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सूरदास - पद

Question
CBSEENHN10001426

निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
       ऊधौ, तुम हौ अति बड़भागी।
अपरस रहत सनेह तगा तैं, नाहिन मन अनुरागी।
पुरइनि पात रहत जल भीतर, ता रस देह न दागी।
ज्यौं जल माहँ तेल की गागरि, बूँद न ताकौं लागी।
प्रीति-नदी मैं पाउँ न बोरयौ, दृष्टि न रूप परागी।
‘सूरदास’ अबला हम भोरी, गुर चाँटी ज्यौं पागी।

‘गुर चींटी ज्यौं पागी’ के माध्यम से श्रीकृष्ण के प्रति गोपियों के प्रेम को प्रतिपादित कीजिए।

Solution
गोपियों का श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम भरा मन चाह कर भी कहीं और टिकता नहीं। वे तो पूरी तरह से अपने प्रियतम की रूप माधुरी पर आसक्त थीं, उन के प्रेम में पगी हुई थीं। जिस प्रकार चींटी गुड पर आसक्त हो कर उस पर चिपट जाती है और फिर छूट नहीं पाती। वह वहीं अपने प्राण दे देती है। गोपियां भी श्रीकृष्ण के प्रति इसी प्रकार प्रेम-भाव में डूबी रहना चाहती थीं और कभी भी उस से दूर नहीं होना चाहती थीं।

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