Aroh Bhag Ii Chapter 3 कुँवर नारायण
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    NCERT Solution For Class 12 Hindi Aroh Bhag Ii

    कुँवर नारायण Here is the CBSE Hindi Chapter 3 for Class 12 students. Summary and detailed explanation of the lesson, including the definitions of difficult words. All of the exercises and questions and answers from the lesson's back end have been completed. NCERT Solutions for Class 12 Hindi कुँवर नारायण Chapter 3 NCERT Solutions for Class 12 Hindi कुँवर नारायण Chapter 3 The following is a summary in Hindi and English for the academic year 2021-2022. You can save these solutions to your computer or use the Class 12 Hindi.

    Question 1
    CBSEENHN12026085

    कुँवर नारायण के जीवन का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनका साहित्यिक परिचय दीजिए।

    Solution

    जीवन-परिचय: कुँवर नारायण आधुनिक हिंदी कविता के एक सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनका जन्म 19 सितंबर, 1927 ई. में फैजाबाद (उत्तर प्रदेश) में हुआ। प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा घर पर ही हुई। लखनऊ विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एम. ए. किया। आरभ से ही उन्हें घूमने-फिरने का शौक था। उन्होंने चैकोस्लोवाकिया पोलैंड, रूस और चीन आदि देशों की यात्रा की और विभिन्न प्रकार के अनुभव प्राप्त किए।

    कुँवर नारायण ने कविता लेखन का आरंभ अंग्रेजी से किया किंतु शीघ्र ही ये हिंदी की ओर उन्मुख हो गए और नियमित रूप से हिंदी में लिखने लगे। कुँवर नारायण लंबे ममय तक ‘युग चेतना’ रात्रिका से जुड़े रहे पर पत्रिका के बंद हो जाने पर वे अपने निजी व्यवसाय (मोटर उद्योग) में व्यस्त हो गए।

    साहित्यिक परिचय: कुँवर नारायण को हिंदी संसार में पर्याप्त सम्मान मिला। उन्हें व्यास सम्मान, भारतीय भाषा परिषद् पुरस्कार तथा साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।

    कुँवर नारायण के चार काव्य-संग्रह प्रकाशित हुए हैं-चक्रव्यूह, परिवेश हम तुम कोई दूसरा नहीं और डस बार। नचिकेता की कथा पर उन्होंने एक खंडकाव्य ‘आत्मजयी’ लिखा जो 1965 में प्रकाशित हुआ। उनकी कविता ‘तीसरा सप्तक’ में भी थीं। कहानियों में एक कहानी-संग्रह ‘आस-पास’ 1971 में छपा। ये एक कुशल अनुवादक भी रहे हैं। ‘कास्टेण्टीन कवाफी’ का अनुवाद। 986 में छपा। ‘कोई दूसरा नहीं’ इनका बहुपठित काव्य-संग्रह है। इसका प्रथम संस्करण 1993 में निकला। इसमें समय-समय पर उनकी 100 कविताएँ संकलित हैं। ‘आत्मजयी’ काव्य ने कुँवर नारायण को बहुत ख्याति दिलाई। ‘आज और आज से पहले’ इनका निबंध-सग्रह है।

    कुँवर नारायण बहुभाषाविद् हैं। वे एक गंभीर अध्येता हैं। उनके ‘आत्मजयी’ खंड काव्य का अनुवाद इतालवी भाषा में हो चुका है। वे एक कुशल पत्रकार के रूप में ‘युग चेतना’ ‘नया प्रतीक’ तथा ‘छायानट’ से जुड़े रहे हैं। वे ‘भारतेंदु नाट्य अकादमी’ के अध्यक्ष भी रहे हैं। 1973 में प्रेमंचद पुरस्कार 1982 में तुलसी पुरस्कार तथा केरल का ‘कुमारन आरन अकादमी’ भी प्राप्त कर चुके हैं।

    Question 2
    CBSEENHN12026086

    कविता एक उड़ान है चिड़िया के बहाने

    कविता की उड़ान भला चिड़िया क्या जाने

    बाहर भीतर

    इस घर, उस घर

    कविता के पंख लगा उड़ने के माने

    चिड़िया क्या जाने?

    Solution

    प्रसगं: प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि कुँवर नारायण द्वारा रचित कविता ‘कविता के बहाने’ से अवतरित हैं। यह कविता एक यात्रा है जो चिड़िया, फूल से लेकर बच्चे तक की है। यहाँ कवि चिड़िया का बहाना लेता है।

    व्याख्या: कवि बताता है कि कविता कल्पना की एक मोहक उड़ान होती है। इसे चिड़िया के बहाने दर्शाया गया है। वैसे कविता की उड़ान को चिड़िया नहीं जानती। इसका कारण यह है कि चिड़िया की उड़ान की सीमा है जबकि कविता की उड़ान की कोई सीमा नहीं होती। चिड़िया बाहर-भीतर, इस घर से उस घर तक उड़कर जाती रहती है जबकि कविता की उड़ान व्यापक होती है। कविता कल्पना के पंख लगाकर न जाने कहाँ से कहाँ तक जा पहुँचती है। उसकी उड़ान असीम होती है। चिड़िया इस उड़ान को नहीं जान सकती। कविता किसी भी सीमा को स्वीकार नहीं करती। भला एक चिड़िया क्या जाने कि कविता की उड़ान में कितनी व्यापकता है।

    विशेष: 1. सरल एवं सुबोध भाषा का प्रयोग किया गया है।

    2. कवि की कल्पना असीम होती है।

    3. प्रश्न शैली का अनुसरण किया गया है।

    Question 3
    CBSEENHN12026087

    ‘कविता की उड़ान’ से क्या आशय है?

    Solution

    कविता की उड़ान से कवि का यह आशय है कविता कल्पना प्रधान होती है। कविता भावों और विचारों की उड़ान भरती है। कवि कविता की रचना करते समय कल्पना की उड़ान भरता है।

    Question 4
    CBSEENHN12026088

    ‘बाहर भीतर, इस घर उस घर’ के द्वारा कवि क्या स्पष्ट करना चाहता है?

    Solution

    ‘बाहर भीतर, इस घर उस घर’ पंक्ति के द्वारा कवि यह स्पष्ट करना चाहता है कि कविता की रचना करते समय कवि की दृष्टि सर्वत्र घूमती रहती है। उसके मन के भाव बाहर-भीतर, घर के अंदर तथा बाहर सभी जगह से आते हैं।

    Question 5
    CBSEENHN12026089

    कवि के अनुसार कविता की उड़ान कौन नहीं जानता?

    Solution

    कवि के अनुसार कविता की उड़ान चिड़िया नहीं जानती। चिड़िया कविता की व्यापकता को नहीं समझ पाती। चिड़िया की उड़ान सीमित होती है।

    Question 6
    CBSEENHN12026090

    कवि की उड़ान और चिड़िया की उड़ान में क्या अंतर है?

    Solution

    कवि की उड़ान में व्यापकता होती है जबकि चिड़िया की उड़ान में सीमा का बंधन है। चिड़िया यह जान ही नहीं पाती कि कविता की उड़ान की कोई सीमा नहीं है।

    Question 7
    CBSEENHN12026091

    प्रस्तुत पक्तियों का सप्रसंग व्याख्या करें?

    कविता एक खिलना है फूलों के बहाने

    कविता का खिलना भला फूल क्या जाने!

    बाहर भीतर

    इस घर, उस घर

    बिना मुरझाए महकने के माने

    फूल क्या जाने?

    कविता एक खेल है बच्चों के बहाने

    बाहर भीतर

    यह घर, वह घर

    सब घर एक कर देने के माने

    बच्चा ही जाने!

    Solution

    प्रसगं: प्रस्तुत काव्याशं कवि कुवँरनारायण द्वारा रचित कविता ‘कविता के बहाने’ से अवतरित है। इस कविता में कवि यह स्पष्ट करता है कि कविता शब्दों का खेल है। इसमें कोई बंधन नहीं होता। सीमाओं के बंधन स्वयं टूट जाते है।

    व्याख्या: कवि कहता है कि कविता की रचना फूलों के बहाने हो सकती है। कवि का मन कविता की रचना के समय फूल की भांति प्रफल्लित होता है। कवि बताता है कि कविता इस प्रकार खिलती अर्थात् विकसित होती है जैसे फूल विकसित होते हैं। वैसे कविता के खिलने को फूल नहीं जान पाते। फूलों की अपनी सीमा होती है। फूल बाहर-भीतर, इस घर में और उस घर में खिलते हैं। फूल शीघ्र मुरझा भी जाते हैं। फूल के खिलने के साथ उसकी परिणति निश्चित है, लेकिन कविता इससे बढ्कर है। फूल खिलते हैं, कुछ देर महकते हैं और फिर मुरझा जाते हैं। वे सूखकर मिट जाते हैं पर कविता के मधुरभाव तो कभी नहीं मुरझाते। कविता बिना मुरझाए महकती रहती है। फूल इस रहस्य को नहीं समझ सकते। फूलों की अपनी सीमा होती है, जबकि कविता की सीमा नहीं होती।

    कविता लिखते समय कवि का मन भी बच्चों के समान हो जाता है। कविता बच्चों के खेल के समान है। बच्चे घर के भीतर-बाहर खेलते रहते हैं। वे सेब घरों को एक समान कर देते हैं। बच्चों के सपने असीम होते हैं। बच्चों के खेल में किसी प्रकार की सीमा का कोई स्थान नहीं होता। कविता की भी यही स्थिति है। कविता भी शब्दों का खेल है। शब्दों के इस खेल में जड़-चेतन, अतीत, वर्तमान और भविष्य सभी उपकरण मात्र हैं। कविता पर कोई बंधन लागू नहीं होता। इसमें न घर की सीमा होती है और न भाषा की सीमा।

    Question 8
    CBSEENHN12026092

    कविता का फूलों के बहाने खिलना कैसे है?

    Solution

    कविता का फूलों के बहाने खिलना इस रूप में है कि कविता भी फूल की भाँति खिलती अर्थात् विकसित होती है। कवि फूलों के बहाने प्रफुल्लित होता है। कविता में फूलों का प्रभाव आ सकता है।

    Question 9
    CBSEENHN12026093

    कविता और फूलों में क्या अंतर है?

    Solution

    कविता और फूलों में यह अंतर है-फूल खिलते हैं कुछ देर महकते हैं फिर मुरझा जाते हैं और सूखकर मिट जाते हैं कविता के मधुर भाव कभी मुरझाते या नष्ट नहीं होते।

    Question 10
    CBSEENHN12026094

    कविता बच्चों के खेल के समान कैसे है?

    Solution

    कविता बच्चों के खेल के समान होती है जो कहीं भी कभी प्रकट हो जाती है। कविता लिखते समय कवि का मन भी बच्चों के समान हो जाता है। कविता और बच्चे किसी प्रकार के बंधन की स्वीकार नहीं करते। दोनों में असीमता होती है।

    Question 11
    CBSEENHN12026095

    इस काव्यांश में कविता की क्या-क्या विशेषताएँ उभर कर सामने आती हैं?

    Solution

    इस काव्यांश में कविता की निम्नलिखित विशेषताएँ उभर कर सामने आती हैं:

    कविता अपार संभाव नाओं को टटोलने का अवसर देती है।

    कविता में व्यापकता होती है।

    कविता में रचनात्मक ऊर्जा होती है। अत: सीमाओं के बंधन स्वयं टूट जाते हैं।

    कविता बच्चों के खेल के समान होती है।

    Question 12
    CBSEENHN12026096

    प्रस्तुत पक्तियों का सप्रसंग व्याख्या करें?

    बात सीधी थी पर एक बार

    भाषा के चक्कर में

     

    जरा टेढ़ी फँस गई।

     

    उसे पाने की कोशिश में

     

    भाषा को उलटा पलटा

     

    तोड़ा मरोड़ा

     

    घुमाया फिराया

     

    कि बात या तो बने

     

    या फिर भाषा से बाहर आए-

     

    लेकिन इससे भाषा के साथ साथ

     

    बात और भी पेचीदा होती चली गई।

     

    Solution

    प्रसगं: प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि कुँवर नारायण द्वारा रचित कविता ‘बात सीधी थी पर’ से अवतरित हैं। यह कविता में भाषा की सहजता की बात कही गई है। हर बात के लिए कुछ खास शब्द होते हैं। वे शब्द ही उस शब्द का अर्थ खोलने में सक्षम होते हैं।

    वयाख्या: कवि बताता है कि एक बात थी तो बड़ी सीधी-सरल, पर भाषा के शब्द-जाल में उलझकर टेढ़ी हो गई। तब वह सरल-सहज रूप को खो बैठी। कवि का तात्पर्य यह है कि अपने विचारों की अभिव्यक्ति सीधे-सादे ढंग से करनी चाहिए। भाषा के जाल में उलझकर वह क्लिष्ट हो जाती है।

    कवि बात को पाने के प्रयास में भाषा को काफी उलटा-पलटा, तोड़-मरोड़ की, शब्दों को इधर से उधर घुमाया ताकि बात बन जाए। यह न हो सका। कवि ने बात को भाषा के जाल से बाहर निकालने का भी प्रयास किया लेकिन स्थिति और भी खराब होती चली गई। इससे बात और भी पेचीदा हो गई। वह भाषा के जाल में उलझकर रह गई। ऐसा तब होता है जब हम अपनी बात को कहने या समझाने के लिए उपयुक्त शब्दों का प्रयोग नहीं करते। गलत शब्दों वाली भाषा हमारे कथ्य को और भी उलझा देती है। भाषा के जाल में कथ्य और भी असहज हो जाता है।

    विशेष: 1. प्रतीकात्मकता का समावेश है।

    2. पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार का प्रयोग है (साथ-साथ)।

    3. लाक्षणिकता विद्यमान है।

    Question 13
    CBSEENHN12026097

    कवि ने अपनी बात के बारे में क्या कहा है?

    Solution

    कवि ने अपनी बात के बारे में यह कहा है कि बात तो बिल्कुल साधारण सी थी किंतु वह भाषा जाल में उलझकर जटिल हो गई।

    Question 14
    CBSEENHN12026098

    कवि ने अपनी बात के लक्ष्य को पाने के लिए क्या-क्या किया?

    Solution

    कवि ने अपनी बात के लक्ष्य को पाने के लिए भाषा को काफी उल्टा-पुल्टा, तोड़ा-मरोड़ा और घुमाया-फिराया अर्थात् उसने उसमें कई प्रकार के परिवर्तन किए।

    Question 15
    CBSEENHN12026099

    कवि अपने लक्ष्य को क्यों नही पा सका?

    Solution

    कवि अपने लक्ष्य को इसलिए नहीं पा सका क्योंकि वह चाहता तो था अपनी बात को सहज और सरल बनाना, किंतु ऐसा करने के प्रयास में बात और भी जटिल होती चली गई। वह भाषा-जाल में उलझ गई।

    Question 16
    CBSEENHN12026100

    बात पेचीदा क्यों होती चली गई?

    Solution

    बात पेचीदा इसलिए होती चली गई क्योंकि वह शब्द-जाल में फँसकर सहजता खो बैठी। जब हम क्लिष्ट शब्दों का प्रयोग करने लगते हैं तब बात सहज-सरल नहीं रह जाती।

    Question 17
    CBSEENHN12026101

    प्रस्तुत पक्तियों का सप्रसंग व्याख्या करें?

    सारी मुश्किल को धैर्य से समझे बिना

    मैं पेंच को खोलने के बजाए

    उसे बेतरह कसता चला जा रहा था

    क्यों कि इस करतब पर मुझे

    साफ सुनाई दे रही थी

    तमाशबीनों की शाबाशी और वाह वाह!

    आखिरकार वही हुआ जिसका मुझे डर था

    जो़र ज़बरदस्ती से

    बात की चूड़ी मर गई

    और वह भाषा में बेकार घूमने लगी!

    Solution

    प्रसगं: प्रस्तुत पक्तियाँ कवि कुँवर नारायण द्वारा रचित कविता ‘बात सीधी थी पर’ से अवतरित हैं। कवि शब्दों के गलत प्रयोग से बात के उलझने की स्थिति का वर्णन करता है।

    व्याख्या: कवि बताता है कि जब हम मुश्किल की घड़ी में धैर्य खो बैठते हैं तब बात और भी उलझती चली जाती है। ऐसे में बात का पेंच खुलने के स्थान पर और भी टेढ़ा होता जाता है। ऐसे में पेंच को बेवजह कसने का प्रयास करते रहते हैं जबकि बात सहज और स्पष्ट होने के स्थान पर और भी क्लिष्ट हो जाती है। ऐसे में बात स्पष्ट नहीं हो पाती। जब भी मैं ऐसा प्रयास करता तब मेरे इस गलत काम पर तमाशबीनों की शाबासी मिलती थी अर्थात् वे मुझे मूर्ख बनाते थे। उनके इस कदम से मेरी उलझन और भी बढ़ जाती थी। वे बात के बिगड़ने से खुश होते थे।

    अंत में वह होकर रहा जिससे कवि डरता था। जब हम चूड़ी भरे पेंच को जबर्दस्ती कसते चले जाते हैं जब उसमें कसाव नहीं आ पाता। चूड़ियाँ मर जाती हैं और पेंच ढीला ही रह जाता है। इसी प्रकार बात को जबर्दस्ती दूसरों पर थोपते चले जाते हैं तब वह बात अपना प्रभाव खो बैठती है। जिस प्रकार चूड़ी भरा पेंच छेद में व्यर्थ रहता है, उसी प्रकार गलत शब्दों के प्रयोग के कारण बात भाषा में व्यर्थ घूमती रहती है। उस बात का अपेक्षित प्रभाव नहीं पड़ पाता। तब बात शब्दों का जाल बनकर रह जाती है।
    1. असहज बात प्रभावहीन हो जाती है।

    2. ‘वाह वाह’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।

    3. प्रतीकात्मकता एवं लाक्षणिकता का समावेश है।

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    Question 18
    CBSEENHN12026102

    पेंच को खोलने की बजाय कसना’ का आशय स्पष्ट करो।

    Solution

    ‘पेंच को खोलने की बजाय कसना का आशय यह है कि बात को स्पष्ट करने की बजाय और उलझा देना। तब बात का मर्म खुल नहीं पाता और क्लिष्ट हो जाता है।

    Question 19
    CBSEENHN12026103

    गलत कामों पर किनकी शाबासी मिलती और क्यों?

    Solution

    गलत कामों पर तमाशबीनों की शाबासी मिलती है। इस प्रकार वे हमें मूर्ख बनाते हैं। वे बात बिगड़ने पर और खुश होते हैं।

    Question 20
    CBSEENHN12026104

    आखिरकार क्या होकर रहा?

    Solution

    आखिरकार वही होकर रहा जिसका कवि को डर था। जिस प्रकार जबर्दस्ती करने से पेंच की चूड़ियाँ मर जाती हैं उसी प्रकार बात को ज्यादा कसने से उसका प्रभाव समाप्त हो जाता है।

    Question 21
    CBSEENHN12026105

    भाषा का बेकार घूमना’-स्पष्ट करो।

    Solution

    ‘भाषा का बेकार घूमना’ का तात्पर्य है कि भाषा का प्रभावहीन हो जाना। तब भाषा शब्द-जाल बनकर रह जाती है।

    Question 22
    CBSEENHN12026106

    प्रस्तुत पक्तियों का सप्रसंग व्याख्या करें?

    हार कर मैंने उसे कील की तरह

    उसी जगह ठोंक दिया

     

    ऊपर से ठीकठाक

     

    पर अंदर से

     

    न तो उसमें कसाव था

     

    न ताकत!

     

    बात ने, जो एक शरारती बच्चे की तरह

     

    मुझसे खेल रही थी

     

    मुझे पसीना पोंछते देख कर पूछा-

     

    “क्या तुमने भाषा को

     

    सहूलितय से बरतना कभी नहीं सीखा?”

     

    Solution

    प्रसगं: प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि कुँवर नारायण द्वारा कविता कत सी ‘बात थी पर’ से अवतरित हैं। कवि बताता है कि जब हम सीधी-सादी बात को व्यर्थ के शब्द-जाल मई में उलझा देते हैं तब तथ्य और भाषा का सही सामजंस्य नहीं बैठ पाता और बात स्पष्ट नहीं हो पाती।

    व्याख्या: कवि जब अपनी बात को समझाने में असमर्थ रहा तब उसने बात को प्रभावहीन बना दिया। जिस प्रकार जब पेंच की चुडियाँ काम नहीं करतीं तब उसे कील की तरह ठोंक दिया जाता है, वैसे ही कुछ स्थिति उसके कथ्य के साथ हुई। कील की तरह ठोंक देने में ऊपर से तो चीज ठीक-ठाक प्रतीत होती है, पर अंदर से वह ढीली रह जाती है। उसमें चूड़ी जैसा कसाव नहीं आ पाता और न ताकत ही आ पाती है। ऐसी ही स्थिति बलात् लादी हुई बात की होती है, उसमें अपेक्षित प्रभाव उत्पन्न नहीं हो पाता।

    कवि बात की तुलना एक शरारती बच्चे से देता है। एक शरारती बच्चा कवि से पूछ बैठता है कि क्या उसने (कवि ने) भाषा का मही प्रयोग नहीं सीख। है। माथे से पसीना पोंछना उसकी द्विविधा को झलका देता है। भाषा को सहूलियत के साथ बरतना सीखना होगा, तभी हमारी बात का अपेक्षित प्रभाव पड़ सकेगा।

    अच्छी बात या अच्छी कविता का बनना सही बात का सही शब्द से जुड़ना होता है। जब ऐसा होता है तब किसी अतिरिक्त दबाव या अतिरिक्त मेहनत की आवश्यकता नहीं होती। वह सहूलियत के साथ हो जाता है।

    1. प्रतीकात्मकता का समावेश है। 2. प्रश्न अलंकार का प्रयोग हुआ है

    3. मुहावरों का सटीक प्रयोग है। 4. लाक्षणिकता का समावेश है।

     

    Question 23
    CBSEENHN12026107

    हारकर कवि ने क्या किया?

    Solution

    हारकर कवि ने भाषा को कील की तरह उसी जगह ठोक दिया। जब पेंच की चूड़ियों काम नहीं करतीं तब उसे कसने की बजाय कील की तरह ठोंक दिया जाता है। वैसा ही कुछ कवि ने अपने कथ्य के साथ किया।

    Question 24
    CBSEENHN12026108

    भाषा के बारे में अंबर-बाहर की स्थिति में क्या अंतर था?

    Solution

    भाषा के बारे में यह कहा गया है कि वह बाहर से तो ठीक-ठाक प्रतीत हो रही थी, पर अदर से वह प्रभावहीन होकर रह गई थी। उसमें कसाव नहीं रह गया था। शब्द प्रभाव खो बैठे थे।

    Question 25
    CBSEENHN12026109

    बात को किसके समान बताया है? उसने कवि मे क्या पूछा?

    Solution

    बात को शरारती बच्चे के समान बताया गया है। उसने कवि से यह पूछा कि क्या उसने भाषा का सहज प्रयोग करना नहीं सीखा है?

    Question 26
    CBSEENHN12026110

    कवि की दशा क्या हो रही थी?

    Solution

    कवि के माथे पर पसीना आ गया था। वह बात का अपेक्षित प्रभाव उत्पन्न नहीं कर पाया था। अत: घबरा गया था।

    Question 27
    CBSEENHN12026111

    इस ‘कविता के बहाने’ बताएँ कि ‘सब घर एक कर देने के माने’ क्या है?

    Solution

    ‘कविता के बहाने’ में सब घर एक कर देने का माने यह है कि सीमा का बंधन समाप्त हो जाना। जिस प्रकार बच्चों के खेल में किसी प्रकार की सीमा का स्थान नहीं होता, उसी प्रकार कविता में कोई बंधन नहीं होता। कविता शब्दों का खेल है। जहाँ रचनात्मक ऊर्जा होती है वहाँ सभी प्रकार की सीमाओं के बंधन स्वयं टूट जाते हैं। बच्चे खेल-खेल में अपने-पराए घर की सीमाएँ नहीं जानते। वे खेलते हुए सारे घरों में घुस सकते हैं और उन्हें एक कर देते हैं। कविता भी यही करती है, वह समाज को बाँधती है, एक करती है।

    Question 28
    CBSEENHN12026112

    ‘उड़ने’ और ‘खिलने’ का कविता से क्या संबंध बनता है?

    Solution

    चिड़िया उड़ती है और फूल खिलता है। इसी प्रकार कविता कल्पना की उड़ान भरती है और फूल की तरह खिलती अर्थात् विकसित होती है। इस प्रकार दोनों में गहरा संबंध है। इसके बावजूद चिड़िया के उड़ने की सीमा है और फूल का खिलना उसे परिणति की और ले जाता है जबकि कविता के साथ ऐसा कोई बंधन नहीं है। कवि फूल की तरह खिलकर और चिड़िया की तरह उड़ान भरकर कविता को व्यापकता प्रदान करता है।

    Question 29
    CBSEENHN12026113

    कविता और बच्चे को समानांतर रखने के क्या कारण हो सकते हैं?

    Solution

    कविता और बच्चे को समानांतर रखने के ये कारण हो सकते हैं-

    - बच्चे के सपने असीम होते हैं और कवि की कल्पना भी असीम होती है।

    - बच्चों के खेल में किसी प्रकार की सीमा का स्थान नहीं होता। कविता भी शब्दों का खेल है और इसमें कोई बधन नहीं होता। शब्दों के इस खेल में जड़, चेतन, अतीत, वर्तमान और भविष्य सभी उपकरण मात्र हैं। कविता और बच्चे में निस्वार्थ भाव की भी समानता है।

    Question 30
    CBSEENHN12026114

    कविता के संदर्भ में ‘बिना मुरझाए महकने के माने’ क्या होते हैं?

    Solution

    फूल तो खिलकर मुरझा जाते हैं और उनकी महक समाप्त हो जाती है। इसके विपरीत कविता भी मुरझाती नहीं। वह सदा ताजा बनी रहती है और उसकी महक बरकरार रहती है। एक अच्छी कविता सदा तरोताजा प्रतीत होती है। कविता का प्रभाव चिरस्थायी होता है।

    Question 31
    CBSEENHN12026115

    ‘भाषा को ससहूलियत’ से बरतने से क्या अभिप्राय है?

    Solution

    भाषा को सहूलियत से बरतने से यह अभिप्राय है कि भाषा का उचित प्रयोग करना चाहिए। भाषा शब्दों का खेल है। शब्दों के अर्थ संदर्भगत होते हैं। शब्द का सही संदर्भ में प्रयोग करना चाहिए। कई बार हम उस शब्द का पर्यायवाची शब्द प्रयोग कर द्विविधा में फँस जाते हैं। शब्दों को सहूलियत के साथ प्रयोग करने पर ही बात का यह कथ्य का अपेक्षाकृत प्रभाव पड़ जाता है। अत: भाषा के प्रयोग में सावधानी बरतने की आवश्यकता है।

    Question 32
    CBSEENHN12026116

    बात और भाषा परस्पर जुड़े होते हैं, किंतु कभी-कभी भाषा के चक्कर में ‘सीधी बात भी टेढ़ी हो जाती है’ कैसे?

    Solution

    बात और भाषा का आपस में गहरा संबंध होता है। बात का अभिप्राय स्पष्ट करने के लिए सही भाषा का प्रयोग करना चाहिए किन्तु कई बार ऐसा होता है कि हम भाषा को सहज नहीं रहने देते। हम क्लिष्ट भाषा का प्रयोग कर सीधी सरल बात को भी शब्द-जाल में उलझाकर टेढ़ी बना देते हैं। प्रत्येक शब्द का अपना विशिष्ट अर्थ होता है, भले ही ऊपर से वे समानार्थी या पर्यायवाची प्रतीत होते हों। गलत शब्द का प्रयोग बात को उलझा देता है। शब्दों के चक्कर में उलझकर भाव अपना अर्थ खो बैठते हैं।

    Question 33
    CBSEENHN12026117

    बात (कथ्य) के लिए नीचे दी गई विशेषताओं का उचित बिंबों/मुहावरों से मिलान करें -

    A. बात की चूड़ी मर जाना (i) कथ्य और भाषा का सही सामंजस्य बनना
    B. बात की पेंच खोलना (ii) बात का पकड़ में न आना
    C. बात का शररती बच्चे की तरह खेलना (iii) बात का प्रभावहीन हो जाना
    D. पेंच को कील की तरह ठोंक देना (iv) बात में कसावट का न होना
    E. बात का बन जाना (v) बात को सहज और स्पष्ट करना

    Solution

    A.

    बात की चूड़ी मर जाना

    (i)

    बात का प्रभावहीन हो जाना

    B.

    बात की पेंच खोलना

    (ii)

    बात को सहज और स्पष्ट करना

    C.

    बात का शररती बच्चे की तरह खेलना

    (iii)

    बात का पकड़ में न आना

    D.

    पेंच को कील की तरह ठोंक देना

    (iv)

    बात में कसावट का न होना

    E.

    बात का बन जाना

    (v)

    कथ्य और भाषा का सही सामंजस्य बनना

    Question 34
    CBSEENHN12026118

    बात से जुड़े कई मुहावरे प्रचलित हैं। कुछ मुहावरों का प्रयोग करते हुए लिखें।

    Solution

    1. बात बिगड़ जाना - तुम्हारी ऊल-जलूल हरकतों से बात बिगड़ जाएगी।

    2. बातें बनाना - बातें बनाना कोई तुमसे सीखे।

    3. बातों ही बातों में - उमेश ने बातों ही बातों में मेरा मकान खरीद लिया।

    4. बात का धनी होना - समाज में उस व्यक्ति का सम्मान होता है जो अपनी बात का धनी होता है।

    5. बातों में उड़ाना - तुमने तो मेरे विषय को बातों में ही उड़ा दिया।

    Question 35
    CBSEENHN12026119

    व्याख्या कीजिए

    जोर जबरदस्ती से

    बात की चूड़ी मर गई

    और वह भाषा में बेकार घूमने लगी।

    Solution

    कुँवर नारायण की कविता ‘‘बात सीधी थी पर’ से अवतरित इन पंक्तियों मे बात के सहज बने रहने में ही उसकी सार्थकता दर्शाई है। जब हम किसी बात को असहज बना देते हैं तब वह उलझकर रह जाती है। जिम प्रकार हम किसी पेंच के कसने में जोर-जबरदस्ती करते हैं तो उसकी चूड़ी मर जाती है और फिर वह ठीक प्रकार से कसा नहीं जाता, ढीला रह जाता हे। यही स्थिति बात की है। जब किसी बात के साथ जोर-जबरदस्ती को जाती है तब बात की धार मारी जाती है। वह अपेक्षित प्रभाव उत्पन्न नहीं कर पाती। ऐसा तब होता है जब हम उसे व्यक्त करने क लिए भाषा के उपयुक्त शब्दों का प्रयोग नहीं करते। सही शब्द-प्रयोग ही बात को प्रभावी बनाता है। बलपूर्वक की गई बात महत्त्वहीन हो जाती है। इसका कोई नतीजा नहीं निकलता।

    Question 36
    CBSEENHN12026120

    आधुनिक युग की कविता की संभावनाओं पर चर्चा कीजिए।


    Solution

    छात्र कक्षा में इस विषय पर चर्चा करें। आधुनिक युग की कविता में निम्नलिखित संभावनाएँ हो सकती हैं:

    □ विषयवस्तु में परिवर्तन।

    □ कविता कै शिल्प में परिवर्तन।

    □ जीवन के यथार्थ कै साथ जुड़ाव।

    □ अभिव्यक्ति का सहज रूप।

    Question 37
    CBSEENHN12026121

    चूड़ी, कील, पेंच आदि मूर्त उपमानों के माध्यम से कवि ने कथ्य की अमूर्तता को साकार किया है। भाषा को समृद्ध एवं संप्रेषणीय बनाने में बिंबों और उपमानों के महत्त्व पर परिसंवाद आयोजित कीजिए।

    Solution

    भाषा को समृद्ध एवं संप्रेषणीय होना ही चाहिए तभी उसका अपेक्षित प्रभाव पड़ता है। इस कार्य में बिंब और उपमान बहुत सहायक है। इनके प्रयोग से कथ्य स्पष्ट एवं प्रभावी बनता है। इनसे काव्य-सौंदर्य निखर उठता है।

    - काव्य-बिंब का संबंध भाषा की सर्जनात्मक शक्ति से है तथा इसका निर्माण मनुष्य के ऐन्द्रिक बोध का ही प्रतिफल है। ये शब्द, भाव, विचार के अमूर्त संकेत तो हैं, लेकिन इन अमूर्त संकेंतों में भी वह शक्ति होती है। कि इनके माध्यम से एक मूर्त चित्र निर्मित हो जाता है। यही बिंब निर्माण की प्रक्रिया है।

    उपमानों के माध्यम से रचनाकार पाठक के समक्ष ऐसे उदाहरण प्रस्तुत करता है जिससे वह सरल, बोधगम्य, शब्दांडबर रहित होकर अपनी रचना के लक्ष्य तक पहुँचने में सफल हो जाता है।

    Question 39
    CBSEENHN12026123

    प्रताप नारायण मिश्र का निबंध ‘बात’ और नागार्जुन की कविता ‘बातें’ ढूँढकर पढ़ें।

    Solution

    विद्यार्थी पुस्तकें लेकर इन पाठों को पढ़ें।
    ‘नागार्जुन’ की कविता - बातें।

    बातें-

    हँसी में धुली हुई

    सौजन्य चंदन में बसी हुई

    बातें-

    चितवन में घुली हुई

    व्यंग्य बंधन में कसी हुई

    बातें-

    उसाँस में झुलसी

    रोष की आँच में तली हुई

    बातें-

    चुहल से हुलसी

    नेह साँचे में ढली हुई।

    बातें-

    विष की फुहार सी

    बातें-

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    Question 42
    CBSEENHN12026126

    ज़ोर ज़बर्दस्ती से

    बात की चूड़ी मर गई

    और वह भाषा में बेकार घूमने लगी!

    हार कर मैंने उसे कील की तरह

    उसी जगह ठोंक दिया।

    ऊपर से ठीक-ठाक

    पर अंदर से

    न तो उसमें कसाव था

    न ताक़त!

    बात ने, जो एक शरारती बच्चे की तरह

    मुझसे खेल रही थी,

    मुझे पसीना पोंछते देख कर पूछा-

    “क्या तुमने भाषा को

    सहूलियत से बरतना कभी नहीं सीखा?”

    बात की चूड़ी कब मरती है, ‘चूड़ी मर जाने का आशय क्या है?

    Solution

    बात की चूड़ी मर जाने से कवि यह कहना चाहता है-बात का प्रभावहीन हो जाना। ‘उसका बेकार घूमना’ से कवि का आशय है-अभिव्यक्ति में शब्दों की कलाकारी तो बहुत हो पर उसका संदेश स्पष्ट न हो। इससे कवि यह कहना चाहता है कि जब कथ्य भाषा के शबद-जाल में उलझ जाता है तब उसका अपेक्षित प्रभाव नहीं पड़ता।

    Question 43
    CBSEENHN12026127

    फूल और चिड़िया को कविता की क्या-क्या जानकारी नहीं है? ‘कविता के बहाने’ कविता के आधार पर बताइए।

    Solution

    फूल को कविता का खिलने की

    - चिड़िया को कविता की उड़ान की।

    - फूल खिलते हैं और मुरझा जाते हैं परंतु कविता के मधुर भाव सदा खिले रहते हैं। फूल की इस बात की जानकारी नहीं है।

    - चिड़िया भी यह नहीं जानती कि कविता में जो कल्याण की उड़ान है वह उसकी उड़ान से भी व्यापक है।

    Question 44
    CBSEENHN12026128

    ‘कविता के बहाने’ कविता का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।

    Solution

    यह शंका व्यक्त की जा रही है कि यांत्रिकता के दबाव से कविता का अस्तित्व नहीं रह पाएगा। यह कविता की अपार संभावनाओं को टटोलने का अवसर देती है। यह एक ऐसी यात्रा है जो चिड़िया, फूल से लेकर बच्चों तक है। चिड़िया की उड़ान की सीमा है, फूल के खिलने के साथ उसकी परिणति निश्चित है लेकिन बच्चे के सपने असीम हैं। कविता भी शब्दों का खेल है। बच्चों के खेल के समान इसकी भी कोई सीमा या निश्चित स्थान नहीं है।

    Question 45
    CBSEENHN12026129

    ‘बात सीधी थी पर’ का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।

    Solution

    इस कविता में कविता के कथ्य और माध्यम (भाषा) के द्वंद्व को उभारा गया है। इसमें भाषा की सहजता की बात की गई है। हर बात के लिए कुछ खास शब्द निश्चित होते हैं जैसे हर पेंच के लिए एक निश्चित खाँचा होता है। बात की सहजता को बनाए रखना आवश्यक है। अत: अनावश्यक शब्द-जाल में नहीं उलझना चाहिए।

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