पठित कविताओं के आधार पर कवि देव की काव्यगत विशेषताएँ बताइए।
देव रीतिकालीन आचार्य कवि थे, जिन के काव्य में रीतिकालीन कविता की लगभग सभी विशेषताएँ दिखाई दे जाती हैं। पठित कविताओं के आधार पर उनकी निम्नलिखित प्रमुख विशेषताएँ दिखाई देती है-
1 श्रृंगारिकता- देव ने अपनी कविताओं में राधा-कृष्ण के माध्यम से अपनी श्रृंगारिक भावनाएँ प्रकट की हैं। उनकी प्रवृत्ति भी अन्य रीति कालीन कवियों की तरह संयोग श्रृंगार में अधिक रमी है। राधा की रूप माधुरी ने विशेष रूप से प्रभावित किया है। चाँदनी रात में उसका रूप ऐसा निखरा हुआ है कि चंद्रमा भी उसका बिंब मात्र दिखाई देती है-
तारा सी तरुनि तामें ठाढ़ी झिलमिली होती,
मोतिन की जोति मिल्यो मल्लिका को मकरंद।
आरसी से अंबर में आभा-सी उजारी लगै,
पारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद।
2. भक्ति- भाव-देव चाहे श्रृंगारिक कवि थे, पर भारतीय संस्कारों में बंध कर वे कभी नास्तिक नहीं रहे। उन्होंने अपनी कविता में बार-बार वैराग्य भावना और आस्तिकता को प्रकट किया है। वे वैष्णव थे। उन्होंने श्रीकृष्ण के प्रति अपने भक्ति-भाव को प्रकट किया है-
माथे किरीट बड़े दृग चंचल, मंद हंसी मुख चंद जुलाई,
जै जग-मंदिर-दीपक सुंदर, श्री बजदूलह ‘देव’ सहाई।।
3. प्रकृति-चित्रण-देव ने अपनी कविताओं में प्रकृति -चित्रण अति सुंदर ढंग से किया है। उनके काव्य में प्रकृति साध्य नहीं है बल्कि साधन है। उन्होंने प्रकृति वर्णन में ऋतु वर्णन की परंपरा का पालन किया। उनकी प्रकृति संबंधी मौलिक दृष्टि की वहां सराहना करनी पड़ती है जहाँ उन्होंने बसंत का अति भावपूर्ण चित्रण किया है। उन्होंने बसंत का परंपरागत वर्णन न कर उसे कामदेव के बालक के रूप में प्रकट किया है जिसकी सेवा में सारी प्रकृति लीन हो जाती है-
डार द्रुम पलना बिछौना नव पल्लव के,
सुमन झिंगूला सोहै तन छबि भारी दै।
पवन झूलावै, केकी-कीर बरतावैं, ‘देव’,
कोकिल हलावै-हुलसावै कर तारी दै।
4. कलापक्ष- देव ने अपने काव्य को सफल अभिव्यक्ति प्रदान करने के लिए शब्द शक्तियों का अच्छा प्रयोग किया। उनके अमिधा के प्रयोग में सहजता है। उन्होंने माधुर्य और प्रसाद गुण का अच्छा प्रयोग किया है। उन्हें अनुप्रास अलंकार के प्रति विशेष मोह है-
(i) पूरित पराग सों उतारो करै राई नोन
(ii) मदन महीप जू को बालक बसंत ताहि
(iii) कटि किंकिनि कै पुनि की मधुराई
(iv) मोतिन की जोति मिलो मल्लिका को मकरंद
इन्होंने उपमा का प्रयोग भी अच्छा किया है। ब्रज भाषा की कोमलकांत शब्दावली का इन्होंने सार्थक और सुंदर प्रयोग किया है। इनके काव्य में तत्सम शब्दावली का अधिक प्रयोग किया है।