कोमल-तीखी अनुभूतियों और सुख-दुःख को इसलिए सहर्ष स्वीकार कर लिया है क्योंकि इन सब पर प्रिय का प्रभाव है। वह प्रत्येक परिस्थिति को उसी की देन मानता है।
2. भाषा प्रवाहमयी और सरल है।