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सूरदास - पद

Question
CBSEENHN10001419

निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
       ऊधौ, तुम हौ अति बड़भागी।
अपरस रहत सनेह तगा तैं, नाहिन मन अनुरागी।
पुरइनि पात रहत जल भीतर, ता रस देह न दागी।
ज्यौं जल माहँ तेल की गागरि, बूँद न ताकौं लागी।
प्रीति-नदी मैं पाउँ न बोरयौ, दृष्टि न रूप परागी।
‘सूरदास’ अबला हम भोरी, गुर चाँटी ज्यौं पागी।

उपर्युक्त पद का भाव स्पष्ट कीजिए?

Solution
गोपियां उद्धव की प्रेमहीनता का मजाक उड़ाती हुई मानती हैं कि उस के हृदय में प्रेम की भावना का अभाव है। वह पूर्ण रूप से प्रेम के बंधन से मुक्त और अनासक्त है। उस ने कभी प्रेम की नदी में अपना पैर नहीं डुबोया और उस की आँखें श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य को देख कर भी उन में नहीं उलझीं पर वे गोपियां तो भोली- भाली थीं और वे श्रीकृष्ण की रूप माधुरी पर आसक्त हो गईं। वे किसी भी अवस्था में अब उस प्रेम-भाव से दूर नहीं हो सकतीं।

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