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वसंत पंचमी सरस्वती पूजा, महाशिवरात्रि व होली जैसे प्रमुख त्योहारों का आगमन इसी ऋतु में होता है।
हमारे देश में होली का उत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इस त्यौहार को मनाने मैं प्रत्येक भारतीय अपना गौरव समझता है। एक ओर तो आनंद और हर्ष की वर्षा होती है, दूसरी ओर प्रेम व स्नेह की सरिता उमड़ पड़ती है। यह शुभ पर्व प्रतिवर्ष फाल्गुन मास की पूर्णिमा के सुंदर अवसर की शोभा बढ़ाने आता है ।
होली का त्योहार वसंत ऋतु का संदेशवाहक बनकर आता है। मानव मात्र के साथ-साथ प्रकृति भी अपने रंग-ढंग दिखाने में कोई कमी नहीं रखती। चारों ओर प्रकृति कै रूप और सौंदर्य के दृश्य दृष्टिगत होते हैं। पुष्पवाटिका में पपीहे की तान सुनने से मन-मयूर नृत्य कर उठता है। आम के झुरमुट से कोयल की ‘कुहू-कुहू’ सुनकर तो हदय भी झंकृत हो उठता है। ऋतुराज वसंत का स्वागत बड़ी शान से संपन्न होता है। सब लोग घरों से बाहर जाकर रंग-गुलाल खेलते हैं और आनंद मनाते हैं।
होलिकोत्सव धार्मिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। इस उत्सव का आधार हिरण्यकश्यप नामक दानव राजा और उसके ईश्वरभक्त पुत्र प्रल्हाद की कथा है। कहते हैं कि राक्षस राजा बड़ा अत्याचारी था और स्वयं को भगवान मानकर प्रजा से अपनी पूजा करवाता था; किंतु उसी का पुत्र प्रल्हाद ईश्वर का अनन्य भक्त था। हिरण्यकश्यप चाहता था कि मरा पुत्र भी मेरा नाम जपे किंतु वह इसके विपरीत उस ईश्वर का नाम ही जपता था। उसने अपने पुत्र को मरवा डालने के बहुत से यत्न किए, पर असफलता ही मिली। एक बार हिरण्यकश्यप की बहन होलिका ने इस कुकृत्य में अपने भाई का साथ देने का प्रयास किया। उसे किसी देवता से वरदान में एक ऐसा वस्त्र प्राप्त था जिसे ओढ़कर उस आग नहीं लग सकती थी। एक दिन होलिका प्रल्हाद को गोदी में लेकर चिता में बैठ गई। किंतु भगवान की इच्छा कुछ और ही थी, किसी प्रकार वह कपड़ा उड़कर प्रल्हाद पर जा पड़ा। फलत: होलिका तो भस्म हो गई और प्रल्हाद बच गया। बुराई करने वाले की उसका फल मिल गया था। इसी शिक्षा को दोहराने के लिए यह उत्सव मनाया जाता है।
इस दिन खूब रंग खेला जाता है। आपस में नर-नारी, युवा-वृद्ध गुलाल से एक-दूसरे के मुख को लाल करके हँसी-ठट्ठा करते हैं। ग्रामीण लोग नाच-गाकर इस उल्लास- भरे त्योहार को मनाते हैं । कृष्ण-गोपियों की रास-लीला भी होती है। धुलेंडी के बाद संध्या समय नए-नए कपड़े पहनकर लोग अपने मित्रगणों से मिलते हैं. एक-दूसरे को मिठाई आदि खिलाते हैं और अपने स्नेह-संबंधों की पुनर्जीवित करते हैं।
होली के शुभ अवसर पर जैन धर्म के लोग भी आठ दिन तक सिद्धचक्र की पूजा करते हैं, यह ‘अष्टाहिका’ पर्व कहलाता है। ऐसे कामों से इस पर्व की पवित्रता का परिचय मिलता है। कुछ लोग इस शुभ पर्व को भी अपने कुकर्मो से गंदा बना देते हैं। कुछ लोग इस दिन रंग के स्थान पर कीचड़ आदि गंदी वस्तुओं को एक-दूसरे पर फेंकते हैं अथवा पक्के रंगों या तारकोल से एक-दूसरे को पोतते हैं जिसके फलस्वरूप झगड़े भी हो जाते हैं। इसके अतिरिक्त कुछ लोग इस दिन भाँग, मदिरा आदि नशे की वस्तुओं का भी प्रयोग करते हैं जिनके परिणाम कभी भी अच्छे नहीं हो सकते। ऐसे शुभ पर्व को इन बातों से अपवित्र करना मानव धर्म नहीं है।
होलिकोत्सव तो हर प्राणी को स्नेह का पाठ सिखाता है। इस दिन शत्रु भी अपनी शत्रुता भूलकर मित्र बन जाते हैं। इस कारण सब उत्सवों में यदि इसे ‘उत्सवों की रानी’ कहा जाए तो अत्युक्ति न होगी।
यह सत्य है कि लोगों के जीवन पर प्रत्येक ऋतु का गहरा प्रभाव पड़ता है जिसे हम इस प्रकार स्पष्ट कर सकते है-
ग्रीष्म-इस ऋतु में झुलसा देने वाली गर्मी पड़ती है, जिससे प्राणी व्याकुल हो जाते हैं और प्रकृति भी मुरझा जाती है। लोगों को ठंडे पेय व खाने के पदार्थ लुभाते हैं। अमीर लोग कूलर व ए.सी. का प्रयोग करते हैं जबकि गरीब लोग पेड़ की ठंडी छाया में ही गरमी की तपन मिटाने का प्रयास करते हैं । सभी को सूती कपड़े पहनना अच्छा लगता है।
शीत-शीत ऋतु में बर्फीली हवाओं के कारण लोगों को, विशेषकर निर्धन वर्ग को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इस ऋतु में लोग गर्म चीजें खाना व गर्म कपड़े पहनना पसंद करते हैं। धूप सबको भाती है।
वर्षा- वर्षा ऋतु में काम-काज ठप्प हो जाते हैं। अमीर-गरीब सभी को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। कई बार अधिक वर्षा हो जाने से बाढ़ भी आ जाती है जिससे सभी को हानि उठानी पड़ती है। बच्चे इस ऋतु का आनंद उठाते हैं। जबकि वसंत ऋतु में अस्वस्थ व्यक्ति भी स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करते हैं। प्रकृति निर्मल आँचल झड़कर अपना हर्ष प्रकट करती है। चारों ओर हरियाली व सुगंधित फूलों से आनंदमय वातावरण होता है। मानव जाति के साथ-साथ पशु-पक्षी भी प्रसन्नचित्त हो जाते हैं।
‘हरे-हरे’, ‘पुष्प-पुष्प’ में एक शब्द की एक ही अर्थ में पुनरावृत्ति हुई है। कविता के ‘हरे-हरे ये पात’ वाक्यांश में ‘हरे-हरे’ शब्द युग्म पत्तों के लिए विशेषण के रूप में प्रयुक्त हुए हैं। यहाँ ‘पात’ शब्द बहुवचन में प्रयुक्त है। ऐसा प्रयोग भी होता है जब कर्ता या विशेष्य एक वचन में हो और कर्म या क्रिया या विशेषण बहुवचन में; जैसे-वह लंबी-चौड़ी बातें करने लगा। कविता में एक ही शब्द का एक से अधिक अर्थों में भी प्रयोग होता है- “तीन बेर खाती ते वे तीन बेर खाती है।” जो तीन बार खाती थी वह तीन बेर खाने लगी है। एक शब्द ‘बेर’ का दो अर्थो में प्रयोग करने से वाक्य में चमत्कार आ गया। इसे यमक अलंकार कहा जाता है। कभी-कभी उच्चारण की समानता से शब्दों की पुनरावृत्ति का आभास होता है जबकि दोनों दो प्रकार के शब्द होते हैं; जैसे-मन का मनका।
ऐसे वाक्यों को एकत्र कीजिए जिनमें एक ही शब्द की पुनरावृत्ति हो। ऐसे प्रयोगों को ध्यान से देखिए और निन्नलिखित पुनरावृत शब्दों का वाक्य में प्रयोग कीजिए- बातों-बातों में रह- रहकर, लाल- लाल, सुबह- सुबह. रातों- रात, घड़ी- घड़ी।
यमक अलंकार अर्थात् एक शब्द के दो अर्थ देकर वाक्य में चमत्कार उत्पन्न करने का उदाहरण निम्न दोहे मे देखिए-
नैनन काजल औ काजल मिली।
है गई स्याम स्याम की पाती।।
इसमें काजल शब्द का प्रयोग दो बार हुआ है एक नैनन काजल का अर्थ है ‘आँसू’ व दूसरे काजल का अर्थ है आँखों में डालने वाला ‘काजल’ (सुरमा)। स्याम शब्द भी दो बार है। एक स्याम का अर्थ है ‘काली’ व दूसरे स्याम का अर्थ है ‘कृष्ण’ उद्धव जब कृष्ण का पत्र लेकर गोपियों के पास जाते हैं तो गोपियों की औखों से आँसू बह निकलते हैं, जिनके साथ उनका काजल भी पत्र पर गिरने लगता है तो कृष्ण के भेजे पत्र के शब्द भी धूलने लगते हैं और पत्र काला हो जाता है।
पुनरावृत्ति शब्दों के वाक्य निम्न रूप से हैं-
1. बातों-बातों में-बातों-बातों में मोहन ने मुझ सुना ही दिया कि उसने मुझे दस हजार रुपए उधार दिए थे।
2. रह-रहकर- आज मुझे रह-रहकर सड़क पर भीख मांगने वाले बूढे की याद आ रही है।
3. लाल- लाल-लाल-लाल सेब देखकर मेरे मुँह में पानी भर आया।
4. सुबह-सुबह-सुबह-सुबह बगीचे में टहलने का आनंद ही मनभावन होता है।
5. रातों-रात-रातों-रात ही उसका पूरा मकान खाली हो गया।
6. घड़ी-घड़ी-जादूगर घड़ी-घड़ी अपने कपड़े बदल रहा था।
‘कोमल गात, मृदुल वसंत, हरे-हरे ये पात’
विशेषण जिस संज्ञा (या सर्वनाम) की विशेषता बताता है, उसे विशेष्य कहते हैं। ऊपर दिए गए वाक्यांशों में गात, वसंत और पात शब्द विशेष्य हैं, क्योंकि इनकी विशेषता (विशेषण) क्रमश: कोमल, मृदुल और हरे-हरै शब्द बता रहे हैं।
हिंदी विशेषणों के सामान्यतया चार प्रकार माने गए हैं- गुणवाचक विशेषण, परिमाणवाचक विशेषण, संख्यावाचक विशेषण और सार्वनामिक विशेषण।
‘वसंत’ शब्द का शब्दकोश, अर्थ व अन्य जानकारी-
वसंत- (क) संज्ञा व पुल्लिंग शब्द
(ख) चैत और बैशाख के महीनों की ऋतु
(ग) एक राग।
वसंत के अन्य नाम-मधुऋतु, मधुमास, ऋतुओं की रानी, ऋतुराज, मधूलिका आदि।
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A.
जीवन में आशा से परिपूर्ण सुंदर समयB.
वह उन्हें विमल, सुंदर और हर्षान्वित रूप में देखना चाहता है।B.
वह अपने जीवन में बहुत से कार्य करना चाहता है।A.
आपके कार्यो की कीर्ति और यश चारों ओर फैले।B.
वह अपने जीवन के उद्देश्यों को पूरा कर यश कमाना चाहता हैं।A.
कवि प्रकृति के अवसाद व आलस्य को समाप्त करना चाहता हैं।C.
अपने कोमल हाथों का स्पर्श देकरB.
उसके जीवन का आलस्य, निराशा व प्रमाद सब दूर हो जाए और वह नवीन कार्यो की और अग्रसर हो सके।C.
आलसी, निद्रामय व उदासी मे ड़ुबे हुएA.
वह उन्हें अपने स्पर्श से विमल, सुंदर और हर्षान्वित करना चाहता है।C.
वह उन्हें अपने जीवन के अमृत रस से सींचना चाहता है।केवल वायु या गैसों में
केवल ठोसों में
केवल द्रवों में
केवल द्रवों में
D.
केवल द्रवों में
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एक दोलक 4 सेकंड में 40 बार दोलन करता है। इसका आवर्तकाल तथा आवृत्ति ज्ञात कीजिए।
आवर्तनकाल-
40 दोलन पूरा करने में लगा समय = 4 सेकंड
1 दोलन पूरा करने में लगा समय = = 0.1 सेकंड
आवृत्ति-
4 सेकंड में होने वाली दोलनों की संख्या = 40
1 सेकंड में होने वाले दोलनों की संख्या = = 10 दोलन
एक मच्छर अपने पंखों को 500 कंपन प्रति सेकंड की औसत दर से कंपित करके ध्वनि उत्त्पन्न करता है। कंपन का आवर्तकाल कितना है?
500 कंपन करने में समय लगता है = 1 सेकंड
1 कंपन करने में समय लगता है = सेकंड = 0.002 सेकंड
शोर तथा संगीत में क्या अंतर है? क्या कभी संगीत शोर बन सकता है?
जिस ध्वनि को सुनने में हम बाधित होते हैं या वह अवांछित ध्वनि जिसे हम सुन्ना नहीं चाहते शोर होता है। जबकि जो ध्वनि सुनने से हमे आनंद की प्राप्ति होती है या सुस्वर ध्वनि को संगीत कहते हैं।
यदि संगीत को आवश्यकता से अधिक आवाज में सुना जाए या संगीत की प्रबलता अधिक हो तो वह शोर बन जाती है।
अपने वातावरण में शोर प्रदूषण के स्त्रोतों की सूचि बनाइए।
शोर प्रदूषण के स्त्रोत निम्नलिखित हैं-
(i) वाहनों की ध्वनियाँ
(ii) विस्फोटक (पटाखों का फटना)
(iii) मशीनें
(iv) लाउडस्पीकर
(v) वातानुकूलन
(vi) कूलर
(vii) ऊँची आवाज में चलाए गए रेडियो
(viii) टीवी
(ix) कारखाने
वर्णन कीजिए कि शोर प्रदूषण मानव के लिए किस प्रकार से हानिकारक है?
शोर प्रदूषण मानव के लिए निम्न प्रकार से हानिकारक है-
(i) इससे अनेक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ उतपन्न हो सकती हैं। जैसे अनिद्रा, तनाव, चिन्ता, उच्च रक्तचाप आदि।
(ii) मनुष्य की सुनने की क्षमता अस्थायी या स्थाई रूप से कम हो सकती है।
आपके माता-पिता एक मकान खरीदना चाहते हैं। उन्हें एक मकान सड़क के किनारे पर तथा दूसरा सड़क से तीन गली छोड़ कर देने का प्रस्ताव किया गया है। आप अपने माता-पिता को कौन-सा मकान खरीदने का सुझाव देंगे? अपने उत्तर की व्याख्या कीजिए।
यदि हमारे माता-पिता के पास दो तरह के मकानों में से चुनाव करना है तो हम अपने माता-पिता को सड़क से तीन गली छोड़कर बना मकान खरीदने को कहेंगे। क्योंकि अगर घर सड़क के किनारे होगा तो वहाँ पर वाहनों का अधिक शोर होगा जो स्वाथ्य और कानों के लिए हानिकारक सिद्ध हो सकता है। अधिक ध्वनि प्रदूषण कि वजय से सुनने कि क्षमा भी कम हो सकती है। लेकिन अगर सड़क से तीन गली छोड़कर घर लिया जाएगा तो वहाँ पर शोर प्रदूषण कम होगा। इसलिए हम सड़क से तीन गली छोड़कर घर लेने के लिए कहेंगे।
मानव वाक्यंत्र का चित्र बनाइए तथा इसके कार्य की अपने शब्दों में व्याख्या कीजिए।
मानव में ध्वनि वाक्यंत्र या कंठ द्वारा उतपन्न होती है।
वाक्यंत्र श्वासनली के ऊपरी सिरे पर होता है। वाक्यंत्र के आर-पार दो वाक् तंतु इस प्रकार तनित होते हैं कि उनके बीच में वायु के निकलने के लिए एक संकीर्ण झिर्री बनी होती है। जब फेफड़े वायु को बल पूर्वक झिर्री से बाहर निकालते हैं तो वाक्-तंतु कंपित होते हैं, जिससे ध्वनि उतपन्न होती है। वाक्-तंतुओं से जुडी माँसपेशियाँ तंतुओं को तना हुआ या ढीला कर सकती हैं। जब वाक्-तंतु तने हुए या पतले होते है तब वाक् ध्वनि का प्रकार उस वाक् ध्वनि से भिन्न होता है जब वे ढीले और मोटे होते हैं।
आकाश में तड़ित तथा मेघगर्जन की घटना एक समय पर तथा हमसे समान दूरी पर घटित होती है। हमें तड़ित पहले दिखाई देती है तथा मेघगर्जन बाद में सुनाई देता है। क्या आप इसकी व्याख्या कर सकते हैं?
आकाश में तड़ित तथा मेघगर्जन की घटना एक समय पर तथा हमसे एक समान दूरी पर घटित होती है। फिर भी हमें पहले तड़ित दिखाई देती है और बाद में मेघगर्जन सुनाई देती हैं क्योंकि प्रकाश की चाल (3x108 m/s) ध्वनि की चाल से बहुत अधिक होती है। इसलिए वह पहले दिखाई देती है और बाद में उसकी आवाज सुनाई देती है।
क्या आप घंटी की ध्वनि को जल के अंदर भी सुन पाते हैं? क्या इससे पता चलता है कि ध्वनि का संचरण द्रवों में हो सकता है?
हाँ। घंटी की ध्वनि को जल के अंदर भी सुना जा सकता है। ध्वनि को संचरण के लिए किसी माध्यम की आवश्यकता होती है। ये माध्यम वायु, द्रव, ठोस आदि हो सकते हैं।
जब हम बोलते हैं तो क्या हमारे शरीर का कोई भाग कंपित होता है?
हाँ, जब हम बोलते हैं तो वाक् तंतु कंपित होते हैं।
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