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सूरदास - पद

Question
CBSEENHN10001446

निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
         मन की मन ही माँझ रही।
कहिए जाइ कौन पै ऊधौ, नाहीं परत कही।
अवधि अधार आस आवन की, तन मन बिथा सही।
अब इन जोग सँदेसनी सुनि-सुनि, बिरहिनि बिरह दही।
चाहति हुतीं गुहारि जितहिं तैं, उत तैं धार बही।
‘सूरदास’ अब धीर धरहिं क्यौं, मरजादा न लही।।

‘पार बही’ में निहित भाव को स्पष्ट कीजिए।

Solution
‘ पार बही’ लाक्षणिक प्रयोग है। गोपियों को प्रतीत होता है कि निर्गुण भक्ति की धारा श्रीकृष्ण की ओर से बह कर उन तक पहुँचती थी। उन्होंने ही उद्धव को उन के पास निर्गुण ज्ञान की धारा ले जाने के लिए भेजा था।

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