'कितना कम लेकर ये समाज को कितना अधिक वापस लौटा देती हैं।' इस कथन के आधार पर स्पष्ट करें कि आम जनता की देश की आर्थिक प्रगति में क्या भूमिका है?
पत्थरों पर बैठकर श्रमिक महिलाएँ पत्थर तोड़ती हैं। उनके हाथों में कुदाल व हथौड़े होते हैं। कइयों की पीठ पर बँधी टोकरी में उनके बच्चे भी बँधे रहते हैं और वे काम करते रहते हैं। हरे-भरे बागानों में युवतियाँ बोकु पहने चाय की पत्तियाँ तोड़ती हैं। बच्चे भी अपनी माँ के साथ काम करते हैं। इन्ही की भाँति आम जनता भी अपनी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के प्रयास में जीविका रूप में देश और समाज के लिए बहुत कुछ करते हैं। सड़के, पहाड़ी मार्ग, नदियों, पुल आदि बनाना। खेतों में अन्न उपजाना, कपड़ा बुनना, खानों, कारखानों में कार्य करके अपनी सेवाओं से राष्ट्र आर्थिक सदृढ़ता प्रदान करके उसकी रीढ़ की हड्डी को मजबूत बनाते हैं।
हमारे देश की आम जनता जितना श्रम करती है, उसे उसका आधा भी प्राप्त नहीं होता परन्तु फिर भी वो असाध्य कार्य को अपना कर्तव्य समझ कर करते हैं। वो समाज का कल्याण करते हैं परन्तु बदले में उन्हें स्वयं नाममात्र का ही अंश प्राप्त होता है। देश की प्रगति का आधार यहीं आम जनता है जिसके प्रति सकारात्मक आत्मीय भावना भी नहीं होती। यदि ये आम जनता ना हो तो देश की प्रगति का पहिया रुक जाएगा।