दरअसल इस फ़िल्म की संवेदना किसी दो से चार बनाने वाले की समझ से परे है।
इस पंक्ति का आशय यह है कि इस तरह की फ़िल्में जो नितान्त भावुकता से बनाई जाती है उसे शुद्ध व्यवसायिक लोग जो केवल हर चीज से धन अर्जित करने की कामना रखते हैं, नहीं समझ सकते। तीसरी कसम' फ़िल्म की संवेदना किसी आम आदमी के समझ के परे थी।