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TextBook Solutions for Jammu and Kashmir State Board of School Education Class 11 Hindi Aroh Chapter 11 कबीर

Question 1
CBSEENHN11012174

कबीर के जीवन और साहित्य के विषय में आप क्या जानते हैं?

Solution

जीवन-परिचय-हिन्दी साहित्य के स्वर्णयुग भक्तिकाल में निर्गुण भक्ति की ज्ञानमार्गी शाखा के प्रतिनिधि कवि कबीरदास का जन्म काशी में सन् 1398 ई में हुआ था। इनका जन्म विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से हुआ। लोक-लाज के भय से उसने इनको काशी के लहरतारा तलाब पर छोड़ दिया। नि -सन्तान जुलाहा-दम्पती नीरू और नीमा ने इनका पालन-पोषण किया। इनकी पड़ाई-लिख, में रुचि न देखकर इनके माता-पिता ने इन्हें व्यवसाय में लगा दिया। बचपन से ही कबीर जी को प्रभु- भजन, साधु-सेवा व सत्संगति से लगाव था। इन्होंने रामानन्द जी को अपना गुरु बनाया। इनके माता-पिता ने इनका विवाह ‘लोई’ नाम की एक कन्या से कर दिया। कमाल और कमाली नामक इनकी दो सन्तानें हुईं। इनके जीवन का अधिकांश समय समाज-सुधार, धर्म-सुधार, प्रभु- भक्ति और साध -सेवा में बीता। इन्होंने सन् 1518 ई. में मगहर (बिहार) में अपना नश्वर शरीर त्यागा।

रचनाएँ-कबीर की वाणी का संग्रह ‘बीजक’ है। उसके तीन भाग हैं-रमैनी, सबद और साखी। कबीर विद्वान् सन्तों की संगीत में बैठकर श्रेष्ठ ज्ञानी बन गए थे। उनकी वाणी को उनके शिष्यों ने लिपिबद्ध किया।

काव्यगत विशेषताएँ-कबीर के साहित्य का विषय समाज-सुधार, धर्म-सुधार, निर्गुण- भक्ति का प्रचार और गुरु-महिमा का वर्णन
समाज सुधार-कबीर हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रवर्तक थे। उन्होंने समाज में व्याप्त जात-पति, ऊँच-नीच के भेदभाव और छुआछूत की बुराइयों का खुलकर विरोध किया। उनके भक्ति मार्ग में जात-पाँत का कोई स्थान न था। उन्होंने कहा है-

‘जात-पाँत पूछे नहिं कोई, हरि को भजे सो हरि को होई।’

धर्म सुधार-कबीर किसी धर्म के विरोधी नहीं थे; परन्तु किसी भी धर्म के आडम्बरों को सहन करने को तैयार न थे। उन्होंने हिन्दू धर्म की मूर्ति पूजा, व्रत, उपवास, छापा तिलक, माला जाप व सिर मुँडवाने के आडम्बरों का कड़ा विरोध किया-

माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर।

कर का मनका डारि कै, मन का मनका फेर।।

मुसलमानों के रोजा, नमाज, हज-यात्रा तथा मांस भक्षण का कबीर जी ने कड़ा विरोध किया-

दिन भर रोजा रहत है, रात हनत है गाय।

यह खून वह बन्दगी, कैसे खुशी खुदाय।।

भक्ति- भावना-कबीर मूलत: निर्गुण भक्त थे। उनका ईश्वर निराकार एवं सर्वव्यापी है। उनका मत है कि जीव ब्रह्म का आ है। जीव और ब्रह्म के मिलन में माया बाधक है। गुरु का ज्ञान जीव और ब्रह्म के मिलन में सहायक है।

भाषा-शैली-निरक्षर और घुमक्कड़ प्रवृत्ति होने के कारण कबीर की भाषा यद्यपि विभिन्न प्रादेशिक भाषाओं के मेल से बनी ‘खिचड़ी’ अथवा ‘सधुक्कड़ी’ भाषा कहलाई, तथापि उनकी भाषा मर्म को छूने वाली है। इसमें पूर्वी हिन्दी, पश्चिमी हिंदी, पंजाबी राजस्थानी एवं उर्दू के शब्दों का मिश्रण है।

Question 3
CBSEENHN11012176

संतो देखत जग बौराना।

साँच कहीं तो मारन धावै, झूठे जग पतियाना।।

नेमी देखा धरमी देखा, प्रात करै असनाना।

आतम मारि पखानहि पूजै, उनमें कछु नहिं ज्ञाना।।

बहुतक देखा पीर औलिया, पढ़ै कितेब कुराना।

कै मुरीद तदबीर बतावैं, उनमें उहै जो ज्ञाना।।

आसन, मारि डिंभ धरि बैठे, मन में बहुत गुमाना।

पीपर पाथर पूजन लागे, तीरथ गर्व भुलाना।।

टोपी पहिरे माला पहिरे, छाप तिलक अनुमाना।

साखी सब्दहि गावत भूले, आतम खबरि न जाना।।

हिन्दू कहै मोहि राम पियारा, तुर्क कहै रहिमाना।

आपस में दोउ लरि लरि मूए, मर्म न काहू जाना।।

घर-घर मंतर देत फिरत हैं, महिमा के अभिमाना।

गुरु के सहित सिख सब बूड़े, अंत काल पछिताना।।

कहै कबीर सुनो हो संतो, ई सब भर्म भुलाना।

केतिक कहीं कहा नहिं मानै, सहजै सहज समाना।।

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