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सूरदास - पद

Question
CBSEENHN10001439

निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
         मन की मन ही माँझ रही।
कहिए जाइ कौन पै ऊधौ, नाहीं परत कही।
अवधि अधार आस आवन की, तन मन बिथा सही।
अब इन जोग सँदेसनी सुनि-सुनि, बिरहिनि बिरह दही।
चाहति हुतीं गुहारि जितहिं तैं, उत तैं धार बही।
‘सूरदास’ अब धीर धरहिं क्यौं, मरजादा न लही।।

उपर्युक्त पद का भाव स्पष्ट कीजिए।


Solution
गोपियां श्रीकृष्ण से प्रेम करती थीं। वे तो सोच भी नहीं सकती थीं कि उन्हें कभी उनके प्रेम से वंचित होना पड़ेगा। उद्धव के द्वारा उन्हें दिए जाने वाले निर्गुण भक्ति के ज्ञान ने उन के धैर्य को पूरी तरह नष्ट कर दिया था। वे निराशा के भावों से भर उठी थीं और उन्हें ऐसा प्रतीत होने लगा था कि उन की मर्यादा तो पूरी तरह से नष्ट हो गई थी।

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