क्षितिज भाग २ Chapter 2 तुलसीदास - राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद
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    NCERT Solution For Class 10 Hindi क्षितिज भाग २

    तुलसीदास - राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद Here is the CBSE Hindi Chapter 2 for Class 10 students. Summary and detailed explanation of the lesson, including the definitions of difficult words. All of the exercises and questions and answers from the lesson's back end have been completed. NCERT Solutions for Class 10 Hindi तुलसीदास - राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद Chapter 2 NCERT Solutions for Class 10 Hindi तुलसीदास - राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद Chapter 2 The following is a summary in Hindi and English for the academic year 2021-2022. You can save these solutions to your computer or use the Class 10 Hindi.

    Question 1
    CBSEENHN100018876

    निम्नलिखित में से किन्हीं चार प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में लिखिए [2 × 4 = 8]
    (क) लक्ष्मण ने धनुष टूटने के किन कारणों की संभावना व्यक्त करते हुए राम को निर्दोष बताया?
    (ख) फागुन में ऐसी क्या बात थी कि कवि की आँख हट नहीं रही है?
    (ग) फसल क्या है? इसको लेकर फसल के बारे में कवि ने क्या-क्या संभावनाएँ व्यक्त की हैं?
    (घ) ‘कन्यादान’ कविता में वस्त्र और आभूषणों को स्त्री जीवन के बंधन’ क्यों कहा गया है?
    (ङ) संगतकार किसे कहा जाता है? उसकी भूमिका क्या होती

    Solution

    (क) लक्ष्मण ने धनुष टूटने के कई कारण बताते हुए राम को निर्दोष बताया।

    1. धनुष अत्यंत जीर्ण था जो राम के हाथ लगाते ही टूट गया।
    2. हमारे लिए तो सभी धनुष एक समान हैं इस धनुष के टूटने से हमारा क्या लाभ या हानि होगी।
    3. राम ने तो इसे नया समझकर छुआ ही था, छूने भर से ही ये टूट गया।

    (ख) फागुन के महीने में प्राकृतिक सौंदर्य अपनी चरम सीमा पर व्याप्त होता है। फागुन में बसंत का यौवन और सुंदरता कवि की आँखों में समा नहीं पा रहा है। उसका हृदय प्रकृति के सौंदर्य से अभिभूत है। इस कारण कवि की आँख प्रकृति के सौंदर्य से हट नहीं पा रही है।

    (ग) फसले नदियों के पानी का जादू, मिट्टियों का गुण धर्म, मानव श्रम धूप और हवी का मिला-जुला रूप है। सभी प्राकृतिक उपादानों और मानव श्रम का परिणाम है। फसल को लेकर कवि ने संभावनाएँ व्यक्त करते हुए कहा है कि मनुष्य यदि परिश्रम करे और प्राकृतिक उपादनों को सही उपयोग करे तो देश की आर्थिक स्थिति मजबूत होगी। किसानों की स्थिति में सुधार आएगा और कृषि व्यवस्था सदृढ़ होगी।

    (घ) कन्यादान कविता में वस्त्र और आभूषणों को स्त्री जीवन के बंधन इसलिए कहा गया है क्योंकि स्त्रियाँ सुंदर वस्त्र व सुंदर आभूषणों के चमक वे लालच में भ्रमित होकर आसानी से अपनी आजादी खो देती हैं। और मानसिक रूप से हर बंधन स्वीकारते हुए जुल्मों का शिकार होती हैं।

    (ङ) किसी भी क्षेत्र या कार्य में मुख्य कलाकार का सहयोग करने वाले सहायकों को संगतकार कहा जाता है। संगताकर की भूमिका यह होती है कि वह अपने मुख्य कलाकार को पूर्ण सहयोग प्रदान करता ह और उन्हें आगे बढ़ने में योगदान देता है। जैसे संगीत के क्षेत्र में संगतकार मुख्य गायक की आवाज को बिखरने नहीं देता है साथ ही अपनी आवाज को प्रभावी नहीं बनने देता है।

    Question 2
    CBSEENHN10002005

    परशुराम के क्रोध करने पर लक्ष्मण ने धनुष के टूट जाने के लिए कौन-कौन से तर्क दिए? 

    Solution
    सीता-स्वयंवर के अवसर पर श्री राम ने शिव जी के धनुष को तोड़ दिया था जिस कारण परशुराम अत्यंत क्रोधित हो गए थे। तब लक्ष्मण ने धनुष के टूट जाने के कारण बताते हुए कहा था कि वह धनुष नहीं था बल्कि धनुही थी। वह बहुत पुराना था और राम के द्वारा छूते ही वह टूट गया था। इसमें राम का कोई दोष नहीं था।
    Question 3
    CBSEENHN10002006

    परशुराम के क्रोध करने पर राम और लक्ष्मण की जो प्रतिक्रियाएँ हुई उनके आधार पर दोनों के स्वभाव की विशेषताएं अपने शब्दों में लिखिए।

    Solution
    राम और लक्ष्मण दोनों एक ही पिता की संतान थे। उन्होंने एक ही गुरु से शिक्षा पाई थी और एक-से वातावरण में ही रहे थे पर दोनों के स्वभाव में बहुत बड़ा अंतर था। राम स्वभाव से शांत थे पर लक्ष्मण उग्र स्वभाव के थे। धनुष टूट जाने पर राम ने शांत भाव से परशुराम से कहा था कि धनुष तोड़ने वाला कोई उनका दास ही होगा पर लक्ष्मण ने उन्हें मनचाही जली-कटी सुनाई थी। राम ने उनके क्रोध को शांत करने का प्रयास किया तो लक्ष्मण ने अपनी व्यंग्यपूर्ण वाणी से उकसाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। परशुराम के क्रोध करने पर-राम शांत भाव से बैठे रहे थे पर लक्ष्मण उन पर व्यंग्य करते हुए उन्हें उकसाते रहे थे। राम ऋषि-मुनियों का आदर-मान करने वाले थे पर लक्ष्मण का स्वभाव ऐसा नहीं था। लक्ष्मण की वाणी तो परशुराम रूपी यज्ञ की अग्नि में आहुति के समान थी तो राम की वाणी शीतल जल के समान उस अग्नि को शांत करने वाली थी।
    Question 4
    CBSEENHN10002007

    लक्ष्मण और परशुराम के संवाद का जो अंश आपको सबसे अच्छा लगा उसे अपने शब्दों में संवाद शैली में लिखिए।

    Solution

    लक्ष्मण (मुस्कराते हुए)-अरे वाह! मुनियों में श्रेष्ठ, आप परशुराम जी, क्या अपने आप को बहुत बड़ा योद्धा समझते हैं? आप हैं क्या? बार-बार अपनी कुल्हाड़ी क्यों दिखाते हैं, मुझे? आप अपनी फूँक से पहाड़ उड़ाने की कोशिश करना चाहते हैं क्या?
    परशुराम (गुस्से में भरकर) -तुम्हें तो..........।
    लक्ष्मण (व्यंग्य भाव से)-बोलो, बोलो (कौन परवाह करता है, आपकी। मैं कुम्हड़े का फूल नहीं हूँ जो आपकी तर्जनी देख सूख जाऊँगा। मैंने तो आपके फरसे और धनुष-बाण को देखा था। समझा था, आप कोई क्षत्रिय है। इसीलिए अभिमानपूर्वक मैंने कुछ कह दिया था आपसे।
    परशुराम (गुस्से से लाल होते हुए)-अरे, तुम…………।
    लक्ष्मण (डरने का अभिनय करते हुए)-अरे, अरे! आप तो ब्राहमण हैं। आपके गले में तो यज्ञोपवीत भी है। गलती हो गई मुझ से। क्षमा’ करें मुझे आप। हमारे वंश में देवता, ब्राह्मण, भक्त और गौ के प्रति कभी वीरता नहीं दिखाई जाती।
    परशुराम (गुस्से से पूछते हुए) -तुम तो...........।
    लक्ष्मण-इन्हें मारने से पाप लगता है...और यदि इनसे लड़कर हार जाएं तो अपयश मिलता है। ब्राहमण देवता.....यदि आप मुझे मारेंगे, तो भी मैं आप के पैरों में ही पडूँगा। अरे मुनिवर, आपकी तो बात ही अनूठी है, आप का एक-एक वचन ही करोड़ों वज्रों के समान है...तो फिर बताइए कि आपने व्यर्थ ही ये धनुष-बाण और पारसा क्यों धारण कर रखा है? क्या जरूरत है आपको इन सब की? मैंने आपके इन अस्त्र-शस्त्रों को देखकर आपसे जो उल्टा-सीधा कह दिया है कृपया उसके लिए मुझे माफ कर दीजिए। हे महामुनि मुझे क्षमा कर दीजिए।

     

    Question 5
    CBSEENHN10002008

    परशुराम ने अपने विषय में सभा में क्या-क्या कहा, निम्न पद्‌यांश के आधार पर लिखिए-
    बाल ब्रह्‌मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही।।
    भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही।।
    सहसबाहुभुज छेदनिहारा। परसु बिलोकु महीपकुमारा।।
          मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीसकिसोर।
          गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर।।

    Solution
    परशुराम ने अपने विषय में कहा था कि वे बाल ब्रह्मचारी थे। वे स्वभाव के अति क्रोधी थे। सारा संसार जानता था कि वे क्षत्रिय वंश के प्रति द्रोही थे। उन्होंने पृथ्वी से क्षत्रिय राजाओं को समाप्त कर देने की प्रतिज्ञा कर रखी थी। उन्होंने न जाने कितनी बार अपने बाहुबल से इस पृथ्वी के क्षत्रिय राजाओं का वध कर ब्राहमणों को उनके राज्य सौंप दिए थे। वह तो सहस्रबाहु जैसे अपार बलशाली की भुजाओं की काट देने वाले पराक्रमी वीर थे। उन्होंने अपने फरसे से लक्ष्मण को डराने के लिए कहा था कि अरे राजा के बालक! तू मेरे द्वारा मारा जाएगा। क्यों अपने माता-पिता को चिंता में डालता है। वे मानते थे कि उनका फरसा बड़ा भयानक था जो गर्भ मे ही बच्चों का नाश कर देने वाला था। गुस्सा आने पर वे छोटे-बड़े में कोई अंतर नहीं करते थे और किसी का भी वध कर देते थे।
    Question 6
    CBSEENHN10002009

    लक्ष्मण ने वीर योद्धा की क्या-क्या विशेषताएँ बताई?

    Solution
    लक्ष्मण ने किसी भी वीर योद्धा की विशेषताओं के बारे में कहा था कि वे व्यर्थ ही अपनी वीरता की डींगें नहीं हाँकते बल्कि युद्ध भूमि में युद्ध करते हैं। अपने अस्त्र--शस्त्रों से वीरता के जोहर दिखाते हैं। शत्रु को सामने पाकर जो अपने प्रताप की बातें करते हैं, वे तो कायर होते हैं।
    Question 7
    CBSEENHN10002010

    साहस और शक्ति के साथ विनम्रता हो तो बेहतर है। इस कथन पर अपने विचार लिखें।

    Solution

    विनम्रता सदा साहसियों और शक्तिशालियों को ही शोभा देती है। कमजोर और कायर व्यक्ति का विनम्र होना उस का गुण नहीं होता बल्कि उसकी मजबूरी होती है। वह किसी का क्या बिगाड़ सकता है लेकिन कोई शक्तिशाली व्यक्ति अपनी शक्ति का दुरुपयोग न करके जब दीन-दुःखियों के प्रति विनम्रता का भाव प्रकट करता है तो सारे समाज में प्रतिष्ठा प्राप्त करता है। तुलसीदास जी ने कहा भी है- ‘परम धर्म श्रुति विदित अहिंसा’ तथा ‘पर पीड़ा सम नहि अधमाई।’ साहस और धैर्य मन में उत्पन्न होने वाले वे भाव हैं जो शक्ति को पाकर विपरीत स्थितियों में मानव को विचलित होने से रोक लेते हैं। साहस और धैर्य तो ‘असमय के सखा’ हैं जिन्हें शक्ति की सहायता से बनाकर रखा ही जाना चाहिए पर उसके साथ विनम्रता का बना रहना आवश्यक है। विनम्र व्यक्ति ही किसी के साथ होने वाले अन्याय के विरोध में खड़ा हो सकने का साहस करता है। भगवान् विष्णु को जब भृगु ने ठोकर मारी थी और उन्होंने साहस और शक्ति रखने के बावजूद विनम्रता का प्रदर्शन किया था तभी उन्हें देवों में से सबसे बड़ा मान लिया गया था। समाल में सदा से ही माना गया है कि अशक्त और असहाय की याचनापूर्ण करुण दृष्टि से जिसका हृदय नहीं पसीजा, भूखे व्यक्ति को अपने खाली पेट पर हाथ फिराते देखकर जिसने अपने सामने रखा भोजन उसे नहीं दे दिया, अपने पड़ोसी के घर में लगी आग को देखकर उसे बुझाने के लिए वह उसमें कूद नहीं पड़ा-वह मनुष्य न होकर पशु है क्योंकि साहस और शक्ति होते हुए अन्याय का प्रतिकार न करना कायरता है। साहस और शक्ति के साथ विनम्रता मानव का सदा हित करती है। गुरु नानक देव जी ने कहा भी है-

    जो प्राणी ममता तजे, लोभ, मोह, अहंकार

    कह नानक आपन तरे, औरन लेत उबार।

    साहस और शक्ति तो अनेक प्राणियों में होती है पर विनम्रता के अभाव में वे कभी भी समाज में प्रतिष्ठा नहीं प्राप्त कर पाते। जब हमारे हृदय में विनम्रता का भाव हो तभी हम स्वयं को भुलाकर दूसरों के कष्टों को कम करने की बात सोचते हैं।
    मनुष्य के जीवन में सुख-दुःख तो बार-बार आते-जाते रहते हैं। सुख तो जल्दी से बीत जाते हैं पर दुःख की घड़ियां सुरक्षा के मुख की तरह लगातार बढ़ती जाती ही प्रतीत होती हैं। उस समय दूसरों के साथ किया गया विनम्रता का व्यवहार और महानुभूति तपती रेत पर ठंडे पानी की बूंदों के समान प्रतीत होती है। जो अपने सुखों को त्याग कर दूसरों के दुःखों में सहभागी बन जाते हैं वही अपने साहस और शक्ति का अच्छा परिचय देते हैं। वाल हिटमैन ने इसीलिए कहा है-
    पीड़ित से मैं यह नहीं पूछता:

    “तुम्हारा दर्द कैसा है?”
    मैं स्वयं पीड़ित बन जाता हूं
    और दर्द महसूस करने लगता हूं।
    सच्ची मनुष्यता इसी बात में छिपी हुई है कि मनुष्य साहस और शक्ति होने के साथ विनम्रता को हमेशा महत्त्व दें। भगवान् शिव इसलिए पूजनीय हैं कि उन्होंने साहस और शक्ति से संपन्न होते हुए विनम्रता का परिचय दिया था। विषपान कर देवताओं और दानवों की उन्होंने रक्षा की थी। भर्तृहरि ने राक्षस और मनुष्य का अंतर विनम्रता के आधार पर ही किया है। जो विनम्र है वही महापुरुष है और जो अपने साहस और शक्ति को स्वार्थ के लिए प्रयोग करता है वही राक्षस है। तभी तो मैथिलीशरण गुप्त ने लिखा है-

    यही पशु प्रवृत्ति है कि आप ही आप चरे।
    मनुष्य है वही जो मनुष्य के लिए मरे।।
    वास्तव में ही साहस और शक्ति के साथ विनम्रता ही मानव को मानव बनाती है।

    Question 8
    CBSEENHN10002011

    भाव स्पष्ट कीजिये- 
    बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।।
    पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन फूँकि पहारू।।

    Solution
    लक्ष्मण ने परशुराम के अभिमानपूर्ण स्वभाव पर व्यंग्य किया है। वीर वह होता है जो वीरता का प्रदर्शन करे न कि व्यर्थ में डींगें हांके। जब परशुराम ने यह कहा था कि उन्होंने अपनी भुजाओं के बल से कई बार पृथ्वी के क्षत्रिय राजाओं को मिटा कर उनके राज्य ब्राह्मणों को दे दिए थे और उन्होंने सहस्रबाहु की भुजाओं को काट डाला था तो लक्ष्मण ने मुस्करा कर कहा था कि मुनीश्वर तो अपने आप को बहुत बड़ा योद्धा समझते थे और बार -बार कुल्हाड़ी दिखा कर डराना चाहते थे। वे तो फूंक मार कर पहाड़ उड़ाने का कार्य करना चाहते थे। भाव है कि राम और लक्ष्मण ऐसे क्षत्रिय वीर नहीं थे जो सरलता और सहजता से परशुराम से हार जाते।
    Question 9
    CBSEENHN10002012

    भाव स्पष्ट कीजिये- 
    इहाँ कुम्हड़बतिआ कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाहीं।।
    देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।।

    Solution
    कवि ने परशुराम के झूठे अभिमान को काव्य रूढ़ि के माध्यम से स्पष्ट किया है। समाज में पुरानी उक्ति है कि कुम्हड़े के छोटे कच्चे फल की ओर तर्जनी का संकेत करने से वह मर जाता है। लक्ष्मण कुम्हड़े के कच्चे फल जैसे कमजोर नहीं थे जो परशुराम की धमकी मात्र से भयभीत हो जाते। लक्ष्मण ने यदि उनसे अभिमानपूर्वक कुछ कहा था तो वह उनके अस्त्र-शस्त्र और फरसे को देख कर कहा था।
    Question 10
    CBSEENHN10002013

    भाव स्पष्ट कीजिये-
    गाधिसू नु कह ह्रदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ   
    अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ ।

    Solution
    विश्वामित्र ने परशुराम की अभिमानपूर्वक प्रकट की जाने वाली अपनी वीरता संबंधी बातों को सुन कर व्यंग्य भाव से कहा था कि मुनि को हरा-ही--हरा सूझ रहा था। वे सामान्य क्षत्रियों को सदा युद्ध में हराते रहे थे। इसलिए उन्हें लगने लगा था कि वे राम-लक्ष्मण को भी युद्ध में आसानी से हरा देंगे पर वे यह नहीं समझ पा रहे थे कि ये दोनों साधारण क्षत्रिय नहीं थे। वे गन्ने से बनी खांड के समान नहीं थे बल्कि फौलाद के बने खांडे के समान थे। मुनि व्यर्थ में बेसमझ बने हुए थे और इनके प्रभाव को नहीं समझ पा रहे थे।
    Question 11
    CBSEENHN10002014

    पाठ के आधार पर तुलसी के भाषा सौंदर्य पर दस पंक्तियाँ लिखिए।

    Solution

    तुलसीदास ने अवधी भाषा के लोकप्रिय और परिनिष्ठित रूप को साहित्यिक रूप में प्रस्तुत किया है। उन्होंने व्याकरण के नियमों का पूर्ण रूप से निर्वाह किया है। उनकी भाषा में कहीं भी शिथिलता दिखाई नहीं देती। उनकी वाक्य-रचना पूर्ण रूप से निर्दोष है। उन्होंने शब्द प्रयोग में उदार नीति का परिचय दिया है जिसमें तत्सम- तद्‌भव शब्दावली के साथ देशी शब्दों का प्रयोग दिखाई देता है। लोक प्रचलित मुहावरों और लोकोक्तियों के कारण उनकी भाषा सजीव, प्रवाहपूर्ण और प्रभावशाली बन गई है-
    (i) गाधिसू नु कह ह्रदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।
    (ii) मिले न कबहुँ सुभर रन गाढ़े। द्‌विज देवता घरहि के बाड़े।।

    गोस्वामी जी ने प्रसंगानुकूल भाषा का प्रयोग किया है। रसकी अनुकूलता के अतिरिक्त उन्होंने इस बात का पूरा ध्यान रखा है कि किस स्थान पर किस शब्द का प्रयोग किया जाए। उनकी भाषा सर्वत्र भावों और विचारों की सफल अभिव्यक्ति मे समय दिखाई देती है। गुण के सहारे रस की अभिव्यक्ति करने में उन्होंने सफलता पाई है। उनकी भाषा की वर्ण मैत्री दर्शनीय है। इन्होने नाद सौंदर्य का पूरा ध्यान रखा है। वास्तव में भाषा पर जैसा अधिकार तुलसीदास जी का है वैसा किसी भी और हिंदी कवि का नहीं है।

    Question 12
    CBSEENHN10002015

    इस पूरे प्रसंग में व्यंग्य का अनूठा सौंदर्य है। उदाहरण के साथ स्पष्ट कीजिए।

    Solution

    तुलसी दास हिंदी के श्रेष्ठतम भक्त कवियों में से एक है जिन्होंने गंभीरतम दार्शनिक काव्य लिखने के साथ-साथ व्यंग्य का अनूठा सौंदर्य भी प्रस्तुत किया है। इस प्रसंग में लक्ष्मण ने मुनि परशुराम की करनी और कथनी पर कटाक्ष करते हुए व्यंग्य की सहज-सुंदर अभिव्यक्ति की है। लक्ष्मण ने शिवजी के धनुष को धनुही कह कर परशुराम के अहं को चुनौती दी थी। उन्होंने व्यंग्य भरी वाणी में कहा था-
    (i) बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।
    पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन फूँकि पहारू।।

    (ii) इहां कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मारि जाहीं।।
    देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।।

    लक्ष्मण ने व्यंग्य करते हुए परशुराम से कहा था कि उन्हें जो चाहे कह देना चाहिए। क्रोध रोक कर असहय दुःख नहीं सहना चाहिए। परशुराम तो मानो काल को हाँक लगा कर बार-बार बुलाते थे। भला इस संसार में कौन ऐसा था जा उनके शील को नहीं जानता था। वे तो संसार में प्रसिद थे। वे अपने माता-पिता के ऋण से मुक्ता हो चुके थे तो उन्हें अपने गुरु के ऋण से भी मुक्त हो जाना चाहिए था।

    सो जनु हमरेहि माथें काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढ़ा।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देउँ मैं थैली खोली।।

    वास्तव मे लक्ष्मण ने परशुराम के स्वभाव और उनके कथन के ढंग पर व्यंग्य कर अनूठे सौंदर्य की प्रस्तुति की ।

    Question 17
    CBSEENHN10002020

     “सामाजिक जीवन में क्रोध की ज़रूरत बराबर पड़ती है। यदि क्रोध न हो तो मनुष्य दूसरे के द्वारा पहुँचाए जाने बाले बहुत से कष्टों की चिर-निवृत्ति का उपाय ही न कर सके।”

    आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी का यह कथन इस बात की पुष्टि करता है कि क्रोध हमेशा नकारात्मक भाव लिए नहीं होता बल्कि कभी-कभी सकारात्मक भी होता है। इसके पक्ष या विपक्ष में अपना मत प्रकट कीजिए।

    Solution

    पक्ष में-
    वास्तव में ही क्रोध की हमारे सामाजिक जीवन में अत्यधिक जरूरत पड़ती है। यदि मनुष्य क्रोध को पूरी तरह से त्याग दे तो दूसरों के द्वारा दिए जाने वाले कष्टों को वह अपने मन से कभी दूर ही न कर पाए और सदा के लिए घुट- घुट कर कष्ट उठाता रहे। सामाजिक जीवन सुखों-दुःखों से मिल कर बनता है। हमें प्राय: दुःख अपनों से ही नहीं बल्कि बाहर वालों से मिलते हैं। उस पीड़ा को तभी दूर किया जा सकता है जब हम अपने मन में छिपे भावों को क्रोध प्रकट कर के निकाल पाते हैं। जो व्यक्ति कभी क्रोध नहीं करता और जीवन में सदा सकारात्मकता हटना चाहता है लोग उसे कमजोर और कायर मानने लगते हैं। छोटे कच्चे भी क्रोध को रोकर या दुःख प्रकट कर व्यक्त करते हैं। बिना दुःख के क्रोध उत्पन्न ही नहीं होता। क्रोध में सदा बदले की भावना छिपी हुई नहीं होती बल्कि इसमें स्वरक्षा की भावना भी मिली होती है। यदि हमारा पड़ोसी रोज हमें दो-चार टेढ़ी बातें कह जाए तो उस दुःख से बचने के लिए आवश्यक है कि क्रोध करके उसे बतला दिया जाए कि उसका स्थान कौन-सा है और कहाँ है। क्रोध दूसरों में भय को उत्पन्न करता है। जिस पर क्रोध प्रकट किया जाता है यदि वह डर जाता है तो नम्र हो कर पश्चात्ताप करने लगता है तभी क्षमा का अवसर सामने आता है। क्रोध शांति भंग करता है और तत्काल दूसरे में भी क्रोध को उत्पन्न करता है।

    विपक्ष में-
    क्रोध एक मनोविकार है जो प्राय: दुःख के कारण उत्पनने होता है। प्राय: लोग अपनों पर अधिक क्रोध करते हैं। एक शिशु अपनी माता की आकृति से परिचित हो जाने के बाद जान जाता है कि उसे दूध उसी से प्राप्त होता है तो भूखा होने पर वह उसे देखते ही रोने लगता है और अपने कुछ क्रोध का आभास दे देता है। क्रोध चिड़चिड़ाहट को उत्पन्न करता है। प्राय: क्रोध करने वाला उस तरफ देखता है जिधर वह क्रोध करता है। क्रोध तो क्रोध को उत्पन्न करता है। यदि वह अपनी ओर देखे तो उसे क्रोध शायद आए ही नहीं। क्रोध न करने वाला व्यक्ति अपनी बुद्धि या विवेक पर नियंत्रण रखता है जिस कारण वह अनेक अनर्थों से बच जाता है। महात्मा बुद्ध, गुरु नानक देव, महात्मा गांधी आदि जैसे महापुरुषों ने अपने क्रोध पर विजय पा कर संसार भर में अपना नाम बना लिया था। क्रोध से बच कर हम अपना आत्मिक बल बढ़ा सकते हैं और आंतरिक शक्तियों को अनुकूल कार्यो की ओर लगा सकते हैं। बाल्मीकि ने क्रोध पर विजय प्राप्त कर आदि कवि होने का यश प्राप्त कर लिया था। क्रोध पर नियंत्रण पाकर वैर से बचा जा सकता है। अत: जहाँ तक संभव हो सके मनुष्य को क्रोध से बच कर जीवन-चलाने का व्यवहार करना चाहिए।

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    Question 18
    CBSEENHN10002021

    संकलित अंश में राम का व्यबहार विनयपूर्ण और संयत है; लक्ष्मण लगातार व्यंग्य बाणों का उपयोग करते हैं और परशुराम का व्यवहार क्रोध से भरा हुआ है। आप अपने आप को इस परिस्थिति में रखकर लिखें कि आपका व्यबहार कैसा होता 

    Solution
    यदि मैं कभी ऐसी परिस्थिति में पड़ गया तो मैं यथासंभव श्री राम के समान विनयपूर्वक और संयत व्यवहार को प्रकट करूंगा क्योंकि परशुराम के समान प्रकट किए जाने वाले क्रोध से तो सामने वाले के हृदय में भी क्रोध का भाव ही भरेगा जिससे क्लेश-भाव बढ़ेगा। इससे समस्या बढ़ जाएगी। लक्ष्मण के समान लगातार व्यंग्य बाणों का उपयोग भी सामने वाले व्यक्ति को उकसायेगा जिससे उसका गुस्सा बढ़ेगा जो अंतत: झगड़े में बदल जाएगा। विनय का भाव और संयत व्यवहार किसी क्रोधी व्यक्ति के क्रोध को भी शाँत कर देने की क्षमता रखता है।
    Question 19
    CBSEENHN10002022

    अपने किसी परिचित या मित्र के स्वभाव की विशेषताएँ लिखिए।

    Solution
    मेरे एक मित्र हैं- डॉ० सिंगला। उनका नर्सिंग होम मेरे घर से कुछ ही दूरी पर है। उनका घर भी नर्सिंग होम का ही एक हिस्सा है जो उनके रोगियों के लिए बहुत उपयुक्त है। दिन-रात किसी भी आपातकाल में वे उनके पास मिनट में पहुँच सकते हैं। मेरे मित्र बहुत साफ-सुथरे रहते हैं। साफ-सफाई तो उनके हर काम में दिखाई देती है। चमचमाते फर्श, साफ-सुथरी दीवारें, चुस्त कर्मचारी उनके नर्सिंग होम की पहचान है जिसमें डॉ० सिंगला के स्वभाव की पहचान साफ झलकती है। वे मृदुभाषी हैं। उनके रोगियों का आधा रोग तो उनसे बातचीत कर के ही दूर हो जाता है। उन्हें पेड़-पौधों का अच्छा शौंक है। रंग-बिरंगे फूल, झाड़ियाँ और बेलें उनके घर में महकती रहती है। अपने व्यस्त समय में से भी वे कुछ घड़ियां इनके लिए निकाल लेते हैं। वे बहुत मिलन सार हैं। नगर के बहुत कम लोग ही ऐसे होंगे जो उन्हें जानते-पहचानते न हों। वे अनेक सामाजिक संस्थाओं से जुड़ कर समाज सेवा के कार्यो में सहयोग देते रहते हैं। वे सदा सभी के सुख-दुःख में सहायता करने के लिए तैयार रहते हैं। उनका व्यक्तित्व उन्हें जानने-पहचानने वाले सभी लोगों को एक उत्साह-सा प्रदान करता है।
    Question 20
    CBSEENHN10002023

    दूसरों की क्षमताओं को कम नहीं समझना चाहिए। इस शीर्षक को ध्यान में रखते हुए एक कहानी लिखिए।

    Solution

    घने जंगल में एक खरगोश उछलता-कूदता तेज चाल से भागा जा रहा था। वह बड़ा प्रसन्न था और मन ही मन सोच रहा था कि उस से तेज तो कोई भी नहीं भाग सकता था। सोचते-सोचते और भागते-भागते उसका ध्यान अपने आस-पास नहीं था। बिना ध्यान भागते हुए वह धीरे-धीरे चलते एक कछुए से टकरा गया। उस के पाँव पर हल्की-सी चोट लगी और वह रुक गया। वह कछुए से बोला-अरे, तुझे चलना तो आता नहीं पर फिर भी मेरे रास्ते में रुकावट बनता है।

    कछुआ बोला- भगवान् ने चलने की जितनी क्षमता मुझे दी है, मेरे लिए वही काफी है। मेरा इतनी गति से ही काम चल जाता है।

    खरगोश ने व्यंग्य से कहा-नहीं, नहीं। तू तो बहुत तेज भागता है। तू तो मुझे भी दौड़ में हरा सकता है-दौड़ लगाएगा मेरे साथ? कछुए ने कहा-नहीं भाई। मैं तुम्हारे सामने क्या हूँ? तुमसे दौड़ कैसे लगा सकता हूँ?

    खरगोश ने उसे उकसाते हुए कहा-अरे, हिम्मत तो कर। एक ही रास्ते पर हम दोनों जा रहे हैं। चल देखते हैं कि बड़े पीपल के पास तालाब तक पहले कौन पहुँचता है। यदि तू जीत गया तो मैं तुम्हें ‘सुस्त’ कभी नहीं कहूँगा। कछुए ने धीमे स्वर में कहा-अच्छा, चल तू। मैं कोशिश करता हूँ। यह सुनते ही खरगोश तेजी से तालाब की दिशा में भागा। बिना पीछे देखे वह लगातार भागता ही गया फिर उसने पीछे मुड़ कर देखा। कछुए का कोई अता-पता नहीं था। खरगोश एक छायादार पेड़ के नीचे बैठ गया। उसने सोचा कि कछुआ तो शाम होने तक उस तक नहीं पहुँच पाएगा। यदि वह इस छाया में कुछ देर सुस्ता ले तो फिर और तेज भाग सकेगा। बैठे-बैठे उसे नींद आ गई। जब उसकी आँख खुली तो हल्का-हल्का अँधेरा होने वाला था। वह तेज गीत से तालाब की ओर भागा। पर जब तालाब के किनारे पहुँचा तो कछुआ वहाँ पहले से ही पहुँच कर उसकी प्रतीक्षा कर रहा था। उसे देख कछुआ धीरे से मुस्कराया।

    खरगोश खिसिया कर बोला- अरे, तू पहुँच गया। मेरी जरा आँख लग गई थी।

    कछुआ बोला-कोई बात नहीं। ऐसा हो जाता है पर याद रखना कि तुम्हें दूसरों की क्षमताओं को कम नहीं समझना चाहिए। ईश्वर ने सबको अलग-अलग गुण दिए हैं।

    Question 21
    CBSEENHN10002024

    उन घटनाओं को याद करके लिखिए जब आपने अन्याय का प्रतिकार किया हो।

    Solution

    पहली घटना- मैं पिछले वर्ष से अपने स्कूल की हॉकी टीम में खेल रहा था। परसों जब शाम को मैं अभ्यास के लिए खेल के मैदान में पहुँचा तो खेल-कूद के इंचार्ज श्री गुप्ता के निकट एक अनजान लड़का हाँकी लिए हुए खड़ा था। मुझे देखते ही श्री गुप्ता ने कहा कि तुम्हारी जगह टीम में आज से यह लड़का खेलेगा। यह मेरा भतीजा है और इस स्कूल में इसने आज ही दाखिला लिया है। मैंने उनसे कहा कि पिछले वर्ष से मैं इस टीम का नियमित सदस्य हूँ और मेरा खेल भी अच्छा था। उन्होंने मुझे गुस्से से देखा और फिर कह दिया कि निर्णय का अधिकार उनका था कि कौन खेलेगा और कौन जाएगा। मैं चुपके से वहाँ से चला आया। मैं स्कूल के प्राचार्य के घर गया और उनसे बात की। उन्होंने मुझे समझाया और कहा कि वे स्कूल में श्री गुप्ता से बात कर मुझे बताएंगे। मैं नहीं जानता कि प्राचार्य महोदय की गुप्ता सर से क्या बात हुई पर सातवें पीरियड में स्कूल का चपड़ासी एक नोटिस लाया कि शाम को मुझे खेलने के लिए पहले की तरह ही पहुँचना था।

    दूसरी घटना- मेरे घर के बाहर कुछ कच्चे क्रिकेट खेल रहे थे। मैं उन्हें खेलता हुआ देख रहा था। जैसे ही एक लड़के ने बॉल को हिट किया वह उछल कर खिड़की के शीशे से टकराई और शीशा टूट गया। बच्चों ने शीशा टूटता देखा और वहाँ से भागे। एक छोटा लड़का वहाँ खड़ा था। वह खेल नहीं रहा था, बस खेल देख रहा था। मेरा बड़ा भाई साइकिल पर कहीं बाहर से आ रहा था। उसने लड़कों को भागते और खिड़की के टूटे शीशे को देखा। उसने झपट कर उस छोटे लड़के को पकड़ लिया। इससे पहले कि वह उस पर हाथ उठा पाता, मैंने उसे ऐसा करने से रोका क्योंकि शीशा तोड़ने में लड़के का कोई हाथ नहीं था।

     
    Question 22
    CBSEENHN10002025

    अवधी भाषा आज किन-किन क्षेत्रों में बोली जाती है?

    Solution
    पूर्वी हिंदी की अवधी भाषा जिन-जिन क्षेत्रों में बोली जाती है, वे हैं- उन्नाव, लखनऊ, राय बरेली, फतेहपुर, लखीम पुर खीरी, सीतापुर, बहराइच, बराबंकी, गोंडा, फैजाबाद, सुल्तानपुर, इलाहाबाद, जौनपुर, मिर्जापुर आदि ।
    Question 23
    CBSEENHN10002026

    श्री राम ने परशुराम के क्रोध को शांत करने के लिए क्या किया था?

    Solution
    सीता स्वयंवर के समय शिवजी के धनुष को श्री राम ने तोड़ दिया था जिस कारण परशुराम क्रोध से भर उठे थे। उनके क्रोध को शाँत करने के लिए राम ने उनसे बिना किसी हर्ष या विषाद के कहा था कि हे नाथ! शिवजी के धनुष को तोड़ने वाला कोई उन का ही दास होगा। यदि वे कोई आज्ञा देना चाहते थे तो उन्हें आदेश करें। उनकी वाणी में सहजता थी, मिठास थी। वे किसी भी प्रकार से परशुराम के गुस्से को बढ़ाने वाली वाणी नहीं बोले थे।
    Question 24
    CBSEENHN10002027

    परशुराम ने राम को क्या उत्तर दिया था?

    Solution
    परशुराम ने राम से कहा था कि सेवक वह होता है जो सेवा करे, न कि शत्रुता की राह पर चले। शत्रु का काम करके तो लड़ाई ही करनी चाहिए। जिसने शिव जी के धनुष को तोड़ा था वह सहस्रबाहु के समान उनका शत्रु था। उसे राज समाज से अलग हो जाना चाहिए। ऐसा न करने पर राज सभा में उपस्थित सभी राजा उनके द्वारा मार दिए जाएँगे।
    Question 25
    CBSEENHN10002028

    परशुराम को लक्ष्मण की किस बात पर अधिक गुस्सा आया था?

    Solution
    लक्ष्मण ने शिवजी की धनुष को धनुही कहा था। शिवजी के धनुष के अपमान से परशुराम का क्रोध बढ़ गया था। लक्ष्मण के वाक्य से यह प्रकट होता था कि शिवधनु इतना कमजोर था कि उस जैसे धनुहियों को वे अपने बचपन में खेल-खेल में ही तोड़ दिया करते थे। वैसे भी पुराने और जर्जर धनुषों को तोड़ देने से न कोई लाभ होता है और न हानि।
    Question 26
    CBSEENHN10002029

    लक्ष्मण ने परशुराम से यह क्यों कहा था कि उन्हें गाली देना शोभा नहीं देता था?

    Solution
    गाली तो असभ्य, मूर्ख और शक्तिहीन लोग दिया करते हैं। परशुराम वीर, धैर्यवान और क्षोभरहित थे। यदि उन्हें क्रोध आया था तो वे अपने अस्त्र-शस्त्रों के प्रयोग से उसे प्रकट कर सकते थे न कि गाली देकर असभ्य बनने से, क्योंकि शूरवीर युद्ध भूमि में अपनी वीरता दिखाते हैं।
    Question 27
    CBSEENHN10002030

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
    नाथ संभुधनु  भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा।।
    आयेसु काह कहिअ किन मोही। सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही।।
    सेवकु सो जो करै सेवकाई। अरिकरनी करि करिअ लराई।।
    सुनहु राम जेहि सिवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो रिपु मोरा।।
    सो बिलगाउ बिहाइ समाजा। न त मारे जैहहिं सब राजा।
    सुनि मुनिबचन लखन मुसुकाने। बोले परसुधरहि अवमाने।।
    बहु धनुही तोरी लरिकाई। कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाईं।।
    येहि धनु पर ममता केहि हेतू। सुनि रिसाइ कह भृगुकुलकेतू।।
         रे नृपबालक कालबस बोलत तोहि न सँभार।।
        धनुही सम त्रिपुरारिधनु बिदित सकल संसार।।

    Solution

    प्रसंग- प्रस्तुत पद हमारी पाठ्‌य-पुस्तक क्षितिज (भाग-दो) में संकलित ‘राम-परशुराम-लक्ष्मण संवाद’ से लिया गया है जिसे मूल रूप से गोस्वामी तुलसीदास के द्वारा रचित महाकाव्य ‘रामचरितमानस’ के बालकांड से ग्रहण किया गया है। गुरु विश्वामित्र के साथ राम और लक्ष्मण राजा जनक की सभा में सीता स्वयंवर के अवसर पर गए थे। राम ने वहां शिवजी के धनुष को तोड़ दिया था। परशुराम ने क्रोध में भर कर इसका विरोध किया था। तब राम ने उन्हें शांत करने का प्रयत्न किया था।

    व्याख्या- श्री राम ने परशुराम को संबोधित करते हुए कहा कि ‘हे नाथ! भगवान् शिव के धनुष को तोड़ने वाला आप का कोई एक दास ही होगा? क्या आज्ञा है, आप मुझ से क्यों नहीं कहते?’ यह सुनकर क्रोधी मुनि गुस्से में भर कर बोले-सेवक वह होता है जो सेवा का काम करे। शत्रु का काम कर के तो लड़ाई ही करनी चाहिए। हे राम! सुनो, जिस ने भगवान् शिव के धनुष को तोड़ा है, वह सहस्रबाहु के समान मेरा शत्रु है। वह इस समाज को छोड़ कर अलग हो जाए, नहीं तो इस सभा में उपस्थित राजा मारे जाएंगे। मुनि के वचन सुन कर लक्ष्मण जी मुस्कराए और परशुराम का अपमान करते हुए बोले-हे स्वामी! अपने बचपन में हम ने बहुत-सी धनुहियां तोड़ डाली थीं। किंतु आपने ऐसा क्रोध कभी नहीं किया। आपको इसी धनुष पर इतनी ममता किस कारण से है? यह सुन कर भृगु वंश की ध्वजा के रूप में परशुराम जी गुस्से में भरकर कहने लगे कि- अरे राजपुत्र! यमराज के वश में होने से तुझे बोलने में भी कुछ होश नहीं है। सारे संसार में प्रसिद्ध भगवान् शिव का धनुष क्या धनुही के समान है? अर्थात् तुम्हारे द्वारा शिव जी के धनुष को धनुही कहना तुम्हारा दुस्साहस है।

    Question 28
    CBSEENHN10002031

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    नाथ संभुधनु  भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा।।
    आयेसु काह कहिअ किन मोही। सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही।।
    सेवकु सो जो करै सेवकाई। अरिकरनी करि करिअ लराई।।
    सुनहु राम जेहि सिवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो रिपु मोरा।।
    सो बिलगाउ बिहाइ समाजा। न त मारे जैहहिं सब राजा।
    सुनि मुनिबचन लखन मुसुकाने। बोले परसुधरहि अवमाने।।
    बहु धनुही तोरी लरिकाई। कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाईं।।
    येहि धनु पर ममता केहि हेतू। सुनि रिसाइ कह भृगुकुलकेतू।।
         रे नृपबालक कालबस बोलत तोहि न सँभार।।
        धनुही सम त्रिपुरारिधनु बिदित सकल संसार।।

    पद में निहित भाव से स्पष्ट कीजिए।

    Solution
    रामचरितमानस के बालकांड से लिए गए इस पद में राम ने सीता स्वयंवर के समय शिव के धनुष को तोड़ दिया था जिस कारण परशुराम क्रोध से भर उठे थे। राम ने उन्हें अपने मीठे शब्दों से शांत करना चाहा था लेकिन लक्ष्मण ने व्यंग्य भरे अपने शब्दों से उनके क्रोध को भड़का दिया था और उससे जानना चाहा था कि क्या भगवान शिव का धनुष उसे धनुही के समान प्रतीत होता था।
    Question 29
    CBSEENHN10002032

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    नाथ संभुधनु  भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा।।
    आयेसु काह कहिअ किन मोही। सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही।।
    सेवकु सो जो करै सेवकाई। अरिकरनी करि करिअ लराई।।
    सुनहु राम जेहि सिवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो रिपु मोरा।।
    सो बिलगाउ बिहाइ समाजा। न त मारे जैहहिं सब राजा।
    सुनि मुनिबचन लखन मुसुकाने। बोले परसुधरहि अवमाने।।
    बहु धनुही तोरी लरिकाई। कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाईं।।
    येहि धनु पर ममता केहि हेतू। सुनि रिसाइ कह भृगुकुलकेतू।।
         रे नृपबालक कालबस बोलत तोहि न सँभार।।
        धनुही सम त्रिपुरारिधनु बिदित सकल संसार।।

    परशुराम को ‘नाथ’ कह कर किस ने अपनी बात कही थी?

    Solution
    परशुराम को राम ने ‘नाथ’ कह कर अपनी बात कही थी।
    Question 30
    CBSEENHN10002033

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    नाथ संभुधनु  भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा।।
    आयेसु काह कहिअ किन मोही। सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही।।
    सेवकु सो जो करै सेवकाई। अरिकरनी करि करिअ लराई।।
    सुनहु राम जेहि सिवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो रिपु मोरा।।
    सो बिलगाउ बिहाइ समाजा। न त मारे जैहहिं सब राजा।
    सुनि मुनिबचन लखन मुसुकाने। बोले परसुधरहि अवमाने।।
    बहु धनुही तोरी लरिकाई। कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाईं।।
    येहि धनु पर ममता केहि हेतू। सुनि रिसाइ कह भृगुकुलकेतू।।
         रे नृपबालक कालबस बोलत तोहि न सँभार।।
        धनुही सम त्रिपुरारिधनु बिदित सकल संसार।।

    परशुराम का स्वभाव कैसा था?

    Solution
    परशुराम का स्वभाव अभिमान और क्रोध से भरा हुआ था।
    Question 31
    CBSEENHN10002034

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    नाथ संभुधनु  भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा।।
    आयेसु काह कहिअ किन मोही। सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही।।
    सेवकु सो जो करै सेवकाई। अरिकरनी करि करिअ लराई।।
    सुनहु राम जेहि सिवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो रिपु मोरा।।
    सो बिलगाउ बिहाइ समाजा। न त मारे जैहहिं सब राजा।
    सुनि मुनिबचन लखन मुसुकाने। बोले परसुधरहि अवमाने।।
    बहु धनुही तोरी लरिकाई। कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाईं।।
    येहि धनु पर ममता केहि हेतू। सुनि रिसाइ कह भृगुकुलकेतू।।
         रे नृपबालक कालबस बोलत तोहि न सँभार।।
        धनुही सम त्रिपुरारिधनु बिदित सकल संसार।।

    शिव धनुष को तोड़ने वाले को परशुराम ने शत्रु माना था?

    Solution
    परशुराम ने शिव के धनुष को तोड़ने वाले को सहस्रबाहु के समान अपना शत्रु माना था।
    Question 32
    CBSEENHN10002035

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    नाथ संभुधनु  भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा।।
    आयेसु काह कहिअ किन मोही। सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही।।
    सेवकु सो जो करै सेवकाई। अरिकरनी करि करिअ लराई।।
    सुनहु राम जेहि सिवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो रिपु मोरा।।
    सो बिलगाउ बिहाइ समाजा। न त मारे जैहहिं सब राजा।
    सुनि मुनिबचन लखन मुसुकाने। बोले परसुधरहि अवमाने।।
    बहु धनुही तोरी लरिकाई। कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाईं।।
    येहि धनु पर ममता केहि हेतू। सुनि रिसाइ कह भृगुकुलकेतू।।
         रे नृपबालक कालबस बोलत तोहि न सँभार।।
        धनुही सम त्रिपुरारिधनु बिदित सकल संसार।।

    परशुराम ने क्या धमकी दी थी?


    Solution
    परशुराम ने धमकी दी थी कि यदि शिव का धनुष तोड़ने वाले को सभा से अलग नहीं किया गया तो वे सभा में उपस्थित सभी राजाओं का वध कर देंगे।
    Question 33
    CBSEENHN10002036

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    नाथ संभुधनु  भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा।।
    आयेसु काह कहिअ किन मोही। सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही।।
    सेवकु सो जो करै सेवकाई। अरिकरनी करि करिअ लराई।।
    सुनहु राम जेहि सिवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो रिपु मोरा।।
    सो बिलगाउ बिहाइ समाजा। न त मारे जैहहिं सब राजा।
    सुनि मुनिबचन लखन मुसुकाने। बोले परसुधरहि अवमाने।।
    बहु धनुही तोरी लरिकाई। कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाईं।।
    येहि धनु पर ममता केहि हेतू। सुनि रिसाइ कह भृगुकुलकेतू।।
         रे नृपबालक कालबस बोलत तोहि न सँभार।।
        धनुही सम त्रिपुरारिधनु बिदित सकल संसार।।

    परशुराम के वचनों को सुनकर लक्ष्मण के चेहरे पर कैसे भाव प्रकट हुए थे?



    Solution
    परशुराम की सभी राजाओं का वध कर देने की धमकी को सुनकर लक्ष्मण के चेहरे पर व्यंग्यपूर्ण मुस्कराहट का भाव प्रकट हो गया था।
    Question 34
    CBSEENHN10002037

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    नाथ संभुधनु  भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा।।
    आयेसु काह कहिअ किन मोही। सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही।।
    सेवकु सो जो करै सेवकाई। अरिकरनी करि करिअ लराई।।
    सुनहु राम जेहि सिवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो रिपु मोरा।।
    सो बिलगाउ बिहाइ समाजा। न त मारे जैहहिं सब राजा।
    सुनि मुनिबचन लखन मुसुकाने। बोले परसुधरहि अवमाने।।
    बहु धनुही तोरी लरिकाई। कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाईं।।
    येहि धनु पर ममता केहि हेतू। सुनि रिसाइ कह भृगुकुलकेतू।।
         रे नृपबालक कालबस बोलत तोहि न सँभार।।
        धनुही सम त्रिपुरारिधनु बिदित सकल संसार।।

    लक्ष्मण ने शिव धनुष को क्या कहा था?


    Solution
    लक्ष्मण ने शिवधनुष को धनुही कहा था।
    Question 35
    CBSEENHN10002038

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    नाथ संभुधनु  भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा।।
    आयेसु काह कहिअ किन मोही। सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही।।
    सेवकु सो जो करै सेवकाई। अरिकरनी करि करिअ लराई।।
    सुनहु राम जेहि सिवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो रिपु मोरा।।
    सो बिलगाउ बिहाइ समाजा। न त मारे जैहहिं सब राजा।
    सुनि मुनिबचन लखन मुसुकाने। बोले परसुधरहि अवमाने।।
    बहु धनुही तोरी लरिकाई। कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाईं।।
    येहि धनु पर ममता केहि हेतू। सुनि रिसाइ कह भृगुकुलकेतू।।
         रे नृपबालक कालबस बोलत तोहि न सँभार।।
        धनुही सम त्रिपुरारिधनु बिदित सकल संसार।।

    लक्ष्मण की किस बात को सुन कर परशुराम को अधिक क्रोध आया था?


    Solution
    जब लक्ष्मण ने यह कहा था कि उन्होंने अपने लड़कपन में वैसी अनेक धनुहियां खेल-खेल में तोड़ दी थीं तो परशुराम को अधिक क्रोध आया था।
    Question 36
    CBSEENHN10002039

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    नाथ संभुधनु  भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा।।
    आयेसु काह कहिअ किन मोही। सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही।।
    सेवकु सो जो करै सेवकाई। अरिकरनी करि करिअ लराई।।
    सुनहु राम जेहि सिवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो रिपु मोरा।।
    सो बिलगाउ बिहाइ समाजा। न त मारे जैहहिं सब राजा।
    सुनि मुनिबचन लखन मुसुकाने। बोले परसुधरहि अवमाने।।
    बहु धनुही तोरी लरिकाई। कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाईं।।
    येहि धनु पर ममता केहि हेतू। सुनि रिसाइ कह भृगुकुलकेतू।।
         रे नृपबालक कालबस बोलत तोहि न सँभार।।
        धनुही सम त्रिपुरारिधनु बिदित सकल संसार।।

    परशुराम के अनुसार लक्ष्मण किस के बस में हो कर बोल रहा था?

    Solution
    परशुराम के अनुसार लक्ष्मण काल के बस में हो कर बिना सोचे-समझे बोल रहा था।
    Question 37
    CBSEENHN10002040

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    नाथ संभुधनु  भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा।।
    आयेसु काह कहिअ किन मोही। सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही।।
    सेवकु सो जो करै सेवकाई। अरिकरनी करि करिअ लराई।।
    सुनहु राम जेहि सिवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो रिपु मोरा।।
    सो बिलगाउ बिहाइ समाजा। न त मारे जैहहिं सब राजा।
    सुनि मुनिबचन लखन मुसुकाने। बोले परसुधरहि अवमाने।।
    बहु धनुही तोरी लरिकाई। कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाईं।।
    येहि धनु पर ममता केहि हेतू। सुनि रिसाइ कह भृगुकुलकेतू।।
         रे नृपबालक कालबस बोलत तोहि न सँभार।।
        धनुही सम त्रिपुरारिधनु बिदित सकल संसार।।

    परशुराम ने राम के बचनों का उत्तर कैसे दिया?

    Solution
    परशुराम ने राम के विनयपूर्वक कहे गए शब्दों का उत्तर क्रोधपूर्वक दिया था। उन्होंने कहा था कि तुम कैसे सेवक हो? सेवक तो वह होता है जो सेवा करता है। जो शत्रु जैसा व्यवहार करता है, उस से तो लड़ाई ही की जानी चाहिए।
    Question 38
    CBSEENHN10002041

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    नाथ संभुधनु  भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा।।
    आयेसु काह कहिअ किन मोही। सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही।।
    सेवकु सो जो करै सेवकाई। अरिकरनी करि करिअ लराई।।
    सुनहु राम जेहि सिवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो रिपु मोरा।।
    सो बिलगाउ बिहाइ समाजा। न त मारे जैहहिं सब राजा।
    सुनि मुनिबचन लखन मुसुकाने। बोले परसुधरहि अवमाने।।
    बहु धनुही तोरी लरिकाई। कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाईं।।
    येहि धनु पर ममता केहि हेतू। सुनि रिसाइ कह भृगुकुलकेतू।।
         रे नृपबालक कालबस बोलत तोहि न सँभार।।
        धनुही सम त्रिपुरारिधनु बिदित सकल संसार।।

    कवि के कथन को नाटकीयता किसने प्रदान की है?

    Solution
    तुलसीदास ने परशुराम के क्रोधपूर्ण स्वभाव और लक्ष्मण की निर्भयता को आधार बना कर अपनी बात को नाटकीयता प्रदान की है।
    Question 39
    CBSEENHN10002042

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    नाथ संभुधनु  भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा।।
    आयेसु काह कहिअ किन मोही। सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही।।
    सेवकु सो जो करै सेवकाई। अरिकरनी करि करिअ लराई।।
    सुनहु राम जेहि सिवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो रिपु मोरा।।
    सो बिलगाउ बिहाइ समाजा। न त मारे जैहहिं सब राजा।
    सुनि मुनिबचन लखन मुसुकाने। बोले परसुधरहि अवमाने।।
    बहु धनुही तोरी लरिकाई। कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाईं।।
    येहि धनु पर ममता केहि हेतू। सुनि रिसाइ कह भृगुकुलकेतू।।
         रे नृपबालक कालबस बोलत तोहि न सँभार।।
        धनुही सम त्रिपुरारिधनु बिदित सकल संसार।।

    किस तत्त्व ने पद को स्वाभाविकता का गुण प्रदान किया है?

    Solution
    संवादात्मकता ने कथन को स्वाभाविकता का गुण प्रदान किया है।

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    Question 40
    CBSEENHN10002043

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    नाथ संभुधनु  भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा।।
    आयेसु काह कहिअ किन मोही। सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही।।
    सेवकु सो जो करै सेवकाई। अरिकरनी करि करिअ लराई।।
    सुनहु राम जेहि सिवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो रिपु मोरा।।
    सो बिलगाउ बिहाइ समाजा। न त मारे जैहहिं सब राजा।
    सुनि मुनिबचन लखन मुसुकाने। बोले परसुधरहि अवमाने।।
    बहु धनुही तोरी लरिकाई। कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाईं।।
    येहि धनु पर ममता केहि हेतू। सुनि रिसाइ कह भृगुकुलकेतू।।
         रे नृपबालक कालबस बोलत तोहि न सँभार।।
        धनुही सम त्रिपुरारिधनु बिदित सकल संसार।।

    पद में किस काव्य गुण की प्रधानता है?

    Solution
    ओज गुण प्रधान है।
    Question 41
    CBSEENHN10002044

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    नाथ संभुधनु  भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा।।
    आयेसु काह कहिअ किन मोही। सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही।।
    सेवकु सो जो करै सेवकाई। अरिकरनी करि करिअ लराई।।
    सुनहु राम जेहि सिवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो रिपु मोरा।।
    सो बिलगाउ बिहाइ समाजा। न त मारे जैहहिं सब राजा।
    सुनि मुनिबचन लखन मुसुकाने। बोले परसुधरहि अवमाने।।
    बहु धनुही तोरी लरिकाई। कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाईं।।
    येहि धनु पर ममता केहि हेतू। सुनि रिसाइ कह भृगुकुलकेतू।।
         रे नृपबालक कालबस बोलत तोहि न सँभार।।
        धनुही सम त्रिपुरारिधनु बिदित सकल संसार।।

    कवि ने किस छंद का प्रयोग किया है?

    Solution
    दोहा-चौपाई छंद का प्रयोग है।
    Question 42
    CBSEENHN10002045

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    नाथ संभुधनु  भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा।।
    आयेसु काह कहिअ किन मोही। सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही।।
    सेवकु सो जो करै सेवकाई। अरिकरनी करि करिअ लराई।।
    सुनहु राम जेहि सिवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो रिपु मोरा।।
    सो बिलगाउ बिहाइ समाजा। न त मारे जैहहिं सब राजा।
    सुनि मुनिबचन लखन मुसुकाने। बोले परसुधरहि अवमाने।।
    बहु धनुही तोरी लरिकाई। कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाईं।।
    येहि धनु पर ममता केहि हेतू। सुनि रिसाइ कह भृगुकुलकेतू।।
         रे नृपबालक कालबस बोलत तोहि न सँभार।।
        धनुही सम त्रिपुरारिधनु बिदित सकल संसार।।

    थन को संगीतात्मकता का गुण कैसे प्राप्त हुआ है?

    Solution
    स्वरमैत्री ने कवि को संगीतात्मकता का गुण प्रदान किया है।
    Question 43
    CBSEENHN10002046

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    नाथ संभुधनु  भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा।।
    आयेसु काह कहिअ किन मोही। सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही।।
    सेवकु सो जो करै सेवकाई। अरिकरनी करि करिअ लराई।।
    सुनहु राम जेहि सिवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो रिपु मोरा।।
    सो बिलगाउ बिहाइ समाजा। न त मारे जैहहिं सब राजा।
    सुनि मुनिबचन लखन मुसुकाने। बोले परसुधरहि अवमाने।।
    बहु धनुही तोरी लरिकाई। कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाईं।।
    येहि धनु पर ममता केहि हेतू। सुनि रिसाइ कह भृगुकुलकेतू।।
         रे नृपबालक कालबस बोलत तोहि न सँभार।।
        धनुही सम त्रिपुरारिधनु बिदित सकल संसार।।

    कवि ने किस भाषा का प्रयोग किया है?

    Solution
    अवधी भाषा है।
    Question 44
    CBSEENHN10002047

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    नाथ संभुधनु  भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा।।
    आयेसु काह कहिअ किन मोही। सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही।।
    सेवकु सो जो करै सेवकाई। अरिकरनी करि करिअ लराई।।
    सुनहु राम जेहि सिवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो रिपु मोरा।।
    सो बिलगाउ बिहाइ समाजा। न त मारे जैहहिं सब राजा।
    सुनि मुनिबचन लखन मुसुकाने। बोले परसुधरहि अवमाने।।
    बहु धनुही तोरी लरिकाई। कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाईं।।
    येहि धनु पर ममता केहि हेतू। सुनि रिसाइ कह भृगुकुलकेतू।।
         रे नृपबालक कालबस बोलत तोहि न सँभार।।
        धनुही सम त्रिपुरारिधनु बिदित सकल संसार।।

    पद में किस प्रकार के शब्दों की अधिकता है?

    Solution
    तद्‌भव शब्दावली का अधिकता से प्रयोग है।
    Question 45
    CBSEENHN10002048

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    नाथ संभुधनु  भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा।।
    आयेसु काह कहिअ किन मोही। सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही।।
    सेवकु सो जो करै सेवकाई। अरिकरनी करि करिअ लराई।।
    सुनहु राम जेहि सिवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो रिपु मोरा।।
    सो बिलगाउ बिहाइ समाजा। न त मारे जैहहिं सब राजा।
    सुनि मुनिबचन लखन मुसुकाने। बोले परसुधरहि अवमाने।।
    बहु धनुही तोरी लरिकाई। कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाईं।।
    येहि धनु पर ममता केहि हेतू। सुनि रिसाइ कह भृगुकुलकेतू।।
         रे नृपबालक कालबस बोलत तोहि न सँभार।।
        धनुही सम त्रिपुरारिधनु बिदित सकल संसार।।

    किस काव्य-रस का प्रयोग किया गया है?

    Solution
    वीर रस का प्रयोग है।
    Question 46
    CBSEENHN10002049

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    नाथ संभुधनु  भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा।।
    आयेसु काह कहिअ किन मोही। सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही।।
    सेवकु सो जो करै सेवकाई। अरिकरनी करि करिअ लराई।।
    सुनहु राम जेहि सिवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो रिपु मोरा।।
    सो बिलगाउ बिहाइ समाजा। न त मारे जैहहिं सब राजा।
    सुनि मुनिबचन लखन मुसुकाने। बोले परसुधरहि अवमाने।।
    बहु धनुही तोरी लरिकाई। कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाईं।।
    येहि धनु पर ममता केहि हेतू। सुनि रिसाइ कह भृगुकुलकेतू।।
         रे नृपबालक कालबस बोलत तोहि न सँभार।।
        धनुही सम त्रिपुरारिधनु बिदित सकल संसार।।

    शिव और परशुराम के पद से दो-दो पर्यायवाची छाँटिए।

    Solution

    शिव = संभु, त्रिपुरारि।
    परशुराम = परसुधरही, भृगुकुलकेतू।

    Question 47
    CBSEENHN10002050

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    नाथ संभुधनु  भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा।।
    आयेसु काह कहिअ किन मोही। सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही।।
    सेवकु सो जो करै सेवकाई। अरिकरनी करि करिअ लराई।।
    सुनहु राम जेहि सिवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो रिपु मोरा।।
    सो बिलगाउ बिहाइ समाजा। न त मारे जैहहिं सब राजा।
    सुनि मुनिबचन लखन मुसुकाने। बोले परसुधरहि अवमाने।।
    बहु धनुही तोरी लरिकाई। कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाईं।।
    येहि धनु पर ममता केहि हेतू। सुनि रिसाइ कह भृगुकुलकेतू।।
         रे नृपबालक कालबस बोलत तोहि न सँभार।।
        धनुही सम त्रिपुरारिधनु बिदित सकल संसार।।

    पद में प्रयुक्त अलंकारों से चुन कर लिखिए।

    Solution

    अनुप्रास-
    • संभूधनु भंजनिहारा
    • आयेसु काह कहिअ किन
    • अरिकरनी कीर करिअ
    • सहसबाहु सम सो, सकल संसार
    • बिलगाउ बिहाइ

    Question 48
    CBSEENHN10002051

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
    लखन कहा हसि हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना।।
    का छति लाभु जून धनु तोरें। देखा राम नयन के भोरें।।
    छुअत टूट रघुंतिहु न दोसू। मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू।।
    बोले चितै परसु की ओरा। रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा।।
    बालकु बोलि बधौं नहि तोही। केवल मुनि जड़ जानहि मोही।।
    बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही।।
    भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही।।
    सहसबाहुभुज छेदनिहारा।। परसु बिलोकु महीपकुमारा।।
    मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीपकिसोर।
    गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर।।

    Solution

    प्रसंग- प्रस्तुत पद गोस्वामी तुलसीदास के द्वारा रचित महाकाव्य ‘रामर्चारेतमानस’ के बाल कांड से लिया गया हैं। ‘सीता स्वयंवर’ के समय श्री राम ने शिव का धनुष तोड़ दिया था जिस कारण परशुराम क्रोध में भर गए थे। लक्ष्मण के द्वारा व्यंग्य करने पर परशुराम का गुस्सा भड़क गया था पर उनके गुस्से का लक्ष्मण पर कोई प्रभाव पड़ता दिखाई नहीं दे रहा था।

    व्याख्या- लक्ष्मण ने हँस कर कहा कि हे देव! सुनिए। हमारे लिए तो सभी धनुष एक-से ही हैं। पुराने धनुष को तोड़ने में क्या लाभ और क्या हानि! श्री रामचंद्र जी ने तो इसे नया समझ कर धोखे से ही देखा था। फिर यह तो छूते ही टूट गया। इस में रघुकुल के स्वामी श्री राम का कोई दोष नहीं है। हे मुनि! आप बिना किसी कारण के ही क्रोध क्यों करते हैं? परशुराम ने अपने फरसे की ओर देखकर कहा-अरे दुष्ट! तूने मेरा स्वभाव नहीं सुना? मैं तुम्हें बालक समझ कर नहीं मार रहा हूँ। अरे मूर्ख! क्या तू मुझे निरा मुनि ही समझता है। मैं बालब्रह्मचारी और अत्यंत क्रोधी हूँ। मैं क्षत्रिय कुल का शत्रु तो विश्व भर में प्रसिद्ध हूँ। अपनी भुजाओं के बल से मैंने पृथ्वी को राजाओं से रहित कर दिया और कई बार उसे ब्राह्मणों को दे डाला। हे राजकुमार! सहस्रबाहु की भुजाओं को काट देने वाले मेरे इस फरसे को देख! अरे राजा के बालक, तू अपने माता-पिता को चिंता के वश में न कर। मेरा फरसा बड़ा भयानक है। यह गर्भ के बच्चों का भी नाश करने वाला है। अर्थात् यह छोटे-बड़े किसी की भी परवाह नहीं करता।

    Question 49
    CBSEENHN10002052

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    लखन कहा हसि हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना।।
    का छति लाभु जून धनु तोरें। देखा राम नयन के भोरें।।
    छुअत टूट रघुंतिहु न दोसू। मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू।।
    बोले चितै परसु की ओरा। रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा।।
    बालकु बोलि बधौं नहि तोही। केवल मुनि जड़ जानहि मोही।।
    बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही।।
    भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही।।
    सहसबाहुभुज छेदनिहारा।। परसु बिलोकु महीपकुमारा।।
    मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीपकिसोर।
    गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर।।

    पद में निहित भाव स्पष्ट कीजिए।

    Solution
    गोस्वामी तुलसीदास ने परशुराम के प्रति लक्ष्मण के व्यंग्य भावों तथा परशुराम के गुस्से को प्रकट करते हुए स्पष्ट किया है कि परशुराम को अपने बल-पराक्रम पर घमंड था पर लक्ष्मण उन के बल से कदापि प्रभावित नहीं थे। वे उन से बिल्कुल नहीं डरते थे।
    Question 50
    CBSEENHN10002053

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    लखन कहा हसि हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना।।
    का छति लाभु जून धनु तोरें। देखा राम नयन के भोरें।।
    छुअत टूट रघुंतिहु न दोसू। मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू।।
    बोले चितै परसु की ओरा। रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा।।
    बालकु बोलि बधौं नहि तोही। केवल मुनि जड़ जानहि मोही।।
    बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही।।
    भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही।।
    सहसबाहुभुज छेदनिहारा।। परसु बिलोकु महीपकुमारा।।
    मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीपकिसोर।
    गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर।।

    लक्ष्मण सभी धनुषों को कैसा मानते थे?
     

    Solution

    लक्ष्मण सभी धनुषों को एक-सा ही मानते थे। उनकी दृष्टि में उन में कोई अंतर नहीं था।

     
    Question 51
    CBSEENHN10002054

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    लखन कहा हसि हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना।।
    का छति लाभु जून धनु तोरें। देखा राम नयन के भोरें।।
    छुअत टूट रघुंतिहु न दोसू। मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू।।
    बोले चितै परसु की ओरा। रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा।।
    बालकु बोलि बधौं नहि तोही। केवल मुनि जड़ जानहि मोही।।
    बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही।।
    भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही।।
    सहसबाहुभुज छेदनिहारा।। परसु बिलोकु महीपकुमारा।।
    मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीपकिसोर।
    गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर।।

    राम ने धनुष को किस धोखे से छू लिया था?

    Solution
    राम ने शिवजी के धनुष को नया धनुष समझ कर छू लिया था।
    Question 52
    CBSEENHN10002055

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    लखन कहा हसि हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना।।
    का छति लाभु जून धनु तोरें। देखा राम नयन के भोरें।।
    छुअत टूट रघुंतिहु न दोसू। मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू।।
    बोले चितै परसु की ओरा। रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा।।
    बालकु बोलि बधौं नहि तोही। केवल मुनि जड़ जानहि मोही।।
    बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही।।
    भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही।।
    सहसबाहुभुज छेदनिहारा।। परसु बिलोकु महीपकुमारा।।
    मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीपकिसोर।
    गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर।।

    लक्ष्मण के अनुसार धनुष तोड़ने में राम का कोई दोष क्यों नहीं था?

    Solution
    लक्ष्मण के अनुसार धनुष को तोड़ने में राम का कोई दोष नहीं था। धनुष पुराना था और राम के द्वारा छूते ही वह टूट गया था।
    Question 53
    CBSEENHN10002056

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    लखन कहा हसि हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना।।
    का छति लाभु जून धनु तोरें। देखा राम नयन के भोरें।।
    छुअत टूट रघुंतिहु न दोसू। मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू।।
    बोले चितै परसु की ओरा। रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा।।
    बालकु बोलि बधौं नहि तोही। केवल मुनि जड़ जानहि मोही।।
    बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही।।
    भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही।।
    सहसबाहुभुज छेदनिहारा।। परसु बिलोकु महीपकुमारा।।
    मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीपकिसोर।
    गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर।।

    परशुराम लक्ष्मण का वध क्यों नहीं कर रहा था?

    Solution
    परशुराम लक्ष्मण पर अत्यंत क्रोधित था पर फिर भी उसका वध नहीं कर रहा था क्योंकि अभी उसकी आयु काफी कम थी, वह बालक था।
    Question 54
    CBSEENHN10002057

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    लखन कहा हसि हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना।।
    का छति लाभु जून धनु तोरें। देखा राम नयन के भोरें।।
    छुअत टूट रघुंतिहु न दोसू। मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू।।
    बोले चितै परसु की ओरा। रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा।।
    बालकु बोलि बधौं नहि तोही। केवल मुनि जड़ जानहि मोही।।
    बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही।।
    भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही।।
    सहसबाहुभुज छेदनिहारा।। परसु बिलोकु महीपकुमारा।।
    मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीपकिसोर।
    गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर।।

    परशुराम विश्व भर में अपने किन गुणों के कारण बिख्यात था?

    Solution
    विश्व भर में परशुराम अपने क्रोध और ब्रह्मचर्य के कारण प्रसिद्ध था। वह क्षत्रिय वंश को अपना शत्रु मानता था और उसे नष्ट करने की इच्छा के कारण विख्यात था।
    Question 55
    CBSEENHN10002058

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    लखन कहा हसि हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना।।
    का छति लाभु जून धनु तोरें। देखा राम नयन के भोरें।।
    छुअत टूट रघुंतिहु न दोसू। मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू।।
    बोले चितै परसु की ओरा। रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा।।
    बालकु बोलि बधौं नहि तोही। केवल मुनि जड़ जानहि मोही।।
    बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही।।
    भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही।।
    सहसबाहुभुज छेदनिहारा।। परसु बिलोकु महीपकुमारा।।
    मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीपकिसोर।
    गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु र अति घोर।।

    परशुराम ने अपनी भुजाओं के बल से क्या किया था?

    Solution
    परशुराम ने अपनी भुजाओं के बल से पृथ्वी को अनेक बार क्षत्रिय राजाओं से रहित कर दिया था और उन का राज्य ब्राहमणों को दे दिया था।
    Question 56
    CBSEENHN10002059

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    लखन कहा हसि हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना।।
    का छति लाभु जून धनु तोरें। देखा राम नयन के भोरें।।
    छुअत टूट रघुंतिहु न दोसू। मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू।।
    बोले चितै परसु की ओरा। रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा।।
    बालकु बोलि बधौं नहि तोही। केवल मुनि जड़ जानहि मोही।।
    बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही।।
    भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही।।
    सहसबाहुभुज छेदनिहारा।। परसु बिलोकु महीपकुमारा।।
    मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीपकिसोर।
    गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु र अति घोर।।

    परशुराम ने धमकाते हुए लक्ष्मण को क्या देखने के लिए कहा था?

    Solution
    परशुराम ने धमकाते हुए लक्ष्मण को अपना फरसा देखने के लिए कहा था जिसने सहस्रबाहु की भुजाओं को काट दिया था।
    Question 57
    CBSEENHN10002060

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    लखन कहा हसि हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना।।
    का छति लाभु जून धनु तोरें। देखा राम नयन के भोरें।।
    छुअत टूट रघुंतिहु न दोसू। मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू।।
    बोले चितै परसु की ओरा। रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा।।
    बालकु बोलि बधौं नहि तोही। केवल मुनि जड़ जानहि मोही।।
    बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही।।
    भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही।।
    सहसबाहुभुज छेदनिहारा।। परसु बिलोकु महीपकुमारा।।
    मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीपकिसोर।
    गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु र अति घोर।।

    परशुराम का फरसा क्या कर सकने की योग्यता रखता था?

    Solution
    परशुराम का फरसा माँ के गर्भ में विद्यमान बच्चों को भी नष्ट कर देने की योग्यता रखता था।
    Question 58
    CBSEENHN10002061

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    लखन कहा हसि हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना।।
    का छति लाभु जून धनु तोरें। देखा राम नयन के भोरें।।
    छुअत टूट रघुंतिहु न दोसू। मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू।।
    बोले चितै परसु की ओरा। रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा।।
    बालकु बोलि बधौं नहि तोही। केवल मुनि जड़ जानहि मोही।।
    बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही।।
    भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही।।
    सहसबाहुभुज छेदनिहारा।। परसु बिलोकु महीपकुमारा।।
    मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीपकिसोर।
    गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु र अति घोर।।

    पद में परशुराम के परिचय को स्पष्ट कीजिए।

    Solution
    परशुराम बालब्रह्मचारी, महाक्रोधी, क्षत्रियों के दुश्मन और अपार बलशाली ब्राहमण थे। उन्होंने क्षत्रिय राजाओं ने नाश किया था।
    Question 59
    CBSEENHN10002062

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    लखन कहा हसि हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना।।
    का छति लाभु जून धनु तोरें। देखा राम नयन के भोरें।।
    छुअत टूट रघुंतिहु न दोसू। मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू।।
    बोले चितै परसु की ओरा। रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा।।
    बालकु बोलि बधौं नहि तोही। केवल मुनि जड़ जानहि मोही।।
    बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही।।
    भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही।।
    सहसबाहुभुज छेदनिहारा।। परसु बिलोकु महीपकुमारा।।
    मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीपकिसोर।
    गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु र अति घोर।।

    पद की भाषा कौन-सी है?

    Solution
    पद की भाषा अवधी है।
    Question 60
    CBSEENHN10002063

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    लखन कहा हसि हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना।।
    का छति लाभु जून धनु तोरें। देखा राम नयन के भोरें।।
    छुअत टूट रघुंतिहु न दोसू। मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू।।
    बोले चितै परसु की ओरा। रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा।।
    बालकु बोलि बधौं नहि तोही। केवल मुनि जड़ जानहि मोही।।
    बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही।।
    भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही।।
    सहसबाहुभुज छेदनिहारा।। परसु बिलोकु महीपकुमारा।।
    मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीपकिसोर।
    गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु र अति घोर।।

    कवि ने किस छंद का प्रयोग किया है?

    Solution
    दोहा-चौपाई छंद।
    Question 61
    CBSEENHN10002064

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    लखन कहा हसि हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना।।
    का छति लाभु जून धनु तोरें। देखा राम नयन के भोरें।।
    छुअत टूट रघुंतिहु न दोसू। मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू।।
    बोले चितै परसु की ओरा। रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा।।
    बालकु बोलि बधौं नहि तोही। केवल मुनि जड़ जानहि मोही।।
    बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही।।
    भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही।।
    सहसबाहुभुज छेदनिहारा।। परसु बिलोकु महीपकुमारा।।
    मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीपकिसोर।
    गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु र अति घोर।।

    गेयता के गुण का आधार क्या है?

    Solution
    स्वरमैत्री।
    Question 62
    CBSEENHN10002065

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    लखन कहा हसि हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना।।
    का छति लाभु जून धनु तोरें। देखा राम नयन के भोरें।।
    छुअत टूट रघुंतिहु न दोसू। मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू।।
    बोले चितै परसु की ओरा। रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा।।
    बालकु बोलि बधौं नहि तोही। केवल मुनि जड़ जानहि मोही।।
    बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही।।
    भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही।।
    सहसबाहुभुज छेदनिहारा।। परसु बिलोकु महीपकुमारा।।
    मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीपकिसोर।
    गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु र अति घोर।।

    किस काव्य-रस की प्रधानता है?

    Solution
    वीर रस।
    Question 63
    CBSEENHN10002066

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    लखन कहा हसि हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना।।
    का छति लाभु जून धनु तोरें। देखा राम नयन के भोरें।।
    छुअत टूट रघुंतिहु न दोसू। मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू।।
    बोले चितै परसु की ओरा। रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा।।
    बालकु बोलि बधौं नहि तोही। केवल मुनि जड़ जानहि मोही।।
    बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही।।
    भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही।।
    सहसबाहुभुज छेदनिहारा।। परसु बिलोकु महीपकुमारा।।
    मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीपकिसोर।
    गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु र अति घोर।।

    इस पद को किस मूल ग्रंथ से लिया जाता है?

    Solution
    राम चरित मानस (बालकांड)
    Question 64
    CBSEENHN10002067

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    लखन कहा हसि हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना।।
    का छति लाभु जून धनु तोरें। देखा राम नयन के भोरें।।
    छुअत टूट रघुंतिहु न दोसू। मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू।।
    बोले चितै परसु की ओरा। रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा।।
    बालकु बोलि बधौं नहि तोही। केवल मुनि जड़ जानहि मोही।।
    बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही।।
    भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही।।
    सहसबाहुभुज छेदनिहारा।। परसु बिलोकु महीपकुमारा।।
    मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीपकिसोर।
    गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु र अति घोर।।

    किस काव्य-गुण का प्रयोग किया जाता है?

    Solution
    ओज गुण।
    Question 65
    CBSEENHN10002068

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    लखन कहा हसि हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना।।
    का छति लाभु जून धनु तोरें। देखा राम नयन के भोरें।।
    छुअत टूट रघुंतिहु न दोसू। मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू।।
    बोले चितै परसु की ओरा। रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा।।
    बालकु बोलि बधौं नहि तोही। केवल मुनि जड़ जानहि मोही।।
    बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही।।
    भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही।।
    सहसबाहुभुज छेदनिहारा।। परसु बिलोकु महीपकुमारा।।
    मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीपकिसोर।
    गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु र अति घोर।।

    किस प्रकार की शब्दावली की पद में प्रधानता है?

    Solution
    तद्‌भाव शब्दावली।
    Question 66
    CBSEENHN10002069

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    लखन कहा हसि हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना।।
    का छति लाभु जून धनु तोरें। देखा राम नयन के भोरें।।
    छुअत टूट रघुंतिहु न दोसू। मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू।।
    बोले चितै परसु की ओरा। रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा।।
    बालकु बोलि बधौं नहि तोही। केवल मुनि जड़ जानहि मोही।।
    बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही।।
    भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही।।
    सहसबाहुभुज छेदनिहारा।। परसु बिलोकु महीपकुमारा।।
    मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीपकिसोर।
    गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु र अति घोर।।

    पद से दो तद्‌भव शब्द छाँट कर लिखिए।

    Solution
    कहा, छति।
    Question 67
    CBSEENHN10002070

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    लखन कहा हसि हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना।।
    का छति लाभु जून धनु तोरें। देखा राम नयन के भोरें।।
    छुअत टूट रघुंतिहु न दोसू। मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू।।
    बोले चितै परसु की ओरा। रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा।।
    बालकु बोलि बधौं नहि तोही। केवल मुनि जड़ जानहि मोही।।
    बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही।।
    भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही।।
    सहसबाहुभुज छेदनिहारा।। परसु बिलोकु महीपकुमारा।।
    मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीपकिसोर।
    गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु र अति घोर।।

    लक्ष्मण की शब्दावली में किन विशेषताओं की प्रमुखता है?

    Solution
    व्यंग्य, क्रोध
    Question 68
    CBSEENHN10002071

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    लखन कहा हसि हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना।।
    का छति लाभु जून धनु तोरें। देखा राम नयन के भोरें।।
    छुअत टूट रघुंतिहु न दोसू। मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू।।
    बोले चितै परसु की ओरा। रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा।।
    बालकु बोलि बधौं नहि तोही। केवल मुनि जड़ जानहि मोही।।
    बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही।।
    भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही।।
    सहसबाहुभुज छेदनिहारा।। परसु बिलोकु महीपकुमारा।।
    मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीपकिसोर।
    गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु र अति घोर।।

    पद से दो तद्‌भव शब्द छाँट कर लिखिए।

    Solution
    कहा, छति।
    Question 69
    CBSEENHN10002072

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    लखन कहा हसि हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना।।
    का छति लाभु जून धनु तोरें। देखा राम नयन के भोरें।।
    छुअत टूट रघुंतिहु न दोसू। मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू।।
    बोले चितै परसु की ओरा। रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा।।
    बालकु बोलि बधौं नहि तोही। केवल मुनि जड़ जानहि मोही।।
    बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही।।
    भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही।।
    सहसबाहुभुज छेदनिहारा।। परसु बिलोकु महीपकुमारा।।
    मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीपकिसोर।
    गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु र अति घोर।।

    पद से दो तत्सम शब्द छाँट कर लिखिए।

    Solution
    जड़, भूप
    Question 70
    CBSEENHN10002073

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    लखन कहा हसि हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना।।
    का छति लाभु जून धनु तोरें। देखा राम नयन के भोरें।।
    छुअत टूट रघुंतिहु न दोसू। मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू।।
    बोले चितै परसु की ओरा। रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा।।
    बालकु बोलि बधौं नहि तोही। केवल मुनि जड़ जानहि मोही।।
    बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही।।
    भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही।।
    सहसबाहुभुज छेदनिहारा।। परसु बिलोकु महीपकुमारा।।
    मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीपकिसोर।
    गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु र अति घोर।।

    प्रयुक्त अलंकारों को छाँट कर लिखिए।

    Solution

    अनुप्रास-
    • हसि, हमरे, नहि तोही, जानहि मोही . जून धनु, मुनि बिनु
    • काज करिअ कत
    • सठ सुनेहि सुभाउ
    • बालकु बोलि बधौं, बाल ब्रह्मचारी, बिस्वबिदित, बिपुल बार।
    • जड़ जानहि
    • भुजबल भूमि भूप
    अतिशयोक्ति-
    • छुअत टूट।

    Question 71
    CBSEENHN10002074

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
    बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।।
    पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन फूँकि पंहारू।।
    इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मीर जाहीं।।
    देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।।
    भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कछु कहहु सहौं रिस रोकी।।
    सुर महिसुर हरिजन अरु गाई। हमरे कुल इन्ह पर न सुराई।।
    बधें पापु अपकीरति हारें। मारतहू पा परिअ तुम्हारें।।
    कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा। व्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा।।

         जो बिलोकि अनुचित कहेउँ छमहु महामुनि धीर। 
         सुनि सरोष भृगुबंसमीन बोले गिरा गंभीर।।

    Solution

    प्रसंग- प्रस्तुत पद तुलसीदास जी के द्वारा रचित महाकाव्य ‘रामचरित मानस’ के बाल कांड से लिया गया है। सीता स्वयंवर के समय श्री राम ने शिवजी के धनुष को तोड़ दिया था जिस कारण परशुराम ने बहुत गुस्सा किया था। लक्ष्मण ने उन पर व्यंग्य किया था जिससे परशुराम का गुस्सा भड़क उठा था।

    व्याख्या- लक्ष्मण ने हँस कर कोमल वाणी में कहा- अहो, मुनीश्वर तो अपने आप को बड़ा भारी योद्धा समझते हैं। ये मुझे देख कर बार-बार अपनी कुल्हाड़ी दिखाते हैं। ये तो फूंक से पहाड़ उड़ा देना चाहते हैं। यहाँ कोई काशीफल या कुम्हड़े का बहुत छोटा-सा फल नहीं है जो आप की अँगूठे के साथ वाली उंगली को देखते ही मर जाती है। मैंने तो जो कुछ कहा है वह आप के कुल्हाड़े और धनुष-बाण को देखकर ही अभिमान सहित कहा है। भृगु वंशी समझकर और आप का यज्ञोपवीत देख कर आप जो कुछ कहते हैं, उसे मैं अपना गुस्सा रोक कर सह लेता हूँ। देवता, ब्राहमण, भगवान् के भक्त और गौ-इन पर हमारे कुल में अपनी वीरता का प्रदर्शन नहीं किया जाता है क्योंकि इन्हें मारने से पाप लगता है और इन से हार जाने पर अपकीर्ति होती है। इसलिए यदि आप मारें तो भी आप के पैर ही पड़ना चाहिए। आप का एक-एक वचन ही करोड़ों वज्रों के समान है। धनुष-बाण और कुल्हाड़ा तो आप व्यर्थ ही धारण करते हैं। आप के इस धनुष-बाण और कुल्हाड़े को देखकर मैंने कुछ अनुचित कहा हो तो हे धीर महामुनि! आप क्षमा कीजिए। यह सुन कर भृगु वंशमणि परशुराम क्रोध के साथ गंभीर वाणी में बोले।

     
    Question 72
    CBSEENHN10002075

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
    बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।।
    पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन फूँकि पंहारू।।
    इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मीर जाहीं।।
    देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।।
    भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कछु कहहु सहौं रिस रोकी।।
    सुर महिसुर हरिजन अरु गाई। हमरे कुल इन्ह पर न सुराई।।
    बधें पापु अपकीरति हारें। मारतहू पा परिअ तुम्हारें।।
    कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा। व्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा।।
         जो बिलोकि अनुचित कहेउँ छमहु महामुनि धीर। 
         सुनि सरोष भृगुबंसमीन बोले गिरा गंभीर।।

    पद में निहित भाव स्पष्ट कीजिए।

    Solution
    लक्ष्मण ने परशुराम के द्वारा अभिमानपूर्वक कहे शब्दों पर व्यंग्य किया था और उन्हें बता दिया था कि उन के वंश में ब्राहमणों पर शस्त्र नहीं उठाया जाता, चाहे वे बुरा व्यवहार भी क्यों न करें।
    Question 73
    CBSEENHN10002076

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
    बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।।
    पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन फूँकि पंहारू।।
    इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मीर जाहीं।।
    देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।।
    भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कछु कहहु सहौं रिस रोकी।।
    सुर महिसुर हरिजन अरु गाई। हमरे कुल इन्ह पर न सुराई।।
    बधें पापु अपकीरति हारें। मारतहू पा परिअ तुम्हारें।।
    कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा। व्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा।।
         जो बिलोकि अनुचित कहेउँ छमहु महामुनि धीर। 
         सुनि सरोष भृगुबंसमीन बोले गिरा गंभीर।।

    रशुराम बार-बार अपना कुल्हाड़ा किसे दिखा रहे थे?

    Solution
    परशुराम बार-बार डराने के लिए लक्ष्मण को अपना कुल्हाड़ा दिखा रहे थे।
    Question 74
    CBSEENHN10002077

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
    बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।।
    पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन फूँकि पंहारू।।
    इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मीर जाहीं।।
    देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।।
    भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कछु कहहु सहौं रिस रोकी।।
    सुर महिसुर हरिजन अरु गाई। हमरे कुल इन्ह पर न सुराई।।
    बधें पापु अपकीरति हारें। मारतहू पा परिअ तुम्हारें।।
    कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा। व्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा।।
         जो बिलोकि अनुचित कहेउँ छमहु महामुनि धीर। 
         सुनि सरोष भृगुबंसमीन बोले गिरा गंभीर।।

    कवि के द्वारा प्रयुक्त काव्य रूढ़ि और समाज में चली आने वाली मान्यता को स्पष्ट कीजिए।

    Solution
    युगों से समाज में एक मान्यता चली आ रही है कि काशीफल की बेल पर खिलने वाले फूल या छोटे फल की ओर तर्जनी से इशारा किया जाए तो सुखकर गिर जाता है। छोटी आयु के लक्ष्मण की ओर परशुराम बार-बार उंगली उठा कर डराने का प्रयत्न कर रहे थे। इसलिए लक्ष्मण ने उनसे यह कहा था कि वे काशीफल की बेल पर लगे फूल या फल की तरह कमजोर नहीं हैं जो परशुराम की उठी उंगली से नष्ट हो जाएंगे।
    Question 75
    CBSEENHN10002078

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
    बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।।
    पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन फूँकि पंहारू।।
    इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मीर जाहीं।।
    देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।।
    भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कछु कहहु सहौं रिस रोकी।।
    सुर महिसुर हरिजन अरु गाई। हमरे कुल इन्ह पर न सुराई।।
    बधें पापु अपकीरति हारें। मारतहू पा परिअ तुम्हारें।।
    कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा। व्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा।।
         जो बिलोकि अनुचित कहेउँ छमहु महामुनि धीर। 
         सुनि सरोष भृगुबंसमीन बोले गिरा गंभीर।।

    लक्ष्मण ने परशुराम से अभिमानपूर्वक बात क्यों की थी?

    Solution
    लक्ष्मण ने परशुराम के कुल्हाड़े और धनुष-बाण देख कर उन्हें क्षत्रिय समझ कर अभिमानपूर्वक बात की।
    Question 76
    CBSEENHN10002079

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
    बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।।
    पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन फूँकि पंहारू।।
    इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मीर जाहीं।।
    देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।।
    भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कछु कहहु सहौं रिस रोकी।।
    सुर महिसुर हरिजन अरु गाई। हमरे कुल इन्ह पर न सुराई।।
    बधें पापु अपकीरति हारें। मारतहू पा परिअ तुम्हारें।।
    कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा। व्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा।।
         जो बिलोकि अनुचित कहेउँ छमहु महामुनि धीर। 
         सुनि सरोष भृगुबंसमीन बोले गिरा गंभीर।।

    लक्ष्मण ने अपना गुस्सा रोक कर परशुराम से बात क्यों की थी?

    Solution
    लक्ष्मण ने अपना गुस्सा रोक कर परशुराम से बात की थी क्योंकि उन्हें पता लग गया था कि वे भृगुवंशी थे। उन के गले में यज्ञोपवीत भी था।
    Question 77
    CBSEENHN10002080

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
    बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।।
    पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन फूँकि पंहारू।।
    इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मीर जाहीं।।
    देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।।
    भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कछु कहहु सहौं रिस रोकी।।
    सुर महिसुर हरिजन अरु गाई। हमरे कुल इन्ह पर न सुराई।।
    बधें पापु अपकीरति हारें। मारतहू पा परिअ तुम्हारें।।
    कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा। व्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा।।
         जो बिलोकि अनुचित कहेउँ छमहु महामुनि धीर। 
         सुनि सरोष भृगुबंसमीन बोले गिरा गंभीर।।

    रघुकुल के लोग किन-किन पर दया करते थे?

    Solution
    रघुकुल के लोग देवता, बाह्मण, भगवान के भक्त और गौ पर सदा दया करते थे।
    Question 78
    CBSEENHN10002081

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
    बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।।
    पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन फूँकि पंहारू।।
    इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मीर जाहीं।।
    देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।।
    भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कछु कहहु सहौं रिस रोकी।।
    सुर महिसुर हरिजन अरु गाई। हमरे कुल इन्ह पर न सुराई।।
    बधें पापु अपकीरति हारें। मारतहू पा परिअ तुम्हारें।।
    कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा। व्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा।।
         जो बिलोकि अनुचित कहेउँ छमहु महामुनि धीर। 
         सुनि सरोष भृगुबंसमीन बोले गिरा गंभीर।।

    सूर्यवंशी जिन पर दया करते थे, उन्हें क्यों नहीं मारना चाहते थे?

    Solution
    सूर्यवंशी जिन पर दया करते थे उन्हें कभी नहीं मारना चाहते थे क्योंकि उन्हें मारने से पाप लगता था और उनसे हार जाने पर अपयश मिलता था।
    Question 79
    CBSEENHN10002082

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
    बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।।
    पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन फूँकि पंहारू।।
    इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मीर जाहीं।।
    देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।।
    भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कछु कहहु सहौं रिस रोकी।।
    सुर महिसुर हरिजन अरु गाई। हमरे कुल इन्ह पर न सुराई।।
    बधें पापु अपकीरति हारें। मारतहू पा परिअ तुम्हारें।।
    कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा। व्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा।।
         जो बिलोकि अनुचित कहेउँ छमहु महामुनि धीर। 
         सुनि सरोष भृगुबंसमीन बोले गिरा गंभीर।।

    लक्ष्मण ने परशुराम को मारने की अपेक्षा क्या करने की बात कही थी?

    Solution
    लक्ष्मण ने परशुराम को मारने की अपेक्षा उन के पाँव में पड़ने और क्षमा माँगने की बात कही थी।

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    Question 80
    CBSEENHN10002083

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
    बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।।
    पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन फूँकि पंहारू।।
    इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मीर जाहीं।।
    देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।।
    भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कछु कहहु सहौं रिस रोकी।।
    सुर महिसुर हरिजन अरु गाई। हमरे कुल इन्ह पर न सुराई।।
    बधें पापु अपकीरति हारें। मारतहू पा परिअ तुम्हारें।।
    कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा। व्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा।।
         जो बिलोकि अनुचित कहेउँ छमहु महामुनि धीर। 
         सुनि सरोष भृगुबंसमीन बोले गिरा गंभीर।।

    लक्ष्मण ने अपने द्वारा मुनि को अनुचित शब्द कहने के बाद उन से क्या मांगा था?

    Solution
    लक्ष्मण ने अपने द्वारा मुनि को अनुचित शब्द कहने के बाद उन से क्षमा माँगी थी।
    Question 81
    CBSEENHN10002084

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
    बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।।
    पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन फूँकि पंहारू।।
    इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मीर जाहीं।।
    देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।।
    भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कछु कहहु सहौं रिस रोकी।।
    सुर महिसुर हरिजन अरु गाई। हमरे कुल इन्ह पर न सुराई।।
    बधें पापु अपकीरति हारें। मारतहू पा परिअ तुम्हारें।।
    कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा। व्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा।।
         जो बिलोकि अनुचित कहेउँ छमहु महामुनि धीर। 
         सुनि सरोष भृगुबंसमीन बोले गिरा गंभीर।।

    लक्ष्मण के क्रोध-भाव को प्रतिपादित कीजिए।

    Solution
    लक्ष्मण अति क्रोधी स्वभाव का था। वह परशुराम के बड़बोलेपन को झेलने वाला नहीं था। वह निर्भीक और वीर था।
    Question 82
    CBSEENHN10002085

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
    बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।।
    पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन फूँकि पंहारू।।
    इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मीर जाहीं।।
    देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।।
    भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कछु कहहु सहौं रिस रोकी।।
    सुर महिसुर हरिजन अरु गाई। हमरे कुल इन्ह पर न सुराई।।
    बधें पापु अपकीरति हारें। मारतहू पा परिअ तुम्हारें।।
    कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा। व्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा।।
         जो बिलोकि अनुचित कहेउँ छमहु महामुनि धीर। 
         सुनि सरोष भृगुबंसमीन बोले गिरा गंभीर।।

    कवि के द्वारा किस भाषा का प्रयोग किया गया है?

    Solution
    अवधी भाषा का प्रयोग किया गया है।
    Question 83
    CBSEENHN10002086

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
    बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।।
    पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन फूँकि पंहारू।।
    इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मीर जाहीं।।
    देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।।
    भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कछु कहहु सहौं रिस रोकी।।
    सुर महिसुर हरिजन अरु गाई। हमरे कुल इन्ह पर न सुराई।।
    बधें पापु अपकीरति हारें। मारतहू पा परिअ तुम्हारें।।
    कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा। व्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा।।
         जो बिलोकि अनुचित कहेउँ छमहु महामुनि धीर। 
         सुनि सरोष भृगुबंसमीन बोले गिरा गंभीर।।

    कवि ने किन शब्दों का प्रमुखता से प्रयोग किया है?

    Solution
    तत्सम् और तद्‌भव शब्दावली का सहज-स्वाभाविक प्रयोग सराहनीय है।
    Question 84
    CBSEENHN10002087

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
    बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।।
    पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन फूँकि पंहारू।।
    इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मीर जाहीं।।
    देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।।
    भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कछु कहहु सहौं रिस रोकी।।
    सुर महिसुर हरिजन अरु गाई। हमरे कुल इन्ह पर न सुराई।।
    बधें पापु अपकीरति हारें। मारतहू पा परिअ तुम्हारें।।
    कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा। व्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा।।
         जो बिलोकि अनुचित कहेउँ छमहु महामुनि धीर। 
         सुनि सरोष भृगुबंसमीन बोले गिरा गंभीर।।

    किस काव्य-रस की प्रधानता है?

    Solution
    वीर रस का प्रयोग है।
    Question 85
    CBSEENHN10002088

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
    बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।।
    पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन फूँकि पंहारू।।
    इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मीर जाहीं।।
    देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।।
    भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कछु कहहु सहौं रिस रोकी।।
    सुर महिसुर हरिजन अरु गाई। हमरे कुल इन्ह पर न सुराई।।
    बधें पापु अपकीरति हारें। मारतहू पा परिअ तुम्हारें।।
    कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा। व्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा।।
         जो बिलोकि अनुचित कहेउँ छमहु महामुनि धीर। 
         सुनि सरोष भृगुबंसमीन बोले गिरा गंभीर।।

    किस काव्य-गुण का प्रयोग किया गया है?

    Solution
    ओज गुण विद्यमान है।
    Question 86
    CBSEENHN10002089

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
    बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।।
    पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन फूँकि पंहारू।।
    इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मीर जाहीं।।
    देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।।
    भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कछु कहहु सहौं रिस रोकी।।
    सुर महिसुर हरिजन अरु गाई। हमरे कुल इन्ह पर न सुराई।।
    बधें पापु अपकीरति हारें। मारतहू पा परिअ तुम्हारें।।
    कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा। व्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा।।
         जो बिलोकि अनुचित कहेउँ छमहु महामुनि धीर। 
         सुनि सरोष भृगुबंसमीन बोले गिरा गंभीर।।

    किन छंदों का प्रयोग किया गया है?

    Solution
    दोहा-चौपाई छंद।
    Question 87
    CBSEENHN10002090

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
    बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।।
    पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन फूँकि पंहारू।।
    इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मीर जाहीं।।
    देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।।
    भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कछु कहहु सहौं रिस रोकी।।
    सुर महिसुर हरिजन अरु गाई। हमरे कुल इन्ह पर न सुराई।।
    बधें पापु अपकीरति हारें। मारतहू पा परिअ तुम्हारें।।
    कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा। व्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा।।
         जो बिलोकि अनुचित कहेउँ छमहु महामुनि धीर। 
         सुनि सरोष भृगुबंसमीन बोले गिरा गंभीर।।

    किस प्रयोग ने संगीतात्मकता की सृष्टि की है?
     

    Solution
    स्वरमैत्री के प्रयोग ने संगीतात्मकता की सृष्टि की है।
    Question 88
    CBSEENHN10002091

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
    बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।।
    पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन फूँकि पंहारू।।
    इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मीर जाहीं।।
    देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।।
    भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कछु कहहु सहौं रिस रोकी।।
    सुर महिसुर हरिजन अरु गाई। हमरे कुल इन्ह पर न सुराई।।
    बधें पापु अपकीरति हारें। मारतहू पा परिअ तुम्हारें।।
    कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा। व्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा।।
         जो बिलोकि अनुचित कहेउँ छमहु महामुनि धीर। 
         सुनि सरोष भृगुबंसमीन बोले गिरा गंभीर।।

    किस शब्द शक्ति का प्रयोग किया गया है?
     

    Solution
    व्यंजना शब्द शक्ति विद्यमान है।
    Question 89
    CBSEENHN10002092

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
    बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।।
    पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन फूँकि पंहारू।।
    इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मीर जाहीं।।
    देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।।
    भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कछु कहहु सहौं रिस रोकी।।
    सुर महिसुर हरिजन अरु गाई। हमरे कुल इन्ह पर न सुराई।।
    बधें पापु अपकीरति हारें। मारतहू पा परिअ तुम्हारें।।
    कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा। व्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा।।
         जो बिलोकि अनुचित कहेउँ छमहु महामुनि धीर। 
         सुनि सरोष भृगुबंसमीन बोले गिरा गंभीर।।

    काव्यांश में प्रयुक्त दो तदभव शब्दों को छाँट कर लिखिए।

    Solution
    पहाड़, बानी।
    Question 90
    CBSEENHN10002093

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
    बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।।
    पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन फूँकि पंहारू।।
    इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मीर जाहीं।।
    देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।।
    भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कछु कहहु सहौं रिस रोकी।।
    सुर महिसुर हरिजन अरु गाई। हमरे कुल इन्ह पर न सुराई।।
    बधें पापु अपकीरति हारें। मारतहू पा परिअ तुम्हारें।।
    कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा। व्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा।।
         जो बिलोकि अनुचित कहेउँ छमहु महामुनि धीर। 
         सुनि सरोष भृगुबंसमीन बोले गिरा गंभीर।।

    लक्ष्मण की भाषा में किस की प्रधानता है?

    Solution
    व्यंग्य, वाक्‌वीरता।
    Question 91
    CBSEENHN10002094

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
    बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।।
    पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन फूँकि पंहारू।।
    इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मीर जाहीं।।
    देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।।
    भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कछु कहहु सहौं रिस रोकी।।
    सुर महिसुर हरिजन अरु गाई। हमरे कुल इन्ह पर न सुराई।।
    बधें पापु अपकीरति हारें। मारतहू पा परिअ तुम्हारें।।
    कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा। व्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा।।
         जो बिलोकि अनुचित कहेउँ छमहु महामुनि धीर। 
         सुनि सरोष भृगुबंसमीन बोले गिरा गंभीर।।

    काव्यांश में प्रयुक्त अलंकार छाँट कर लिखिए।

    Solution

    अनुप्रास- 
    • मुनीसु महाभट मानी।
    • कछु कहा; कछु कहहु, कोटि कुलिस।
    • सुर, महिसुर; सुनि सरोष।
    • धरहु धनु।
    • गिरा गंभीर।
    पुनरुक्ति प्रकाश-
    • ‘पुनि-पुनि’।
    उपमा-
    • कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा।

    Question 92
    CBSEENHN10002095

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
    कौसिक सुनहु मंद येहु बालकु। कुटिलु कालबस निज कुल घालकु।।
    भानुबंस राकेस कलंकू। निपट निरंकुसु अबुधु असंकू।।
    कालकवलु होइहि छन माहीं। कहौं पुकारि खोरि मोहि नाहीं।।।
    तुम्ह हटकहु जौ चहहु उबारा। कहि प्रतापु बलु रोषु हमारा।।
    लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा। तुम्हहि अछत को बरनै पारा।।
    अपने मुहु तुम्ह आपनि करनी। बार अनेक भाँति बहु बरनी।।
    नहि संतोषु त पुनि कछु कहहू। जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू।।
    बीरब्रती तुम्ह धीर अछोभा। गारी देत न पावहु सोभा।
    सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु।
    विद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु।।

    Solution

    प्रसंग- प्रस्तुत पद हमारी पाठ्‌य पुस्तक क्षितिज (भाग-2) में संकलित पद्‌य खंड से लिया गया है जिसे मूल रूप से तुलसीदास जी द्वारा रचित महाकाव्य ‘रामचरितमानस’ के बालकांड से लिया गया है। सीता स्वयंवर के समय राम ने शिवजी के धनुष को तोड़ दिया था जिस कारण परशुराम क्रोध से भर गए थे। लक्ष्मण ने उन पर व्यंग्य किया था जिस कारण उन का क्रोध और अधिक बढ़ गया था।

    व्याख्या- परशुराम ने राम और लक्ष्मण के गुरु विश्वामित्र को संबोधित करते हुए कहा हे विश्वामित्र! सुनो, यह बालक बड़ा कुबुद्‌धि पूर्ण और कुटिल है। काल के वश होकर यह अपने कुल का घातक बन रहा है। यह सूर्यवंश रूपी-चंद्रमा का कलंक है। यह तो बिल्कुल उद्‌दंड, मूर्ख और निडर है। यह तो अभी क्षण भर बाद मौत के देवता काल का ग्रास बन जाएगा। मैं पुकार कर कहे देता हूँ कि इस के मर जाने के बाद फिर मुझे दोष नहीं देना। यदि तुम इसे बचाना चाहते हो तो इसे हमारा प्रताप, बल और क्रोध बतला कर ऐसा करने से रोक दो। लक्ष्मण ने तब कहा-हे मुनि! आप का सुयश आपके रहते और कौन वर्णन कर सकता है? आप ने पहले ही अनेक बार अपने मुँह से अपनी करनी-का कई तरह से वर्णन किया है। यदि इतने पर भी आप को संतोष न हुआ हो तो फिर कुछ कह डालिए। क्रोध रोक कर असहय दुःख मत सहो। आप वीरता का व्रत धारण करने वाले, धैर्यवान् और क्षोभ रहित हैं। गाली देते हुए आप शोभा नहीं देते। शूरवीर तो युद्ध मै अपनी शूरवीरता का कार्य करते हैं। वे बातें कह के अपनी वीरता को नहीं प्रकट करते। शत्रु को युद्ध में पा कर कायर ही अपने प्रताप की डींगें हांका करते हैं।

     
    Question 93
    CBSEENHN10002096

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कौसिक सुनहु मंद येहु बालकु। कुटिलु कालबस निज कुल घालकु।।
    भानुबंस राकेस कलंकू। निपट निरंकुसु अबुधु असंकू।।
    कालकवलु होइहि छन माहीं। कहौं पुकारि खोरि मोहि नाहीं।।।
    तुम्ह हटकहु जौ चहहु उबारा। कहि प्रतापु बलु रोषु हमारा।।
    लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा। तुम्हहि अछत को बरनै पारा।।
    अपने मुहु तुम्ह आपनि करनी। बार अनेक भाँति बहु बरनी।।
    नहि संतोषु त पुनि कछु कहहू। जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू।।
    बीरब्रती तुम्ह धीर अछोभा। गारी देत न पावहु सोभा।
    सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु।
    विद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु।।

    तुलसीदास ने लक्ष्मण और परशुराम के स्वभाव के किन गुणों/अवगुणों को प्रकट किया है?

    Solution
    तुलसीदास ने लक्ष्मण की स्पष्टवादिता और साहस का वर्णन किया है तो साथ ही परशुराम की डींगें हाँकने के स्वभाव को भी प्रकार किया है।
    Question 94
    CBSEENHN10002097

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कौसिक सुनहु मंद येहु बालकु। कुटिलु कालबस निज कुल घालकु।।
    भानुबंस राकेस कलंकू। निपट निरंकुसु अबुधु असंकू।।
    कालकवलु होइहि छन माहीं। कहौं पुकारि खोरि मोहि नाहीं।।।
    तुम्ह हटकहु जौ चहहु उबारा। कहि प्रतापु बलु रोषु हमारा।।
    लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा। तुम्हहि अछत को बरनै पारा।।
    अपने मुहु तुम्ह आपनि करनी। बार अनेक भाँति बहु बरनी।।
    नहि संतोषु त पुनि कछु कहहू। जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू।।
    बीरब्रती तुम्ह धीर अछोभा। गारी देत न पावहु सोभा।
    सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु।
    विद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु।।

    कवि ने किस भाषा का प्रयोग किया है?

    Solution
    अवधी भाषा का प्रयोग किया गया है।
    Question 95
    CBSEENHN10002098

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कौसिक सुनहु मंद येहु बालकु। कुटिलु कालबस निज कुल घालकु।।
    भानुबंस राकेस कलंकू। निपट निरंकुसु अबुधु असंकू।।
    कालकवलु होइहि छन माहीं। कहौं पुकारि खोरि मोहि नाहीं।।।
    तुम्ह हटकहु जौ चहहु उबारा। कहि प्रतापु बलु रोषु हमारा।।
    लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा। तुम्हहि अछत को बरनै पारा।।
    अपने मुहु तुम्ह आपनि करनी। बार अनेक भाँति बहु बरनी।।
    नहि संतोषु त पुनि कछु कहहू। जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू।।
    बीरब्रती तुम्ह धीर अछोभा। गारी देत न पावहु सोभा।
    सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु।
    विद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु।।

    किस प्रकार के शब्दों की अधिकता है?

    Solution
    तद्‌भव शब्दावली का अधिकता से प्रयोग है।
    Question 96
    CBSEENHN10002099

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कौसिक सुनहु मंद येहु बालकु। कुटिलु कालबस निज कुल घालकु।।
    भानुबंस राकेस कलंकू। निपट निरंकुसु अबुधु असंकू।।
    कालकवलु होइहि छन माहीं। कहौं पुकारि खोरि मोहि नाहीं।।।
    तुम्ह हटकहु जौ चहहु उबारा। कहि प्रतापु बलु रोषु हमारा।।
    लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा। तुम्हहि अछत को बरनै पारा।।
    अपने मुहु तुम्ह आपनि करनी। बार अनेक भाँति बहु बरनी।।
    नहि संतोषु त पुनि कछु कहहू। जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू।।
    बीरब्रती तुम्ह धीर अछोभा। गारी देत न पावहु सोभा।
    सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु।
    विद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु।।

    किस प्रकार के छंदों का प्रयोग किया गया है?

    Solution
    दोहा-चोपाई का प्रयोग है।
    Question 97
    CBSEENHN10002100

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कौसिक सुनहु मंद येहु बालकु। कुटिलु कालबस निज कुल घालकु।।
    भानुबंस राकेस कलंकू। निपट निरंकुसु अबुधु असंकू।।
    कालकवलु होइहि छन माहीं। कहौं पुकारि खोरि मोहि नाहीं।।।
    तुम्ह हटकहु जौ चहहु उबारा। कहि प्रतापु बलु रोषु हमारा।।
    लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा। तुम्हहि अछत को बरनै पारा।।
    अपने मुहु तुम्ह आपनि करनी। बार अनेक भाँति बहु बरनी।।
    नहि संतोषु त पुनि कछु कहहू। जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू।।
    बीरब्रती तुम्ह धीर अछोभा। गारी देत न पावहु सोभा।
    सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु।
    विद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु।।

    किस काव्य-रस का प्रयोग किया गया है?

    Solution
    वीर रस।
    Question 98
    CBSEENHN10002101

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कौसिक सुनहु मंद येहु बालकु। कुटिलु कालबस निज कुल घालकु।।
    भानुबंस राकेस कलंकू। निपट निरंकुसु अबुधु असंकू।।
    कालकवलु होइहि छन माहीं। कहौं पुकारि खोरि मोहि नाहीं।।।
    तुम्ह हटकहु जौ चहहु उबारा। कहि प्रतापु बलु रोषु हमारा।।
    लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा। तुम्हहि अछत को बरनै पारा।।
    अपने मुहु तुम्ह आपनि करनी। बार अनेक भाँति बहु बरनी।।
    नहि संतोषु त पुनि कछु कहहू। जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू।।
    बीरब्रती तुम्ह धीर अछोभा। गारी देत न पावहु सोभा।
    सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु।
    विद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु।।

    किस काव्य-गुण की प्रधानता है?

    Solution
    ओज गुण विद्यमान हैं।
    Question 99
    CBSEENHN10002102

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कौसिक सुनहु मंद येहु बालकु। कुटिलु कालबस निज कुल घालकु।।
    भानुबंस राकेस कलंकू। निपट निरंकुसु अबुधु असंकू।।
    कालकवलु होइहि छन माहीं। कहौं पुकारि खोरि मोहि नाहीं।।।
    तुम्ह हटकहु जौ चहहु उबारा। कहि प्रतापु बलु रोषु हमारा।।
    लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा। तुम्हहि अछत को बरनै पारा।।
    अपने मुहु तुम्ह आपनि करनी। बार अनेक भाँति बहु बरनी।।
    नहि संतोषु त पुनि कछु कहहू। जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू।।
    बीरब्रती तुम्ह धीर अछोभा। गारी देत न पावहु सोभा।
    सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु।
    विद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु।।

    किस शब्द-शक्ति का अधिकता से प्रयोग किया गया है?

    Solution
    लक्षणा शब्द शक्ति का प्रयोग किया गया है ।
    Question 100
    CBSEENHN10002103

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कौसिक सुनहु मंद येहु बालकु। कुटिलु कालबस निज कुल घालकु।।
    भानुबंस राकेस कलंकू। निपट निरंकुसु अबुधु असंकू।।
    कालकवलु होइहि छन माहीं। कहौं पुकारि खोरि मोहि नाहीं।।।
    तुम्ह हटकहु जौ चहहु उबारा। कहि प्रतापु बलु रोषु हमारा।।
    लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा। तुम्हहि अछत को बरनै पारा।।
    अपने मुहु तुम्ह आपनि करनी। बार अनेक भाँति बहु बरनी।।
    नहि संतोषु त पुनि कछु कहहू। जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू।।
    बीरब्रती तुम्ह धीर अछोभा। गारी देत न पावहु सोभा।
    सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु।
    विद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु।।

    सवांदो से कथन को कौन-सा गुण प्राप्त हुआ है?

    Solution
    नाटकीयता का गुण ।
    Question 101
    CBSEENHN10002104

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कौसिक सुनहु मंद येहु बालकु। कुटिलु कालबस निज कुल घालकु।।
    भानुबंस राकेस कलंकू। निपट निरंकुसु अबुधु असंकू।।
    कालकवलु होइहि छन माहीं। कहौं पुकारि खोरि मोहि नाहीं।।।
    तुम्ह हटकहु जौ चहहु उबारा। कहि प्रतापु बलु रोषु हमारा।।
    लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा। तुम्हहि अछत को बरनै पारा।।
    अपने मुहु तुम्ह आपनि करनी। बार अनेक भाँति बहु बरनी।।
    नहि संतोषु त पुनि कछु कहहू। जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू।।
    बीरब्रती तुम्ह धीर अछोभा। गारी देत न पावहु सोभा।
    सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु।
    विद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु।।

    ‘वीर व्रती’ शब्द में कैसा भाव छिपा हुआ है?

    Solution
    व्यंग्यात्मकता
    Question 102
    CBSEENHN10002105

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कौसिक सुनहु मंद येहु बालकु। कुटिलु कालबस निज कुल घालकु।।
    भानुबंस राकेस कलंकू। निपट निरंकुसु अबुधु असंकू।।
    कालकवलु होइहि छन माहीं। कहौं पुकारि खोरि मोहि नाहीं।।।
    तुम्ह हटकहु जौ चहहु उबारा। कहि प्रतापु बलु रोषु हमारा।।
    लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा। तुम्हहि अछत को बरनै पारा।।
    अपने मुहु तुम्ह आपनि करनी। बार अनेक भाँति बहु बरनी।।
    नहि संतोषु त पुनि कछु कहहू। जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू।।
    बीरब्रती तुम्ह धीर अछोभा। गारी देत न पावहु सोभा।
    सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु।
    विद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु।।

    ‘वीर व्रती’ शब्द में कैसा भाव छिपा हुआ है?

    Solution
    व्यंग्यात्मकता
    Question 103
    CBSEENHN10002106

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कौसिक सुनहु मंद येहु बालकु। कुटिलु कालबस निज कुल घालकु।।
    भानुबंस राकेस कलंकू। निपट निरंकुसु अबुधु असंकू।।
    कालकवलु होइहि छन माहीं। कहौं पुकारि खोरि मोहि नाहीं।।।
    तुम्ह हटकहु जौ चहहु उबारा। कहि प्रतापु बलु रोषु हमारा।।
    लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा। तुम्हहि अछत को बरनै पारा।।
    अपने मुहु तुम्ह आपनि करनी। बार अनेक भाँति बहु बरनी।।
    नहि संतोषु त पुनि कछु कहहू। जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू।।
    बीरब्रती तुम्ह धीर अछोभा। गारी देत न पावहु सोभा।
    सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु।
    विद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु।।

    परशुराम की बाणी में कौन-सा भाव प्रमुख है?

    Solution
    प्रचंड क्रोध
    Question 104
    CBSEENHN10002107

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कौसिक सुनहु मंद येहु बालकु। कुटिलु कालबस निज कुल घालकु।।
    भानुबंस राकेस कलंकू। निपट निरंकुसु अबुधु असंकू।।
    कालकवलु होइहि छन माहीं। कहौं पुकारि खोरि मोहि नाहीं।।।
    तुम्ह हटकहु जौ चहहु उबारा। कहि प्रतापु बलु रोषु हमारा।।
    लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा। तुम्हहि अछत को बरनै पारा।।
    अपने मुहु तुम्ह आपनि करनी। बार अनेक भाँति बहु बरनी।।
    नहि संतोषु त पुनि कछु कहहू। जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू।।
    बीरब्रती तुम्ह धीर अछोभा। गारी देत न पावहु सोभा।
    सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु।
    विद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु।।

    काव्यांश में प्रयुक्त अलंकार स्पष्ट कीजिए।

    Solution

    अनुप्रास:
    • पुकारि खोरि, बहु करनी,
    दुसह दु:ख, कुटिल, कालबस, कछु कहहू।
    करनी करहि कहि, कायर कथहिं, कालकवल,
    मानवीकरण-काल कवल होइहि छन माहीं
    रूपक- भानु बस राकेस कलंकू।

    Question 105
    CBSEENHN10002108

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कौसिक सुनहु मंद येहु बालकु। कुटिलु कालबस निज कुल घालकु।।
    भानुबंस राकेस कलंकू। निपट निरंकुसु अबुधु असंकू।।
    कालकवलु होइहि छन माहीं। कहौं पुकारि खोरि मोहि नाहीं।।।
    तुम्ह हटकहु जौ चहहु उबारा। कहि प्रतापु बलु रोषु हमारा।।
    लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा। तुम्हहि अछत को बरनै पारा।।
    अपने मुहु तुम्ह आपनि करनी। बार अनेक भाँति बहु बरनी।।
    नहि संतोषु त पुनि कछु कहहू। जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू।।
    बीरब्रती तुम्ह धीर अछोभा। गारी देत न पावहु सोभा।
    सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु।
    विद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु।।


    पद में निहित भाव स्पष्ट कीजिए।

    Solution
    परशुराम ने विश्वामित्र को सुझाव दिया था कि वह लक्ष्मण को उसके गुण बताकर व्यर्थ बोलने और उकसाने से रोके ताकि परशुराम उसका वध न करे लेकिन लक्ष्मण ने उसे किसी वीर की वीरता का पालन करने की शिक्षा दे दी थी।
    Question 106
    CBSEENHN10002109

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कौसिक सुनहु मंद येहु बालकु। कुटिलु कालबस निज कुल घालकु।।
    भानुबंस राकेस कलंकू। निपट निरंकुसु अबुधु असंकू।।
    कालकवलु होइहि छन माहीं। कहौं पुकारि खोरि मोहि नाहीं।।।
    तुम्ह हटकहु जौ चहहु उबारा। कहि प्रतापु बलु रोषु हमारा।।
    लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा। तुम्हहि अछत को बरनै पारा।।
    अपने मुहु तुम्ह आपनि करनी। बार अनेक भाँति बहु बरनी।।
    नहि संतोषु त पुनि कछु कहहू। जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू।।
    बीरब्रती तुम्ह धीर अछोभा। गारी देत न पावहु सोभा।
    सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु।
    विद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु।।

    परशुराम ने लक्ष्मण को बचाने के लिए किसे संबोधित किया?

    Solution
    परशुराम ने लक्ष्मण को बचाने के लिए ऋषि विश्वामित्र को संबोधित किया था।
    Question 107
    CBSEENHN10002110

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कौसिक सुनहु मंद येहु बालकु। कुटिलु कालबस निज कुल घालकु।।
    भानुबंस राकेस कलंकू। निपट निरंकुसु अबुधु असंकू।।
    कालकवलु होइहि छन माहीं। कहौं पुकारि खोरि मोहि नाहीं।।।
    तुम्ह हटकहु जौ चहहु उबारा। कहि प्रतापु बलु रोषु हमारा।।
    लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा। तुम्हहि अछत को बरनै पारा।।
    अपने मुहु तुम्ह आपनि करनी। बार अनेक भाँति बहु बरनी।।
    नहि संतोषु त पुनि कछु कहहू। जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू।।
    बीरब्रती तुम्ह धीर अछोभा। गारी देत न पावहु सोभा।
    सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु।
    विद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु।।

    परशुराम के अनुसार लक्ष्मण की विशेषताएं कौन-कौन सी थीं?

    Solution
    परशुराम के अनुसार लक्ष्मण मूर्ख था; कुबुद्‌धि और कुटिल था। वह सूर्य वंश रूपी चंद्रमा का कलंक था। वह उदण्ड, मूर्ख और निडर था।
    Question 108
    CBSEENHN10002111

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कौसिक सुनहु मंद येहु बालकु। कुटिलु कालबस निज कुल घालकु।।
    भानुबंस राकेस कलंकू। निपट निरंकुसु अबुधु असंकू।।
    कालकवलु होइहि छन माहीं। कहौं पुकारि खोरि मोहि नाहीं।।।
    तुम्ह हटकहु जौ चहहु उबारा। कहि प्रतापु बलु रोषु हमारा।।
    लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा। तुम्हहि अछत को बरनै पारा।।
    अपने मुहु तुम्ह आपनि करनी। बार अनेक भाँति बहु बरनी।।
    नहि संतोषु त पुनि कछु कहहू। जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू।।
    बीरब्रती तुम्ह धीर अछोभा। गारी देत न पावहु सोभा।
    सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु।
    विद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु।।

    परशुराम ने अपने कौन-कौन से गुण विश्वामित्र के दूबारा लक्ष्मण को बताने के लिए कहा था?

    Solution
    परशुराम ने अपने बारे में विश्वामित्र के द्वारा लक्ष्मण को यह बतलाना चाहा था कि वह बड़ा प्रतापी था; अति बलशाली था और अत्यंत क्रोधी था।
    Question 109
    CBSEENHN10002112

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कौसिक सुनहु मंद येहु बालकु। कुटिलु कालबस निज कुल घालकु।।
    भानुबंस राकेस कलंकू। निपट निरंकुसु अबुधु असंकू।।
    कालकवलु होइहि छन माहीं। कहौं पुकारि खोरि मोहि नाहीं।।।
    तुम्ह हटकहु जौ चहहु उबारा। कहि प्रतापु बलु रोषु हमारा।।
    लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा। तुम्हहि अछत को बरनै पारा।।
    अपने मुहु तुम्ह आपनि करनी। बार अनेक भाँति बहु बरनी।।
    नहि संतोषु त पुनि कछु कहहू। जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू।।
    बीरब्रती तुम्ह धीर अछोभा। गारी देत न पावहु सोभा।
    सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु।
    विद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु।।

    लक्ष्मण ने परशुराम को क्या सुझाव दिया था?

    Solution
    लक्ष्मण ने परशुराम को सुझाव दिया था कि उसे अपना सुयश स्वयं अपने ही मुँह से प्रकट करना चाहिए था क्योंकि उनके स्वयं वहाँ रहते हुए उनके सुयश को ठीक-ठीक ढंग से और कोई नहीं प्रकट कर सकता था।
    Question 110
    CBSEENHN10002113

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कौसिक सुनहु मंद येहु बालकु। कुटिलु कालबस निज कुल घालकु।।
    भानुबंस राकेस कलंकू। निपट निरंकुसु अबुधु असंकू।।
    कालकवलु होइहि छन माहीं। कहौं पुकारि खोरि मोहि नाहीं।।।
    तुम्ह हटकहु जौ चहहु उबारा। कहि प्रतापु बलु रोषु हमारा।।
    लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा। तुम्हहि अछत को बरनै पारा।।
    अपने मुहु तुम्ह आपनि करनी। बार अनेक भाँति बहु बरनी।।
    नहि संतोषु त पुनि कछु कहहू। जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू।।
    बीरब्रती तुम्ह धीर अछोभा। गारी देत न पावहु सोभा।
    सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु।
    विद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु।।

    परशुराम राज सभा में अपनी विशेषताएं पहले कितनी बार बता चुका था?

    Solution
    राजसभा में परशुराम अनेक बार अपनी विशेषताएँ पहले ही बता चुका था।
    Question 111
    CBSEENHN10002114

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कौसिक सुनहु मंद येहु बालकु। कुटिलु कालबस निज कुल घालकु।।
    भानुबंस राकेस कलंकू। निपट निरंकुसु अबुधु असंकू।।
    कालकवलु होइहि छन माहीं। कहौं पुकारि खोरि मोहि नाहीं।।।
    तुम्ह हटकहु जौ चहहु उबारा। कहि प्रतापु बलु रोषु हमारा।।
    लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा। तुम्हहि अछत को बरनै पारा।।
    अपने मुहु तुम्ह आपनि करनी। बार अनेक भाँति बहु बरनी।।
    नहि संतोषु त पुनि कछु कहहू। जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू।।
    बीरब्रती तुम्ह धीर अछोभा। गारी देत न पावहु सोभा।
    सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु।
    विद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु।।

    परशुराम क्या रोककर अधिक दु:ख सह रहा था?

    Solution
    परशुराम अपने क्रोध को रोक कर अधिक दुःख सह रहा था।
    Question 112
    CBSEENHN10002115

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कौसिक सुनहु मंद येहु बालकु। कुटिलु कालबस निज कुल घालकु।।
    भानुबंस राकेस कलंकू। निपट निरंकुसु अबुधु असंकू।।
    कालकवलु होइहि छन माहीं। कहौं पुकारि खोरि मोहि नाहीं।।।
    तुम्ह हटकहु जौ चहहु उबारा। कहि प्रतापु बलु रोषु हमारा।।
    लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा। तुम्हहि अछत को बरनै पारा।।
    अपने मुहु तुम्ह आपनि करनी। बार अनेक भाँति बहु बरनी।।
    नहि संतोषु त पुनि कछु कहहू। जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू।।
    बीरब्रती तुम्ह धीर अछोभा। गारी देत न पावहु सोभा।
    सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु।
    विद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु।।

    लक्ष्मण ने परशुराम को किन-किन विशेषताओं का स्वामी माना था?

    Solution
    लक्ष्मण ने परशुराम को वीरता का व्रत धारण करने वाला, धैर्यवान् और क्षोभरहित माना था।
    Question 113
    CBSEENHN10002116

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कौसिक सुनहु मंद येहु बालकु। कुटिलु कालबस निज कुल घालकु।।
    भानुबंस राकेस कलंकू। निपट निरंकुसु अबुधु असंकू।।
    कालकवलु होइहि छन माहीं। कहौं पुकारि खोरि मोहि नाहीं।।।
    तुम्ह हटकहु जौ चहहु उबारा। कहि प्रतापु बलु रोषु हमारा।।
    लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा। तुम्हहि अछत को बरनै पारा।।
    अपने मुहु तुम्ह आपनि करनी। बार अनेक भाँति बहु बरनी।।
    नहि संतोषु त पुनि कछु कहहू। जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू।।
    बीरब्रती तुम्ह धीर अछोभा। गारी देत न पावहु सोभा।
    सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु।
    विद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु।।

    कोई भी शूरवीर क्या न करके अपनी वीरता का परिचय किस प्रकार देता है?

    Solution
    कोई भी शूरवीर युद्ध में अपनी शूरवीरता को लड़कर प्रदर्शित करता है न कि अपनी वीरता की डींगें हाँक कर।
    Question 114
    CBSEENHN10002117

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कौसिक सुनहु मंद येहु बालकु। कुटिलु कालबस निज कुल घालकु।।
    भानुबंस राकेस कलंकू। निपट निरंकुसु अबुधु असंकू।।
    कालकवलु होइहि छन माहीं। कहौं पुकारि खोरि मोहि नाहीं।।।
    तुम्ह हटकहु जौ चहहु उबारा। कहि प्रतापु बलु रोषु हमारा।।
    लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा। तुम्हहि अछत को बरनै पारा।।
    अपने मुहु तुम्ह आपनि करनी। बार अनेक भाँति बहु बरनी।।
    नहि संतोषु त पुनि कछु कहहू। जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू।।
    बीरब्रती तुम्ह धीर अछोभा। गारी देत न पावहु सोभा।
    सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु।
    विद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु।।

    लक्ष्मण की किस बात पर परशुराम नाराज थे?

    Solution
    लक्ष्मण की स्पष्टवादिता, स्वभाव और उग्रता पर परशुराम नाराज थे।
    Question 115
    CBSEENHN10002118

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
    तुम्ह तौ कालु हॉक जनु लावा। बार बार मोहि लागि बोलावा।
    सुनत लखन के बचन कठोरा। परसु सुधारि धरेउ कर घोरा।।
    अब जनि देइ दोसु मोहि लोगु। कटुबादी बालकु बधजोगू ।।
    बाल बिलोकि बहुत मैं बाँचा। अब येहु मरनिहार भा साँचा।।
    कौसिक कहा छमिअ अपराधू। बाल दोष गुन गनहिं न साधू।।
    खर कुठार मैं अकरुन कोही। आगे अपराधी गुरुद्रोही।।
    उतर देत छोड़ौ बिनु मारे। केवल कौसिक सील तुम्हारे।।
    न त येहि काटि कुठार कठोरें। गुरहि उरिन होतेउँ श्रम थोरें।।

    गाधिसू कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।
    अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ।।


    Solution

    प्रसंग- प्रस्तुत पद गोस्वामी तुलसीदास के द्वारा रचित महाकाव्य ‘रामचरित मानस’ के बालकांड से लिया गया है। सीता स्वयंवर के अवसर पर परशुराम और लक्ष्मण के बीच शिव धनुष के भंग होने के कारण कुछ विवाद हुआ था।

    व्याख्या- लक्ष्मण कहते हैं कि हे परशुराम जी! आप तो मानो काल को हाँक लगाकर बार-बार उसे मेरे लिए बुलाते हैं। लक्ष्मण के कठोर वचन सुनते ही परशुराम ने अपने फरसे को सुधार कर हाथ में ले लिया और फिर बोला- अब लोग मुझे दोष न दें। यह कडुवा बोलने वाला बालक मारे जाने के ही योग्य है। इसे बालक समझकर मैंने बहुत देर तक बचाया लेकिन अब यह सचमुच मरने को ही आ गया है। तब गुरु विश्वामित्र ने कहा-अपराध क्षमा कीजिए। बालकों के दोष और गुण को साधु लोग नहीं गिनते। परशुराम बोले-मेरा तीखी धार का फरसा, मैं दयारहित और क्रोधी हूँ। मेरे सामने यह गुरु द्रोही और अपराधी उत्तर दे रहा है। इतने पर ही मैं इसे बिना मारे छोड़ रहा हूँ। है विश्वामित्र जी! मैं इसे केवल आप के शील और प्रेम के कारण मारे बिना छोड़ रहा हूँ। नहीं तो इसे इस कठोर फरसे से काटकर थोड़े से परिश्रम से गुरु से ऋण मुक्त हो जाता। विश्वामित्र जी ने मन ही मन हँसकर कहा-मुनि को हरा-ही-हरा सूझ रहा है अर्थात् अन्य सभी जगह पर विजयी होने के कारण ये राम और लक्ष्मण को भी साधारण क्षत्रिय ही समझ रहे हैं। पर यह तो लोहे से बनी हुई खाँड (खाँडा-खड्‌ग) है; गन्ने की खाँड नहीं है, जो मुँह में डालते ही गल जाती है। मुनि अब भी बेसमझ बने हुए हैं और इनके प्रभाव को समझ नहीं पा रहे हैं।

     
    Question 116
    CBSEENHN10002119

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    तुम्ह तौ कालु हॉक जनु लावा। बार बार मोहि लागि बोलावा।
    सुनत लखन के बचन कठोरा। परसु सुधारि धरेउ कर घोरा।।
    अब जनि देइ दोसु मोहि लोगु। कटुबादी बालकु बधजोगू ।।
    बाल बिलोकि बहुत मैं बाँचा। अब येहु मरनिहार भा साँचा।।
    कौसिक कहा छमिअ अपराधू। बाल दोष गुन गनहिं न साधू।।
    खर कुठार मैं अकरुन कोही। आगे अपराधी गुरुद्रोही।।
    उतर देत छोड़ौ बिनु मारे। केवल कौसिक सील तुम्हारे।।
    न त येहि काटि कुठार कठोरें। गुरहि उरिन होतेउँ श्रम थोरें।।

    गाधिसू कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।
    अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ।।

    पद में निहित भाव को स्पष्ट कीजिए।



    Solution
    लक्ष्मण को अपना अपमान करते देख-सुनकर परशुराम ने अपने फरसे को सुधार कर हाथ में ले लिया पर गुरु विश्वामित्र के समझाने पर वे मान गए पर परशुराम अपनी वीरता की डींग हाँकने की आदत का फिर से परिचय दे दिया जिसे सुनकर विश्वामित्र मन ही मन मुस्करा दिए कि ये नहीं समझते कि राम-लक्ष्मण सामान्य क्षत्रिय वीर नहीं थे।
    Question 117
    CBSEENHN10002120

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    तुम्ह तौ कालु हॉक जनु लावा। बार बार मोहि लागि बोलावा।
    सुनत लखन के बचन कठोरा। परसु सुधारि धरेउ कर घोरा।।
    अब जनि देइ दोसु मोहि लोगु। कटुबादी बालकु बधजोगू ।।
    बाल बिलोकि बहुत मैं बाँचा। अब येहु मरनिहार भा साँचा।।
    कौसिक कहा छमिअ अपराधू। बाल दोष गुन गनहिं न साधू।।
    खर कुठार मैं अकरुन कोही। आगे अपराधी गुरुद्रोही।।
    उतर देत छोड़ौ बिनु मारे। केवल कौसिक सील तुम्हारे।।
    न त येहि काटि कुठार कठोरें। गुरहि उरिन होतेउँ श्रम थोरें।।

    गाधिसू कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।
    अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ।।

    रशुराम लक्ष्मण की मृत्यु के लिए काल को किस प्रकार याद कर रहे थे?



    Solution
    परशुराम तो लक्ष्मण की मृत्यु को मानो काल को हाँक लगाकर बार-बार बुला रहे थे।
    Question 118
    CBSEENHN10002121

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    तुम्ह तौ कालु हॉक जनु लावा। बार बार मोहि लागि बोलावा।
    सुनत लखन के बचन कठोरा। परसु सुधारि धरेउ कर घोरा।।
    अब जनि देइ दोसु मोहि लोगु। कटुबादी बालकु बधजोगू ।।
    बाल बिलोकि बहुत मैं बाँचा। अब येहु मरनिहार भा साँचा।।
    कौसिक कहा छमिअ अपराधू। बाल दोष गुन गनहिं न साधू।।
    खर कुठार मैं अकरुन कोही। आगे अपराधी गुरुद्रोही।।
    उतर देत छोड़ौ बिनु मारे। केवल कौसिक सील तुम्हारे।।
    न त येहि काटि कुठार कठोरें। गुरहि उरिन होतेउँ श्रम थोरें।।

    गाधिसू कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।
    अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ।।

    लक्ष्मण के कड़वे शब्दों को सुनकर परशुराम ने क्या किया था?

    Solution
    लक्ष्मण के कड़वे शब्दों को सुनकर परशुराम ने अपने भयानक फरसे को सुधार कर हाथ में ले लिया था।
    Question 119
    CBSEENHN10002122

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    तुम्ह तौ कालु हॉक जनु लावा। बार बार मोहि लागि बोलावा।
    सुनत लखन के बचन कठोरा। परसु सुधारि धरेउ कर घोरा।।
    अब जनि देइ दोसु मोहि लोगु। कटुबादी बालकु बधजोगू ।।
    बाल बिलोकि बहुत मैं बाँचा। अब येहु मरनिहार भा साँचा।।
    कौसिक कहा छमिअ अपराधू। बाल दोष गुन गनहिं न साधू।।
    खर कुठार मैं अकरुन कोही। आगे अपराधी गुरुद्रोही।।
    उतर देत छोड़ौ बिनु मारे। केवल कौसिक सील तुम्हारे।।
    न त येहि काटि कुठार कठोरें। गुरहि उरिन होतेउँ श्रम थोरें।।

    गाधिसू कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।
    अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ।।

    परशुराम ने अब तक लक्ष्मण का वध क्यों नहीं किया था?

    Solution
    परशुराम ने अब तक लक्ष्मण को छोटा बालक समझकर उसका वध नहीं किया था।

    Sponsor Area

    Question 120
    CBSEENHN10002123

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    सुनत लखन के बचन कठोरा। परसु सुधारि धरेउ कर घोरा।।
    अब जनि देइ दोसु मोहि लोगु। कटुबादी बालकु बधजोगू ।।
    बाल बिलोकि बहुत मैं बाँचा। अब येहु मरनिहार भा साँचा।।
    कौसिक कहा छमिअ अपराधू। बाल दोष गुन गनहिं न साधू।।
    खर कुठार मैं अकरुन कोही। आगे अपराधी गुरुद्रोही।।
    उतर देत छोड़ौ बिनु मारे। केवल कौसिक सील तुम्हारे।।
    न त येहि काटि कुठार कठोरें। गुरहि उरिन होतेउँ श्रम थोरें।।

    गाधिसू कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।
    अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ।।

    विश्वामित्र ने परशुराम को क्या कह कर समझाया था?

    Solution
    विश्वामित्र ने परशुराम को यह कहकर समझाया था कि साधु लोग बालकों के गुण और दोष को नहीं गिनते।
    Question 121
    CBSEENHN10002124

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    तुम्ह तौ कालु हॉक जनु लावा। बार बार मोहि लागि बोलावा।
    सुनत लखन के बचन कठोरा। परसु सुधारि धरेउ कर घोरा।।
    अब जनि देइ दोसु मोहि लोगु। कटुबादी बालकु बधजोगू ।।
    बाल बिलोकि बहुत मैं बाँचा। अब येहु मरनिहार भा साँचा।।
    कौसिक कहा छमिअ अपराधू। बाल दोष गुन गनहिं न साधू।।
    खर कुठार मैं अकरुन कोही। आगे अपराधी गुरुद्रोही।।
    उतर देत छोड़ौ बिनु मारे। केवल कौसिक सील तुम्हारे।।
    न त येहि काटि कुठार कठोरें। गुरहि उरिन होतेउँ श्रम थोरें।।

    गाधिसू कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।
    अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ।।

    परशुराम ने लक्ष्मण को गुरु द्रोही क्यों कहा था?

    Solution
    परशुराम को भगवान् शिव ने वह धनुष संभाल कर रखने के लिए दिया था जिसे सीता स्वयंवर के समय राम ने भंग कर दिया था। इससे परशुराम ने अपना और भगवान् शिव का अपमान मानकर राजसभा में क्षत्रियों को बुरा-भला बोला था। लक्ष्मण ने क्रोध भरी और व्यंग्यात्मक बातों से इसका विरोध किया था जिस कारण परशुराम ने लक्ष्मण को गुरुद्रोही कहा था।
    Question 122
    CBSEENHN10002125

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    तुम्ह तौ कालु हॉक जनु लावा। बार बार मोहि लागि बोलावा।
    सुनत लखन के बचन कठोरा। परसु सुधारि धरेउ कर घोरा।।
    अब जनि देइ दोसु मोहि लोगु। कटुबादी बालकु बधजोगू ।।
    बाल बिलोकि बहुत मैं बाँचा। अब येहु मरनिहार भा साँचा।।
    कौसिक कहा छमिअ अपराधू। बाल दोष गुन गनहिं न साधू।।
    खर कुठार मैं अकरुन कोही। आगे अपराधी गुरुद्रोही।।
    उतर देत छोड़ौ बिनु मारे। केवल कौसिक सील तुम्हारे।।
    न त येहि काटि कुठार कठोरें। गुरहि उरिन होतेउँ श्रम थोरें।।

    गाधिसू कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।
    अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ।।

    परशुराम ने अपने किन गुणों को बताया था?

    Solution
    परशुराम ने अपने गुणों को बताते हुए कहा था कि वे दया से रहित और क्रोधी स्वभाव के थे।
    Question 123
    CBSEENHN10002126

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    तुम्ह तौ कालु हॉक जनु लावा। बार बार मोहि लागि बोलावा।
    सुनत लखन के बचन कठोरा। परसु सुधारि धरेउ कर घोरा।।
    अब जनि देइ दोसु मोहि लोगु। कटुबादी बालकु बधजोगू ।।
    बाल बिलोकि बहुत मैं बाँचा। अब येहु मरनिहार भा साँचा।।
    कौसिक कहा छमिअ अपराधू। बाल दोष गुन गनहिं न साधू।।
    खर कुठार मैं अकरुन कोही। आगे अपराधी गुरुद्रोही।।
    उतर देत छोड़ौ बिनु मारे। केवल कौसिक सील तुम्हारे।।
    न त येहि काटि कुठार कठोरें। गुरहि उरिन होतेउँ श्रम थोरें।।

    गाधिसू कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।
    अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ।।

    विश्वामित्र के किस गुण के कारण परशुराम अभी तक लक्ष्मण को मारे बिना छोड़ रहा था?

    Solution
    विश्वामित्र के शील और प्रेमपूर्ण स्वभाव के कारण परशुराम अभी तक लक्ष्मण को बिना मारे छोड़ रहा था।
    Question 124
    CBSEENHN10002127

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    तुम्ह तौ कालु हॉक जनु लावा। बार बार मोहि लागि बोलावा।
    सुनत लखन के बचन कठोरा। परसु सुधारि धरेउ कर घोरा।।
    अब जनि देइ दोसु मोहि लोगु। कटुबादी बालकु बधजोगू ।।
    बाल बिलोकि बहुत मैं बाँचा। अब येहु मरनिहार भा साँचा।।
    कौसिक कहा छमिअ अपराधू। बाल दोष गुन गनहिं न साधू।।
    खर कुठार मैं अकरुन कोही। आगे अपराधी गुरुद्रोही।।
    उतर देत छोड़ौ बिनु मारे। केवल कौसिक सील तुम्हारे।।
    न त येहि काटि कुठार कठोरें। गुरहि उरिन होतेउँ श्रम थोरें।।

    गाधिसू कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।
    अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ।।

    विश्वामित्र ने अपने आप से क्या कहा था?

    Solution
    विश्वामित्र ने अपने आप से कहा था कि परशुराम को हरा-ही-हरा सूझ रहा था। अब तक वह साधारण क्षत्रियों पर बिना हारे विजय प्राप्त करता आया था और उसे ऐसा लगने लगा था कि वह सभी क्षत्रियों को युद्ध में हरा सकता था। ये राम-लक्ष्मण गन्ने से बनी खांड नहीं हैं बल्कि फौलाद के खाँडे हैं जिन्हें हराना इनके लिए संभव नहीं। मुनि इनके प्रभाव को समझ नहीं पा रहे हैं।
    Question 125
    CBSEENHN10002128

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    तुम्ह तौ कालु हॉक जनु लावा। बार बार मोहि लागि बोलावा।
    सुनत लखन के बचन कठोरा। परसु सुधारि धरेउ कर घोरा।।
    अब जनि देइ दोसु मोहि लोगु। कटुबादी बालकु बधजोगू ।।
    बाल बिलोकि बहुत मैं बाँचा। अब येहु मरनिहार भा साँचा।।
    कौसिक कहा छमिअ अपराधू। बाल दोष गुन गनहिं न साधू।।
    खर कुठार मैं अकरुन कोही। आगे अपराधी गुरुद्रोही।।
    उतर देत छोड़ौ बिनु मारे। केवल कौसिक सील तुम्हारे।।
    न त येहि काटि कुठार कठोरें। गुरहि उरिन होतेउँ श्रम थोरें।।

    गाधिसू कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।
    अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ।।

    पद में विश्वामित्र किस बात पर हंसे थे?

    Solution
    पद में विश्वामित्र इस बात पर हरसे थे कि परशुराम अभिमान के वश में होकर राम-लक्ष्मण की वास्तविकता को बिना समझे हुए डींगें हाँक रहे थे और उन्हें धमकियाँ दे रहे थे। वे शिव के धनुष को तोड़ने वाले को दंडित करना चाह रहे थे।
    Question 126
    CBSEENHN10002129

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    तुम्ह तौ कालु हॉक जनु लावा। बार बार मोहि लागि बोलावा।
    सुनत लखन के बचन कठोरा। परसु सुधारि धरेउ कर घोरा।।
    अब जनि देइ दोसु मोहि लोगु। कटुबादी बालकु बधजोगू ।।
    बाल बिलोकि बहुत मैं बाँचा। अब येहु मरनिहार भा साँचा।।
    कौसिक कहा छमिअ अपराधू। बाल दोष गुन गनहिं न साधू।।
    खर कुठार मैं अकरुन कोही। आगे अपराधी गुरुद्रोही।।
    उतर देत छोड़ौ बिनु मारे। केवल कौसिक सील तुम्हारे।।
    न त येहि काटि कुठार कठोरें। गुरहि उरिन होतेउँ श्रम थोरें।।

    गाधिसू कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।
    अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ।।

    तुलसीदास ने किस-किस के स्वभाव का सटीक वर्णन किया है?

    Solution
    तुलसी ने लक्ष्मण के तेज स्वभाव, विश्वामित्र के विवेक और परशुराम के घमंड का सटीक वर्णन किया है।
    Question 127
    CBSEENHN10002130

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    तुम्ह तौ कालु हॉक जनु लावा। बार बार मोहि लागि बोलावा।
    सुनत लखन के बचन कठोरा। परसु सुधारि धरेउ कर घोरा।।
    अब जनि देइ दोसु मोहि लोगु। कटुबादी बालकु बधजोगू ।।
    बाल बिलोकि बहुत मैं बाँचा। अब येहु मरनिहार भा साँचा।।
    कौसिक कहा छमिअ अपराधू। बाल दोष गुन गनहिं न साधू।।
    खर कुठार मैं अकरुन कोही। आगे अपराधी गुरुद्रोही।।
    उतर देत छोड़ौ बिनु मारे। केवल कौसिक सील तुम्हारे।।
    न त येहि काटि कुठार कठोरें। गुरहि उरिन होतेउँ श्रम थोरें।।

    गाधिसू कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।
    अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ।।

    नाटकीयता की सृष्टि किस कारण हुई है?

    Solution
    संवादात्मकता ने कथन को नाटकीयता का गुण प्रदान किया है।
    Question 128
    CBSEENHN10002131

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    तुम्ह तौ कालु हॉक जनु लावा। बार बार मोहि लागि बोलावा।
    सुनत लखन के बचन कठोरा। परसु सुधारि धरेउ कर घोरा।।
    अब जनि देइ दोसु मोहि लोगु। कटुबादी बालकु बधजोगू ।।
    बाल बिलोकि बहुत मैं बाँचा। अब येहु मरनिहार भा साँचा।।
    कौसिक कहा छमिअ अपराधू। बाल दोष गुन गनहिं न साधू।।
    खर कुठार मैं अकरुन कोही। आगे अपराधी गुरुद्रोही।।
    उतर देत छोड़ौ बिनु मारे। केवल कौसिक सील तुम्हारे।।
    न त येहि काटि कुठार कठोरें। गुरहि उरिन होतेउँ श्रम थोरें।।

    गाधिसू कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।
    अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ।।

    कवि ने किस भाषा का प्रयोग किया है?

    Solution
    अवधी भाषा का प्रयोग है।
    Question 129
    CBSEENHN10002132

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    तुम्ह तौ कालु हॉक जनु लावा। बार बार मोहि लागि बोलावा।
    सुनत लखन के बचन कठोरा। परसु सुधारि धरेउ कर घोरा।।
    अब जनि देइ दोसु मोहि लोगु। कटुबादी बालकु बधजोगू ।।
    बाल बिलोकि बहुत मैं बाँचा। अब येहु मरनिहार भा साँचा।।
    कौसिक कहा छमिअ अपराधू। बाल दोष गुन गनहिं न साधू।।
    खर कुठार मैं अकरुन कोही। आगे अपराधी गुरुद्रोही।।
    उतर देत छोड़ौ बिनु मारे। केवल कौसिक सील तुम्हारे।।
    न त येहि काटि कुठार कठोरें। गुरहि उरिन होतेउँ श्रम थोरें।।

    गाधिसू कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।
    अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ।।

    कवि ने प्रमुख रूप से किस-किस प्रकार के शब्दों का प्रयोग किया है?

    Solution
    तत्सम और तद्‌भव शब्दावली का सहज समन्वय किया गया है।
    Question 130
    CBSEENHN10002133

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    तुम्ह तौ कालु हॉक जनु लावा। बार बार मोहि लागि बोलावा।
    सुनत लखन के बचन कठोरा। परसु सुधारि धरेउ कर घोरा।।
    अब जनि देइ दोसु मोहि लोगु। कटुबादी बालकु बधजोगू ।।
    बाल बिलोकि बहुत मैं बाँचा। अब येहु मरनिहार भा साँचा।।
    कौसिक कहा छमिअ अपराधू। बाल दोष गुन गनहिं न साधू।।
    खर कुठार मैं अकरुन कोही। आगे अपराधी गुरुद्रोही।।
    उतर देत छोड़ौ बिनु मारे। केवल कौसिक सील तुम्हारे।।
    न त येहि काटि कुठार कठोरें। गुरहि उरिन होतेउँ श्रम थोरें।।

    गाधिसू कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।
    अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ।।

    किस काव्य गुण की अधिकता दिखाई देती है?

    Solution
    ओज गुण विद्यमान है।
    Question 131
    CBSEENHN10002134

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    तुम्ह तौ कालु हॉक जनु लावा। बार बार मोहि लागि बोलावा।
    सुनत लखन के बचन कठोरा। परसु सुधारि धरेउ कर घोरा।।
    अब जनि देइ दोसु मोहि लोगु। कटुबादी बालकु बधजोगू ।।
    बाल बिलोकि बहुत मैं बाँचा। अब येहु मरनिहार भा साँचा।।
    कौसिक कहा छमिअ अपराधू। बाल दोष गुन गनहिं न साधू।।
    खर कुठार मैं अकरुन कोही। आगे अपराधी गुरुद्रोही।।
    उतर देत छोड़ौ बिनु मारे। केवल कौसिक सील तुम्हारे।।
    न त येहि काटि कुठार कठोरें। गुरहि उरिन होतेउँ श्रम थोरें।।

    गाधिसू कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।
    अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ।।

    किस काव्य -रस का प्रयोग किया गया है?

    Solution
    वीर रस है।
    Question 132
    CBSEENHN10002135

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    तुम्ह तौ कालु हॉक जनु लावा। बार बार मोहि लागि बोलावा।
    सुनत लखन के बचन कठोरा। परसु सुधारि धरेउ कर घोरा।।
    अब जनि देइ दोसु मोहि लोगु। कटुबादी बालकु बधजोगू ।।
    बाल बिलोकि बहुत मैं बाँचा। अब येहु मरनिहार भा साँचा।।
    कौसिक कहा छमिअ अपराधू। बाल दोष गुन गनहिं न साधू।।
    खर कुठार मैं अकरुन कोही। आगे अपराधी गुरुद्रोही।।
    उतर देत छोड़ौ बिनु मारे। केवल कौसिक सील तुम्हारे।।
    न त येहि काटि कुठार कठोरें। गुरहि उरिन होतेउँ श्रम थोरें।।

    गाधिसू कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।
    अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ।।

    अवतरण में लयात्मकता की सृष्टि किस कारण हुई है?

    Solution
    स्वरमैत्री और छंद युक्त होने के कारण रचना में लयात्मकता विद्यमान है।
    Question 133
    CBSEENHN10002136

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    तुम्ह तौ कालु हॉक जनु लावा। बार बार मोहि लागि बोलावा।
    सुनत लखन के बचन कठोरा। परसु सुधारि धरेउ कर घोरा।।
    अब जनि देइ दोसु मोहि लोगु। कटुबादी बालकु बधजोगू ।।
    बाल बिलोकि बहुत मैं बाँचा। अब येहु मरनिहार भा साँचा।।
    कौसिक कहा छमिअ अपराधू। बाल दोष गुन गनहिं न साधू।।
    खर कुठार मैं अकरुन कोही। आगे अपराधी गुरुद्रोही।।
    उतर देत छोड़ौ बिनु मारे। केवल कौसिक सील तुम्हारे।।
    न त येहि काटि कुठार कठोरें। गुरहि उरिन होतेउँ श्रम थोरें।।

    गाधिसू कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।
    अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ।।

    किस छंद का प्रयोग किया गया है?

    Solution
    दोहा- चोपाई छंद का प्रयोग किया गया है।
    Question 134
    CBSEENHN10002137

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    तुम्ह तौ कालु हॉक जनु लावा। बार बार मोहि लागि बोलावा।
    सुनत लखन के बचन कठोरा। परसु सुधारि धरेउ कर घोरा।।
    अब जनि देइ दोसु मोहि लोगु। कटुबादी बालकु बधजोगू ।।
    बाल बिलोकि बहुत मैं बाँचा। अब येहु मरनिहार भा साँचा।।
    कौसिक कहा छमिअ अपराधू। बाल दोष गुन गनहिं न साधू।।
    खर कुठार मैं अकरुन कोही। आगे अपराधी गुरुद्रोही।।
    उतर देत छोड़ौ बिनु मारे। केवल कौसिक सील तुम्हारे।।
    न त येहि काटि कुठार कठोरें। गुरहि उरिन होतेउँ श्रम थोरें।।

    गाधिसू कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।
    अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ।।

    दो तद्‌भव शब्द लिखिए।

    Solution

    बिदित, माथे।
    हरा ही हरा सूझना।

    Question 135
    CBSEENHN10002138

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    तुम्ह तौ कालु हॉक जनु लावा। बार बार मोहि लागि बोलावा।
    सुनत लखन के बचन कठोरा। परसु सुधारि धरेउ कर घोरा।।
    अब जनि देइ दोसु मोहि लोगु। कटुबादी बालकु बधजोगू ।।
    बाल बिलोकि बहुत मैं बाँचा। अब येहु मरनिहार भा साँचा।।
    कौसिक कहा छमिअ अपराधू। बाल दोष गुन गनहिं न साधू।।
    खर कुठार मैं अकरुन कोही। आगे अपराधी गुरुद्रोही।।
    उतर देत छोड़ौ बिनु मारे। केवल कौसिक सील तुम्हारे।।
    न त येहि काटि कुठार कठोरें। गुरहि उरिन होतेउँ श्रम थोरें।।

    गाधिसू कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।
    अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ।।

    इस काव्यांश में प्रयुक्त अलंकार लिखिए।

    Solution

    उत्प्रेक्षा- तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा।
    पुनरुक्तिप्रकाश- बार-बार।
    रूपकातिशयोक्ति- अयमय खाँड़ न ऊखमय।
    अनुप्रास- • ‘कौसिक कहा’, ‘अकरुन कोही’, ‘केवल कौसिक’, ‘काटि कुठार कठोरे’
    • ‘गुन गनाहिं
    • ‘हृदय हसि मुनिहि हरियरे’
    • ‘परसु सुधारि धरेउ कर घोरा’
    • ‘देइ दोसू’
    • ‘कटुबादी बालकु बधजोगू, ‘बाल बिलोकि बहुत मैं बाँचा’

    Question 136
    CBSEENHN10002139

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।

    लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
    बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    Solution

    प्रसंग- प्रस्तुत पद गोस्वामी तुलसीदास के द्वारा रचित महाकाव्य ‘रामचरितमानस’ के ‘बाल कांड’ से लिया गया है। लक्ष्मण और परशुराम में सीता स्वयंवर के समय शिवजी के धनुष टूट जाने पर विवाद हुआ था जिसे राम ने अधिक बढ़ने से पहले ही रोक दिया था।

    व्याख्या- लक्ष्मण ने कहा-हे मुनि! आपके शील को कौन नहीं जानता? वह संसार भर में प्रसिद्ध है। आप माता- पिता से तो भली-भांति ऋणमुक्त हो ही चुके हैं। अब गुरु का ऋण आप पर रह गया है जिसका आपके मन पर बड़ा बोझ है; आपको उसकी चिंता सता रही है। वह ऋण मानो हमारे ही माथे निकाला था। बहुत दिन बीत गए। इसमें ब्याज भी बहुत बढ़ गया होगा। अब किसी हिसाब-किताब करने वाले को बुला लाइए, तो मैं तुरंत थैली खोलकर उधार चुका दूँ। लक्ष्मण के कड़वे वचन सुनकर परशुराम ने अपना फरसा संभाला। सारी सभा हाय! हाय! करके पुकार उठी। लक्ष्मण ने कहा-हे भृगु श्रेष्ठ! आप मुझे फरसा दिखा रहे हैं? पर हे राजाओं के शत्रु! मैं आपको ब्राहमण समझकर अब तक बचा रहा हूँ। लगता है कि आपको कभी रणधीर बलवान् वीर नहीं मिले। हे ब्राह्मण, देवता आप घर ही में बड़े हैं। यह सुनते ही सभी लोग पुकार उठे कि ‘यह अनुचित है, अनुचित है, तब रघुकुल पति श्री राम ने संकेत से लक्ष्मण को रोक दिया। लक्ष्मण के उत्तर जो आहुति के समान थे, परशुराम के क्रोध रूपी आग को बढ़ते देखकर रघुकुल के सूर्य श्री राम ने जल के समान शीतल वचन कहे।

     
    Question 137
    CBSEENHN10002140

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    पद में निहित भाव स्पष्ट कीजिए।

    Solution
    लक्ष्मण ने परशुराम से व्यंग्यशैली में बात करते हुए कहा था कि वे अपने माता-पिता के ऋण से मुक्त हो ही चुके थे अब गुरु ऋण का जो हिसाब-किताब उनके मत्थे डाला गया है उसे भी चुका दें। व्यर्थ में अपने सिर पर बोझ क्यों लादे हुए थे। आज तक उन्हें शक्तिशालीं रणवीर मिले ही नहीं थे और इसीलिए वे स्वयं को बहादुर मान रहे थे। राजसभा में उपस्थित राजाओं को लक्ष्मण के ये शब्द उचित नहीं लगे। राम के संकेत को समझकर लक्ष्मण चुप हो गए।
    Question 138
    CBSEENHN10002141

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    लक्ष्मण ने परशुराम से क्या कहा?

    Solution
    लक्ष्मण ने परशुराम से कहा कि सारा संसार उनके शील को भली-भाँति जानता था।
    Question 139
    CBSEENHN10002142

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    परशुराम के सिर पर किस का ऋण शेष था?

    Solution
    परशुराम के सिर पर गुरु ऋण अभी शेष था।
    Question 140
    CBSEENHN10002143

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    परशुराम की चिंता अभी शेष क्यों थी?

    Solution
    परशुराम की चिंता अभी यह सोचकर शेष थी कि वह अपने गुरु के ऋण को किस प्रकार चुकाएगा।
    Question 141
    CBSEENHN10002144

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    लक्ष्मण ने ऋण चुकाने के लिए परशुराम से किस को बुलाने के लिए कहा था?

    Solution
    लक्ष्मण ने ऋण चुकाने के लिए ब्याज गणना हेतु, किसी हिसाब-किताब करने वाले को बुलाने के लिए कहा था।
    Question 142
    CBSEENHN10002145

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    सारी राजसभा क्या और क्यों पुकारने लगी थी?

    Solution
    लक्ष्मण के व्यवहार से सारी राजसभा हाय! हाय! करने लगी थी और कहने लगी थी कि लक्ष्मण का परशुराम के प्रति व्यवहार अनुचित था।
    Question 143
    CBSEENHN10002146

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    लक्ष्मण परशुराम को क्यों बचा रहा था?

    Solution
    लक्ष्मण परशुराम को अब तक इसलिए बचा रहा था क्योकि परशुराम ब्राह्मण था और सूर्यवंशी उन पर अस्त्र--शस्त्र नहीं उठाते थे ।
    Question 144
    CBSEENHN10002147

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    राम ने लक्ष्मण को बोलने से किस प्रकार रोका था?

    Solution
    राम ने लक्ष्मण को संकेत के द्वारा बोलने से रोका था।
    Question 145
    CBSEENHN10002148

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    लक्ष्मण के शब्द परशुराम के लिए कैसे थे?

    Solution
    लक्ष्मण के शब्द परशुराम के लिए क्रोध रूपी आग में आहुति के समान थे जिस कारण परशुराम का गुस्सा लगातार बढ़ता ही जा रहा था।
    Question 146
    CBSEENHN10002149

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    इस अवतरण के आधार पर राम के चरित्र की विशेषताएँ लिखिए।

    Solution
    राम शांत, नम्र, विनयी, कोमल, मर्यादित और समझदार व्यक्तित्व के स्वामी थे। वे अपने कोमल शब्दों से बिगड़ी हुई स्थिति को नियंत्रित करने में समर्थ थे।
    Question 147
    CBSEENHN10002150

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    इस अवतरण के आधार पर लक्ष्मण के चरित्र की विशेषताएँ लिखिए।

    Solution
    लक्ष्मण उग्र, क्रोधी और व्यंग्य करने वाले व्यक्तित्व के स्वामी थे। वे बोलते समय विवेकपूर्ण व्यवहार नहीं करते थे।
    Question 148
    CBSEENHN10002151

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    नृपदोही किसे कहा गया है और किस लिए?


    Solution
    परशुराम को नृपद्रोही कहा गया है।
    Question 149
    CBSEENHN10002152

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    सभा में उपस्थित लोगों ने लक्ष्मण की कठोर और व्यंग्यपूर्ण बातों के प्रति क्या प्रतिक्रिया की थी?

    Solution
    सभा में उपस्थित लोगों ने लक्ष्मण की कठोर और व्यंग्यपूर्ण बातों के प्रति अपना रोष और विरोध प्रकट किया था।
    Question 150
    CBSEENHN10002153

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    कवि ने किस भाषा का प्रयोग किया है?

    Solution
    अवधी भाषा का सहज-सुंदर प्रयोग किया गया है।
    Question 151
    CBSEENHN10002154

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    किस प्रकार की शब्दावली का प्रयोग किया गया है?

    Solution
    तत्सम और तद्‌भव शब्दावली का स्वाभाविक-समन्वित प्रयोग किया गया है।
    Question 152
    CBSEENHN10002155

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    कवि ने किन छंदों का प्रयोग किया है?

    Solution
    दोहा-चोपाई छंद का प्रयोग है।
    Question 153
    CBSEENHN10002156

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    किस काव्य-रस का प्रयोग है?

    Solution
    वीर रस का प्रयोग है।
    Question 154
    CBSEENHN10002157

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    किस काव्य-गुण की प्रधानता है?

    Solution
    ओज गुण विद्यमान है।
    Question 155
    CBSEENHN10002158

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    कवि ने लयात्मकता की सृष्टि कैसे की है?


    Solution
    स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है।
    Question 156
    CBSEENHN10002159

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    लक्ष्मण के शब्दों में कौन-सी शब्द-शक्ति विद्यमान है।


    Solution
    व्यंजना शब्द शक्ति विद्यमान है जिसने लक्ष्मण के शब्दों को विशेष अर्थ प्रदान किया है।
    Question 157
    CBSEENHN10002160

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    कोई दो तद्‌भव शब्द छाँट कर लिखिए।

    Solution
    बिदित, मोही।
    Question 158
    CBSEENHN10002161

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    संवादों के कारण कौन-सा भाव विशेषता आ गई है?

    Solution
    नाटकीयता।
    Question 159
    CBSEENHN10002162

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    Solution

    प्रसंग- प्रस्तुत पद गोस्वामी तुलसीदास के द्वारा रचित महाकाव्य ‘रामचरितमानस’ के ‘बाल कांड’ से लिया गया है। लक्ष्मण और परशुराम में सीता स्वयंवर के समय शिवजी के धनुष टूट जाने पर विवाद हुआ था जिसे राम ने अधिक बढ़ने से पहले ही रोक दिया था।
    व्याख्या- लक्ष्मण ने कहा-हे मुनि! आपके शील को कौन नहीं जानता? वह संसार भर में प्रसिद्ध है। आप माता-पिता से तो भली-भांति ऋणमुक्त हो ही चुके हैं। अब गुरु का ऋण आप पर रह गया है जिसका आपके मन पर बड़ा बोझ है; आपको उसकी चिंता सता रही है। वह ऋण मानो हमारे ही माथे निकाला था। बहुत दिन बीत गए। इसमें ब्याज भी बहुत बढ़ गया होगा। अब किसी हिसाब-किताब करने वाले को बुला लाइए, तो मैं तुरंत थैली खोलकर उधार चुका दूँ। लक्ष्मण के कड़वे वचन सुनकर परशुराम ने अपना फरसा संभाला। सारी सभा हाय! हाय! करके पुकार उठी। लक्ष्मण ने कहा-हे भृगु श्रेष्ठ! आप मुझे फरसा दिखा रहे हैं? पर हे राजाओं के शत्रु! मैं आपको ब्राहमण समझकर अब तक बचा रहा हूँ। लगता है कि आपको कभी रणधीर बलवान वीर नहीं मिले। हे ब्राह्मण, देवता आप घर ही में बड़े हैं। यह सुनते ही सभी लोग पुकार उठे कि ‘यह अनुचित है, अनुचित है, तब रघुकुल पति श्री राम ने संकेत से लक्ष्मण को रोक दिया। लक्ष्मण के उत्तर जो आहुति के समान थे, परशुराम के क्रोध रूपी आग को बढ़ते देखकर रघुकुल के सूर्य श्री राम ने जल के समान शीतल वचन कहे।

    Question 160
    CBSEENHN10002163

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    पद में निहित भाव स्पष्ट कीजिए।

    Solution
    लक्ष्मण ने परशुराम से व्यंग्यशैली में बात करते हुए कहा था कि वे अपने माता-पिता के ऋण से मुक्त हो ही चुके थे अब गुरु ऋण का जो हिसाब-किताब उनके मत्थे डाला गया है उसे भी चुका दें। व्यर्थ में अपने सिर पर बोझ क्यों लादे हुए थे। आज तक उन्हें शक्तिशालीं रणवीर मिले ही नहीं थे और इसीलिए वे स्वयं को बहादुर मान रहे थे। राजसभा में उपस्थित राजाओं को लक्ष्मण के ये शब्द उचित नहीं लगे। राम के संकेत को समझकर लक्ष्मण चुप हो गए।
    Question 161
    CBSEENHN10002164

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    लक्ष्मण ने परशुराम से क्या कहा?

    Solution
    लक्ष्मण ने परशुराम से कहा कि सारा संसार उनके शील को भली-भाँति जानता था।
    Question 162
    CBSEENHN10002165

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    परशुराम के सिर पर किस का ऋण शेष था?

    Solution
    परशुराम के सिर पर गुरु ऋण अभी शेष था।
    Question 163
    CBSEENHN10002166

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    परशुराम की चिंता अभी शेष क्यों थी?

    Solution
    परशुराम की चिंता अभी यह सोचकर शेष थी कि वह अपने गुरु के ऋण को किस प्रकार चुकाएगा।
    Question 164
    CBSEENHN10002167

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    लक्ष्मण ने ऋण चुकाने के लिए परशुराम से किस को बुलाने के लिए कहा था?

    Solution
    लक्ष्मण ने ऋण चुकाने के लिए ब्याज गणना हेतु, किसी हिसाब-किताब करने वाले को बुलाने के लिए कहा था।
    Question 165
    CBSEENHN10002168

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    सारी राजसभा क्या और क्यों पुकारने लगी थी?

    Solution
    लक्ष्मण के व्यवहार से सारी राजसभा हाय! हाय! करने लगी थी और कहने लगी थी कि लक्ष्मण का परशुराम के प्रति व्यवहार अनुचित था।
    Question 166
    CBSEENHN10002169

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    लक्ष्मण परशुराम को क्यों बचा रहा था?

    Solution
    लक्ष्मण परशुराम को अब तक इसलिए बचा रहा था क्योकि परशुराम ब्राह्मण था और सूर्यवंशी उन पर अस्त्र-शस्त्र नहीं उठाते थे।
    Question 167
    CBSEENHN10002170

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    राम ने लक्ष्मण को बोलने से किस प्रकार रोका था?

    Solution
    राम ने लक्ष्मण को संकेत के द्वारा बोलने से रोका था।
    Question 168
    CBSEENHN10002171

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    लक्ष्मण के शब्द परशुराम के लिए कैसे थे?

    Solution
    लक्ष्मण के शब्द परशुराम के लिए क्रोध रूपी आग में आहुति के समान थे जिस कारण परशुराम का गुस्सा लगातार बढ़ता ही जा रहा था।
    Question 169
    CBSEENHN10002172

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    इस अवतरण के आधार पर राम के चरित्र की विशेषताएँ लिखिए।

    Solution
    राम शांत, नम्र, विनयी, कोमल, मर्यादित और समझदार व्यक्तित्व के स्वामी थे। वे अपने कोमल शब्दों से बिगड़ी हुई स्थिति को नियंत्रित करने में समर्थ थे।
    Question 170
    CBSEENHN10002173

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    इस अवतरण के आधार पर लक्ष्मण के चरित्र की विशेषताएँ लिखिए।

    Solution
    लक्ष्मण उग्र, क्रोधी और व्यंग्य करने वाले व्यक्तित्व के स्वामी थे। वे बोलते समय विवेकपूर्ण व्यवहार नहीं करते थे।
    Question 171
    CBSEENHN10002174

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    नृपदोही किसे कहा गया है और किस लिए?

    Solution
    परशुराम को नृपद्रोही कहा गया है।
    Question 172
    CBSEENHN10002175

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    सभा में उपस्थित लोगों ने लक्ष्मण की कठोर और व्यंग्यपूर्ण बातों के प्रति क्या प्रतिक्रिया की थी?

    Solution
    सभा में उपस्थित लोगों ने लक्ष्मण की कठोर और व्यंग्यपूर्ण बातों के प्रति अपना रोष और विरोध प्रकट किया था।
    Question 173
    CBSEENHN10002176

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    कवि ने किस भाषा का प्रयोग किया है?

    Solution
    अवधी भाषा का सहज-सुंदर प्रयोग किया गया है।
    Question 174
    CBSEENHN10002177

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    किस प्रकार की शब्दावली का प्रयोग किया गया है?

    Solution
    तत्सम और तद्‌भव शब्दावली का स्वाभाविक-समन्वित प्रयोग किया गया है।
    Question 175
    CBSEENHN10002178

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    कवि ने किन छंदों का प्रयोग किया है?

    Solution
    दोहा-चोपाई छंद का प्रयोग है।
    Question 176
    CBSEENHN10002179

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    किस काव्य-रस का प्रयोग है?

    Solution
    वीर रस का प्रयोग है।
    Question 177
    CBSEENHN10002180

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    किस काव्य-गुण की प्रधानता है?

    Solution
    ओज गुण विद्यमान है।
    Question 178
    CBSEENHN10002181

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    कवि ने लयात्मकता की सृष्टि कैसे की है?

    Solution
    स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है।
    Question 179
    CBSEENHN10002182

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    लक्ष्मण के शब्दों में कौन-सी शब्द-शक्ति विद्यमान है।

    Solution
    व्यंजना शब्द शक्ति विद्यमान है जिसने लक्ष्मण के शब्दों को विशेष अर्थ प्रदान किया है।
    Question 180
    CBSEENHN10002183

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    लक्ष्मण के शब्दों में कौन-सी शब्द-शक्ति विद्यमान है।

    Solution
    व्यंजना शब्द शक्ति विद्यमान है जिसने लक्ष्मण के शब्दों को विशेष अर्थ प्रदान किया है।
    Question 181
    CBSEENHN10002184

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    कोई दो तद्‌भव शब्द छाँट कर लिखिए।

    Solution
    बिदित, मोही।
    Question 182
    CBSEENHN10002185

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    संवादों के कारण कौन-सा भाव विशेषता आ गई है?

    Solution
    नाटकीयता।
    Question 183
    CBSEENHN10002186

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    ‘द्‌विजदेवता’ में कौन-सा भाव व्यक्त हुआ है?

    Solution
    व्यंग्य,  वक्रोक्ति।
    Question 184
    CBSEENHN10002187

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    दो तत्सम शब्द लिखिए।

    Solution
    आहुति, कटु।
    Question 185
    CBSEENHN10002188

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    इस काव्यांश में प्रयुक्त अलंकार लिखिए।

    Solution

    वीप्सा-
    • हाय-हाय।
    वक्रोक्ति-
    • कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    • माता पितहि उरिन भये नीकें.............. थैली खोली।

    उपमा-
    • लखन उतर आहुति सरिस
    • जल-सम बचन।
    • भृगुबरकोपु कृसानु।

    अनुप्रास-
    • ‘ब्याज बड़ बाड़ा’, ‘बिप्र बिचारि बची’
    • ‘सब सभा’
    • ‘थैली खोली’
    • ‘कुठार सुधारा’

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