निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर प्रसंग सहित व्याख्या कीजिये:
फटिक सिलानि सौं सुधारयौ सुधा मंदिर,
उदधि दधि को सो अधिकाइ उमगे अमंद।
बाहर ते भीतर लौं भीति न दिखैए ‘देव’,
दूध को सो फेन फेल्यो आंगन फरसबंद।
तारा सी तरुनि तामें टाढ़ी झिलमिली होति,
मोतिन की जोति मिल्यो मल्लिका को मकरंद।
आरसी से अंबर में आभा सी उजारी लगै,
प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद।।
प्रसंग- प्रस्तुत पद रीतिकालीन कवि देव के द्वारा रचित है जिस में कवि ने चांदनी रात की आभा को अति सुंदर ढंग से प्रकट किया है। कवि ने वास्तव में इसके माध्यम से राधा के रूप-सौंदर्य को प्रस्तुत करने की चेष्टा की है।
व्याख्या- अमृत की धवलता और उज्ज्वलता वाले भवन को स्फटिक की शिलाओं से इस प्रकार बनाया गया है कि उस में दही के समुंदर की तरंगों-सा अपार आनंद उमड़ रहा है। देव कवि कहते हैं कि भवन बाहर से भीतर तक चाँदनी उज्ज्वलता से इस प्रकार भरा हुआ है कि उसकी दीवारें भी दिखाई नहीं दे रही। दूध के झाग जैसी उज्ज्वलता सारे गन और फर्श के रूप में बने ऊँचे स्थान पर फैली हुई है। इस भवन में तारे की तरह झिलमिलाती युवती राधा ऐसी प्रतीत हो रही है जैसे मोतियों की आभा और जूही की सुगंध हो। राधा की रूप छवि ऐसी ही है। आइने जैसे साफ-स्वच्छ आकाश में राधा का गोरा रंग ऐसे फैला हुआ है कि इसी के कारण चंद्रमा राधा का प्रतिबिंब-सा लगता है।