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निम्नलिखित लोगों ने किन सामाजिक विचारों का समर्थन और प्रसार किया:
राममोहन रॉय
दयानन्द सरस्वती
वीरेशलिंगम पंतुलु
ज्योतिराव फुले
पंडिता रमाबाई
पेरियार
मुमताज़ अली
ईश्वरचंद्र विद्यासागर
निम्नलिखित में से सही या गलत बताएँ:
A.
जब अंग्रेज़ों ने बंगाल पर क़ब्ज़ा किया तो उन्होंने विवाह, गोद लेने, संपत्ति उत्तराधिकार आदि के बारे में नए कानून बना दिए।
B.
समाज सुधारकों को सामाजिक तौर-तरीकों में सुधार के लिए प्राचीन ग्रंथो से दूर रहना पड़ता था।
C.
सुधारकों को देश के सभी लोगों का पूरा समर्थन मिलता था।
D.
बाल विवाह निषेध अधिनियम 1829 में पारित किया गया था।
प्राचीन ग्रंथो के ज्ञान से सुधारकों को नए कानून बनवाने में किस तरह मदद मिली?
राजा राममोहन रॉय जैसे सुधारक जो संस्कृत, फ़ारसी तथा अन्य कई भारतीय एवं यूरोपीय भाषाओं के अच्छे ज्ञाता थे। उन्होंने अपने लेखन के ज़रिए यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि प्राचीन ग्रंथो में विधवाओं को जलाने की अनुमति कही नहीं दी गयी है।
प्राचीन ग्रंथों के उनके ज्ञान ने उन्हें बहुत अधिक आत्मविश्वास और नैतिक समर्थन दिया जो उन्होंने नए कानूनों को बढ़ावा देने में उपयोग किया। जब लोगों ने उन सुधारों के खिलाफ आवाज उठाई तो वे डर नहीं पाए।
लड़कियों को स्कूल ने भेजने के पीछे लोगों के पास कौन-कौन से कारण होते थे?
लड़कियों को स्कूल ने भेजने के पीछे कारण थे:
(i) लोगो को भय था कि स्कूल वाले लड़कियों को घर से निकाल ले जाएँगे और उन्हें घरेलू कामकाज नहीं करने देंगे।
(ii) स्कूल जाने के लिए लड़कियों को सार्वजनिक स्थानों से गुजर कर जाना पड़ता था। बहुत सारे लोगों को लगता था कि इससे लड़कियाँ बिगड़ जाएँगी।
(iii) उनकी मान्यता थी कि लड़कियों को सार्वजनिक स्थानों से दूर रहना चाहिए। इससे उनके आचरण पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है।
ईसाई प्रचारकों की बहुत सारे लोग क्यों आलोचना करते थे? क्या कुछ लोगों ने उनका समर्थन भी किया होगा? यदि हाँ तो किस कारण?
ईसाई प्रचारकों की लोगो ने काफी आलोचना की और उन पर देश के कई भागो में हमला भी किया गया क्योंकि उन पर जनजातीय समूहों तथा निम्न जाती के लोगों का ज़बरन धर्म परिवर्तित करने का संदेह था।
हाँ, कुछ लोगों ने ईसाई प्रचारकों का समर्थन भी किया होगा क्योंकि ये प्रचारक जनजातीय लोगों तथा निम्न जाती के लोगों के लिए स्कूलों की स्थापना कर रहे थे जिससे उनके बच्चों के लिए शिक्षा के उचित अवसर प्राप्त हो सकते थे।
अंग्रेज़ों के काल में ऐसे लोगों के लिए कौन से नए अवसर पैदा हुए जो 'निम्न' मानी जाने वाली जातियों से संबंधित थे?
शहरों के विस्तार के कारण मज़दूरी की काफ़ी माँग पैदा हुई।
शहरों में नालियाँ बनाई जानी थीं, सड़कें बिछनी थीं, इमारतों का निर्माण होना था और शहरों को साफ किया जाना था। इसके लिए कुलियों, खुदाई करने वालों, बोझा ढोने वालों, ईंट बनाने वालों, नालियाँ साफ़ करने वालों, सफाईकर्मियों, पालकी ढोने वालों, रिक्शा खींचने वालों की ज़रूरत थी। इन कामो को सँभालने के लिए गाँवों और छोटे कस्बो के गरीब शहरों की तरफ जाने लगे जहाँ मज़दूरी की माँग पैदा हो रही थी। शहर जाने वालों में से बहुत सारे 'निम्न' जातियों के लोग भी थे।
कुछ लोग असम, मॉरिशस, त्रिनिदाद और इंडोनेशिया आदि स्थानों पर बागानों में काम करने भी चले गए। परन्तु गरीबों, निचली जातियों के लोगों को यह गाँवों में स्वर्ण ज़मींदारों द्वारा उनके जीवन पर दमनकारी कब्ज़े और दैनिक अपमान से छूट निकलने का एक मौका था।
ज्योतिराव और अन्य सुधारकों ने समाज में जातीय असमानतयों की आलोचनाओं को किस तरह सही ठहराया?
ज्योतिराव फुले ने ब्राह्मणों के इस दावे पर खुलकर हमला बोला कि आर्य होने के कारण वे औरों से श्रेष्ठ हैं।
(1) फुले का तर्क था कि आर्य विदेशी थे, जो उपमहाद्वीप के बाहर से आए थे और उन्होंने इस मिट्टी के असली वारसियों - आर्यों के आने से पहले यहाँ रह रहे मूल निवासियों - को हराकर उन्हें गुलाम बना लिया था।
(2) जब आर्यों ने अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया तो वे पराजित जनता को नीच, निम्न जाती वाला मानने लगे।
(3) फुले के अनुसार 'ऊँची' जातियों का उनकी ज़मीन और सत्ता पर कोई अधिकार नहीं हैं: यह धरती यहाँ के देशी लोगों की, कथित निम्न जाती के लोगों की है।
फुले ने अपनी पुस्तक गुलामगीरी को गुलामों की आज़ादी के लिए चल रहे अमेरिकी आंदोलन को समर्पित क्यों किया?
1873 में फुले ने गुलामगीरी (गुलामी) नामक एक किताब लिखी। इससे लगभग दस साल पहले अमेरिकी गृह युद्ध हो चुका था जिसके फलस्वरूप अमेरिका में दास प्रथा खत्म कर दी गई थी। फुले ने अपनी पुस्तक उन सभी अमेरीकियों को समर्पित की जिन्होंने गुलामों को मुक्ति दिलाने के लिए संघर्ष किया था।
'मंदिर प्रवेश आंदोलन' के ज़रिए अम्बेडकर क्या हासिल करना चाहते थे?
सन् 1927 में अम्बेडकर जी ने मंदिर प्रवेश आंदोलन शुरू किया जिसमें महार जाती के लोगों ने बड़ी संख्या में हिस्सा लिया। 1927 से 1935 के बीच अम्बेडकर ने मंदिरो में प्रवेश के लिए ऐसे तीन आंदोलन चलाए। वह पूरे देश को दिखाना चाहते थे कि समाज में जातीय पूर्वाग्रहों की जकड़ कितनी मजबूत है।
ज्योतिराव फुले और रामास्वामी नायकर राष्ट्रीय आंदोलन की आलोचना क्यों करते थे? क्या उनकी आलोचना से राष्ट्रीय संघर्ष में किसी तरह की मदद मिली?
वे उच्च जाती के लोगों की अगुवाई में चलाए जा रहे राष्ट्रीय आंदोलन की इसलिए आलोचना करते थे क्योंकि उनका मानना था कि अंतत: यह आंदोलन उच्च जाती के लोगों के उद्देश्यों की ही पूर्ति करेगा। आंदोलन की समाप्ति के पश्चात् ये लोग फिर से 'छुआछूत' की बात करेंगे। एक बार फिर से ये लोग कहेंगे - ' मैं यहाँ और तुम वहाँ '। पेरियार ने छुआछूत की एक घटना के कारण कांग्रेस पार्टी को छोड़ दिया।
हाँ उनकी आलोचना ने राष्ट्रीय संघर्ष में एकता पैदा की। इन निम्न जाति के नेताओं के सशक्त भाषण, लेखन तथा आंदोलनों ने उच्च जाति के राष्ट्रवादी नेताओं को आत्मलोचना तथा इस मुद्दे पर फिर से विचार करने के लिए प्रेरित किया।
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