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हमारी आज़ादी की लड़ाई में समाज के उपेक्षित माने जाने वाले वर्ग का योगदान भी कम नहीं रहा है। इस कहानी में ऐसे लोगों के योगदान को लेखक ने किस प्रकार उभारा है?
इस कहानी में लेखक ने टुन्नू व दुलारी जैसे पात्रों के माध्यम से उस वर्ग को उभारने की कोशिश की है, जो समाज में हीन या उपेक्षित वर्ग के रूप में देखे जाते हैं। भारत की आज़ादी की लड़ाई में हर धर्म और वर्ग के लोगों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया था। टुन्नू व दुलारी दोनों ही कजली गायक हैं। टुन्नू ने आज़ादी के लिए निकाले गए जलूसों में भाग लेकर व अपने प्राणों की आहूति देकर ये सिद्ध किया कि ये वर्ग मात्र नाचने या गाने के लिए पैदा नहीं हुए हैं अपितु इनके मन में भी आज़ादी प्राप्त करने का जोश है। इसी तरह दुलारी द्वारा रेशमी साड़ियों को जलाने के लिए देना भी एक बहुत बड़ा कदम था तथा इसी तरह जलसे में बतौर गायिका जाना व उसमें नाचना-गाना उसके योगदान की ओर इशारा करता है। लेखक ने इस प्रकार समाज के उपेक्षित लोगों के योगदान को स्वतंत्रता के आंदोलन में महत्त्वपूर्ण माना हैं।
कठोर ह्रदयी समझी जाने वाली दुलारी टुन्नू की मृत्यु पर क्यों विचलित हो उठी?
दुलारी अपने कठोर स्वभाव के लिए प्रसिद्ध थी परन्तु दुलारी का स्वभाव नारियल की तरह था। वह एक अकेली स्त्री थी। इसलिए स्वयं की रक्षा हेतु वह कठोर आचरण करती थी। परन्तु अंदर से वह बहुत नरम दिल की स्त्री थी। टुन्नू, जो उसे प्रेम करता था, उसके लिए उसके ह्रदय में बहुत खास स्थान था परन्तु वह हमेशा टुन्नू को दुतकारती रहती थी क्योंकि टुन्नू उससे उम्र में बहुत छोटा था। परन्तु उसके मन में टुन्नू का एक अलग ही स्थान था उसने जान लिया था कि टुन्नू उसके शरीर का नहीं, बल्कि उसकी गायन-कला का प्रेमी था। फेंकू द्वारा टुन्नू की मृत्यु का समाचार पाकर उसका ह्रदय दर्द से फट पड़ा और आँखों से आँसूओं की धारा बह निकली। किसी के लिए ना पसीजने वाला ह्रदय आज चीत्कार कर रहा था। उसकी मृत्यु ने टुन्नू के प्रति उसके प्रेम को सबके समक्ष प्रस्तुत कर दिया उसने टुन्नू द्वारा दी गई खादी की धोती पहन ली।
कठोर ह्रदयी समझी जाने वाली दुलारी टुन्नू की मृत्यु पर क्यों विचलित हो उठी?
दुलारी अपने कठोर स्वभाव के लिए प्रसिद्ध थी परन्तु दुलारी का स्वभाव नारियल की तरह था। वह एक अकेली स्त्री थी। इसलिए स्वयं की रक्षा हेतु वह कठोर आचरण करती थी। परन्तु अंदर से वह बहुत नरम दिल की स्त्री थी। टुन्नू, जो उसे प्रेम करता था, उसके लिए उसके ह्रदय में बहुत खास स्थान था परन्तु वह हमेशा टुन्नू को दुतकारती रहती थी क्योंकि टुन्नू उससे उम्र में बहुत छोटा था। परन्तु उसके मन में टुन्नू का एक अलग ही स्थान था उसने जान लिया था कि टुन्नू उसके शरीर का नहीं, बल्कि उसकी गायन-कला का प्रेमी था। फेंकू द्वारा टुन्नू की मृत्यु का समाचार पाकर उसका ह्रदय दर्द से फट पड़ा और आँखों से आँसूओं की धारा बह निकली। किसी के लिए ना पसीजने वाला ह्रदय आज चीत्कार कर रहा था। उसकी मृत्यु ने टुन्नू के प्रति उसके प्रेम को सबके समक्ष प्रस्तुत कर दिया उसने टुन्नू द्वारा दी गई खादी की धोती पहन ली।
दुलारी विशिष्ट कहे जाने वाले सामाजिक - सांस्कृतिक दायरे से बाहर है फिर भी अति विशिष्ट है। इस कथन को ध्यान में रखते हुए दुलारी की चारित्रिक विशेषताएँ लिखिए।
दुलारी विशिष्ट कहे जाने वाले सामाजिक, सांस्कृतिक के दायरे से बाहर है क्योंकि वह गौनहारिन है और गौनहारिन को सामाजिक प्रतिष्ठा का पात्र नहीं माना जाता है उसकी विशिष्ट प्रतिभाएँ इस प्रकार है -
1) प्रबुद्ध गायिका: दुलारी एक प्रभावशाली गायिका है उसकी आवाज़ में मधुरता व लय का सुन्दर संयोजन है। पद्य में तो सवाल-जवाब करने में उसे कुशलता प्राप्त थी। उसके आगे अच्छा गायक भी नहीं टिक पाता था।
2) दुलारी अबला नहीं: वह नारी होते हुए पुरुषों के पौरुष को ललकारने की क्षमता रखती है। वह पुरुषों की तरह ही दनादन दंड लगाती है, कसरत करती है।
3) देश के प्रति श्रद्धा: बेशक दुलारी प्रत्यक्ष रूप से स्वतन्त्रता संग्राम में ना कूदी हो पर वह अपने देश के प्रति समर्पित स्त्री थी। तभी उसने फेंकू द्वारा दी, रेशमी साड़ियों के बंडल को, विदेशी वस्त्रों को एकत्र करके जलाने हेतु जुलूस में आए लोगों को दे दिया।
4) समर्पित प्रेमिका: दुलारी एक समर्पित प्रेमिका थी। वह टुन्नू से मन ही मन प्रेम करती थी। परन्तु उसके जीते-जी उसने अपने प्रेम को कभी व्यक्त नहीं किया। उसकी मृत्यु ने उसके ह्रदय में दबे प्रेम को आँसूओं के रूप में प्रवाहित कर दिया।
5) सहृदया नारी: वह सहृदया भी है। टुन्नू की मृत्यु पर उसकी आँखों से आँसुओं की मेघमाला उमड़ पड़ती है। इस तरह वह भावुक सहृदया नारी है।
6) निडर स्त्री: दुलारी एक निडर स्त्री थी। वह किसी से नहीं डरती थी। अकेली स्त्री होने के कारण उसने स्वयं की रक्षा हेतु अपने को निडर बनाया हुआ था। इसी निडरता से उसने फेकूं की दी हुई साड़ी जुलूस में फेंक दी। टुन्नू की मृत्यु के पश्चात उसने अंग्रेज विरोधी समारोह में भाग लिया तथा गायन पेश किया।
7) स्वाभिमानी स्त्री: दुलारी एक स्वाभिमानी स्त्री थी। वह अपने सम्मान के लिए समझौता करने के लिए कतई तैयार नहीं थी। इसलिए उसे उसकी गायकी में कोई भी हरा नहीं सकता था।
दुलारी का टुन्नू से पहली बार परिचय कहाँ और किस रूप में हुआ?
टुन्नू व दुलारी का परिचय भादों में तीज़ के अवसर पर खोजवाँ बाज़ार में हुआ था। जहाँ वह गाने के लिए बुलवाई गई थी। दुक्कड़ पर गानेवालियों में दुलारी का खासा नाम था। उससे पद्य में ही सवाल-जवाब करने की महारत हासिल थी। बड़े-बड़े गायक उसके आगे पानी भरते नज़र आते थे और यही कारण था कि कोई भी उसके सम्मुख नहीं आता था। उसी कजली दंगल में उसकी मुलाकात टुन्नू से हुई थी। उसने भी पद्यात्मक शैली में प्रश्न-उत्तर करने में कुशलता प्राप्त की थी। टुन्नू दुलारी की ओर हाथ उठकर चुनौती के रूप में ललकार उठा। दुलारी मुस्कुराती हुई मुग्ध होकर सुनती रही। टुन्नू ने दुलारी को भी अपने आगे नतमस्तक कर दिया था।
दुलारी का टुन्नू को यह कहना कहाँ तक उचित था - 'तैं सरबउला बोल ज़िन्नगी में कब देखले लोट?...! 'दुलारी से इस आक्षेप में आज के युवा वर्ग के लिए क्या संदेश छिपा है? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
दुलारी का टुन्नू को यह कहना उचित था - 'तैं सरबउला बोल ज़िन्दगी में कब देखने लोट?...! ' क्योंकि टुन्नू अभी सोलह सत्रह वर्ष का है। उसके पिताजी गरीब पुरोहित थे जो बड़ी मुश्किल से गृहस्थी चला रहे थे। टुन्नू ने अब तक लोट (नोट) देखे नहीं। उसे पता नहीं कि कैसे कौड़ी-कौड़ी जोड़कर लोग गृहस्थी चलाते है। यहाँ दुलारी ने उन लोगों पर आक्षेप किया है जो असल ज़िन्दगी में कुछ करते नहीं मात्र दूसरों की नकल पर ही आश्रित होते हैं। उसके अनुसार इस ज़िन्दगी में कब क्या हो जाए कोई नहीं जानता। इस ज़िन्दगी में कब नोट या धन देखने को मिल जाए कोई कुछ नहीं जानता। इसलिए हर परिस्थिति के लिए तैयार रहना चाहिए।
भारत के स्वीधनता आंदोलन में दुलारी और टुन्नू ने अपना योगदान किस प्रकार दिया?
दुलारी का योगदान:
दुलारी प्रत्यक्ष रूप में आन्दोलन में भाग नहीं ले रही थी फिर भी अप्रत्यक्ष रूप से उसने अपना योगदान दिया था। विदेशी वस्त्रों के बाहिष्कार हेतु चलाए जा रहे आन्दोलन में दुलारी ने अपना योगदान रेशमी साड़ी व फेंकू द्वारा दिए गए रेशमी साड़ी के बंडल को देकर दिया।
टुन्नू का योगदान:
टुन्नू ने स्वतन्त्रता संग्राम में एक सिपाही की तरह अपना योगदान दिया था। उसने रेशमी कुर्ता व टोपी के स्थान पर खादी के वस्त्र पहनना आरम्भ कर दिया। अंग्रेज विरोधी आन्दोलन में वह सक्रिय रूप से भाग लेने लग गया था और इसी सहभागिता के कारण उसे अपने प्राणों का बालिदान देना पड़ा।
दुलारी और टुन्नू के प्रेम के पीछे उनका कलाकार मन और उनकी कला थी? यह प्रेम दुलारी को देश प्रेम तक कैसे पहुँचाता है?
टुन्नू सोलह वर्ष का युवक था और दुलारी ढलते यौवन की प्रोढ़ा थी। दुलारी टुन्नू की काव्य प्रतिभा पर मंत्र मुग्ध थी। दुलारी और टुन्नू के ह्रदय में एक दूसरे के प्रति अगाध प्रेम था और ये प्रेम उनकी कला के माध्यम से ही उनके जीवन में आया था। दुलारी ने टुन्नू के प्रेम निवेदन को कभी स्वीकारा नहीं परन्तु वह मन ही मन उससे बहुत प्रेम करती थी। वह यह भली भांति जानती थी कि टुन्नू का प्रेम शारीरिक ना होकर आत्मीय प्रेम था और टुन्नू की इसी भावना ने उसके मन में उसके प्रति श्रद्धा भावना भर दी थी। परन्तु फेंकू द्वारा टुन्नू की मृत्यु का समाचार पाकर उसका ह्रदय दर्द से फट पड़ा और आँखों से आँसूओं की धारा बह निकली। किसी के लिए ना पसीजने वाला ह्रदय आज चीत्कार कर रहा था। उसकी मृत्यु ने टुन्नू के प्रति उसके प्रेम को सबके समक्ष प्रस्तुत कर दिया उसने टुन्नू द्वारा दी गई खादी की धोती पहन ली। अंग्रेज अफसर द्वारा उसकी निर्दयता पूर्वक हत्या ने, उसके अन्दर के कलाकार को प्रेरित किया और उसने स्वतन्त्रता सेनानियों द्वारा आयोजित समारोह में अपने गायन से नई जान फूँक दी। यही से उसने देश प्रेम का मार्ग चुना।
जलाए जाने वाले विदेशी वस्त्रों के ढेर में अधिकाशं वस्त्र फटे-पुराने थे परंतु दुलारी द्वारा विदेशी मिलों में बनी कोरी साड़ियों का फेंका जाना उसकी किस मानसिकता को दर्शाता है?
आज़ादी के दीवानों की एक टोली जलाने के लिए विदेशी वस्त्रों का संग्रह कर रही थी। अधिकतर लोग फटे-पुराने वस्त्र दे रहे थे। दुलारी के वस्त्र बिलकुल नए थे। दुलारी द्वारा विदेशी वस्त्रों के ढेर में कोरी रेशमी साड़ियों का फेंका जाना यह दर्शाता है कि वह एक सच्ची हिन्दुस्तानी है, जिसके ह्रदय में देश के प्रति प्रेम व आदरभाव है। देश के आगे उसके लिए साड़ियों का कोई मूल्य नहीं है। उसके ह्रदय में उन रेशमी साड़ियों का मोह नहीं था। मोह था तो अपने देश के सम्मान का। वह उसकी सच्चे देश प्रेमी की मानसिकता को दर्शाता है।
'मन पर किसी का बस नहीं; वह रूप या उमर का कायल नहीं होता।' टुन्नू के इस कथन में उसका दुलारी के प्रति किशोर जनित प्रेम व्यक्त हुआ है परंतु उसके विवेक ने उसके प्रेम को किस दिशा की ओर मोड़ा?
टुन्नू दुलारी से प्रेम करता था। वह दुलारी से उम्र में बहुत ही छोटा था। वह मात्र सत्रह-सोलह साल का लड़का था। दुलारी को उसका प्रेम उसकी उम्र की नादानी के अलावा कुछ नहीं लगता था। इसलिए वह उसका तिरस्कार करती रहती थी। टुन्नू का यह कथन सत्य है। उसका प्यार आत्मिक था। इसलिए उसे दुलारी की आयु या उसके रूप से कुछ लेना देना नहीं था।
टुन्नू के द्वारा कहे वचनों ने दुलारी के ह्रदय में उसके आसन को और दृढ़ता से स्थापित कर दिया। टुन्नु के प्रति उसके विवेक ने उसके प्रेम को श्रद्धा का स्थान दे दिया। अब उसका स्थान अन्य कोई व्यक्ति नहीं ले सकता था। उसकी मृत्यु ने टुन्नू के प्रति उसके प्रेम को सबके समक्ष प्रस्तुत कर दिया उसने टुन्नू द्वारा दी गई खादी की धोती पहन ली। अंग्रेज अफसर द्वारा उसकी निर्दयता पूर्वक हत्या ने, उसके अन्दर के कलाकार को प्रेरित किया और उसने स्वतन्त्रता सेनानियों द्वारा आयोजित समारोह में अपने गायन से नई जान फूँक दी। यही से उसने देश प्रेम का मार्ग चुना।
'एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा! का प्रतीकार्थ समझाइए।
इस कथन का शाब्दिक अर्थ है कि इसी स्थान पर मेरी नाक की लौंग खो गई है, मैं किससे पूछूँ? नाक में पहना जानेवाला लोंग सुहाग का प्रतीक है। दुलारी एक गौनहारिन है उसने अपने मन रूपी नाक में टुन्नू के नाम का लोंग पहन लिया है।
दुलारी की मनोस्थिति देखें तो जिस स्थान पर उसे गाने के लिए आमंत्रित किया गया था, उसी स्थान पर टुन्नू की मृत्यु हुई थी तो उसका प्रतीकार्थ होगा - इसी स्थान पर मेरा प्रियतम मुझसे बिछड़ गया है। अब मैं किससे उसके बारे में पूछूँ कि मेरा प्रियतम मुझे कहाँ मिलेगा? अर्थात् अब उसका प्रियतम उससे बिछड़ गया है, उसे पाना अब उसके बस में नहीं है।
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