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अभी भी तुम परिश्रम कर सकते हो।
अभी भी तुम मंजिल पा सकते हो।
अभी भी तुम विजयी हो सकते हो।
वास्तव में ‘अभी भी’ से बनने वाले वाक्यों में निरंतरता का भाव विद्यमान है विराम या अवकाश नहीं।
1. नहीं, अभी भी मेरी परीक्षा की तैयारी कम है। (अभी और परिश्रम करने का भाव)
2. नहीं, अभी भी गाड़ी के आने में देर है। (प्रतीक्षा का भाव)
3. नहीं, अभी भी उद्घाटन हेतु मुख्यातिथि आ सकते हैं। (आशा का भाव)
राजा शिवि एक महान शासक थे। उनके सब काम सराहनीय होते थे। वे बहुत दयालु और प्रजावत्सल थे। उन्हें पशु-पक्षियों से भी बहुत प्रेम था। उनके दानी रूप की चर्चा सुनकर भिक्षुक गण दूर-दूर से आ जाते थे। उनके दरवाजे से कोई खाली हाथ नहीं लौटता था। उनके यश की चर्चा दूर-दूर तक होती थी। यहाँ तक कि देवता भी राजा शिवि से ईर्ष्या करने लगे थे।
एक दिन राजा शिवि दरबार में बैठे थे तभी एक कबूतर उड़ता हुआ आया और उसने राजा की गोद में शरण ली। वह अत्यंत भयभीत था। कबूतर चिल्लाया-”हे राजा! मेरे शत्रु से मेरी रक्षा करो। वह मुझ मारने के लिए दौड़ा चला आ रहा है।”
राजा ने उत्तर दिया-”हे पक्षी! डरी मत। मेरी शरण में आ गए हो। अब कोई तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता।”
उसी समय एक बाज कबूतर का पीछा करते-करते वहां आ पहुंचा। बाज बोला-”यह पक्षी मेरा भोजन है। मेरे शिकार को मुझसे छीनने वाले तुम कौन हो? तुम्हें इसे छीनने का कोई अधिकार नहीं है। तुम राजा हो। अपनी प्रजा के कामकाज में हस्तक्षेप कर सकते हो। हम पक्षी तो स्वच्छन्द हैं। हमारी स्वतंत्रता में बाधा मत डालो। इससे पहले कि मैं भूखा मर जाउँ, तुम मुझे इस कबूतर को लौटा दो।”
राजा शिवि ने उसे समझाते हुए कहा-”यदि तुम भूख से व्याकुल हो तो तुम्हारे लिए भोजन की व्यवस्था कर सकता हूँ। कहो, क्या खाना चाहोगे?”
बाज को यह प्रस्ताव स्वीकार नहीं था। उसने आवेश में कहा-”कबूतर मरा प्राकृतिक भोजन है। इसके अतिरिक्त मुझे कुछ पसंद नहीं है।”
राजा के परामर्श और यहां तक कि अनुनय-विनय का भी बाज पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। कुटिलता से वह बाला-”यदि इस कबूतर से तुम्हें इतना ही स्नेह है तो तुम इसके मांस के वजन के बराबर मांस अपने शरीर से काट कर मुझ दे दो।”
राजा शिवि ने कबूतर को सुरक्षित रखने के लिए इस उपाय को सहर्ष स्वीकार कर लिया। तुरंत एक तराजू और तेज धार का चाकू मँगवाया गया। तराजू के एक पलड़े में कबूतर को रखा गया और दूसरे पलड़े में राजा ने अपना मांस काट-काटकर रखना प्रारंभ किया। रानी, मंत्री और सभासद व्यग्र हो उठे। राजा ने सभी को सांत्वना दी और शांत रहने के लिए कहा। तभी एक आश्चर्यजनक घटना घटी। राजा अपनी भुजाओं और टांगों से मांस काट-काटकर एक पलड़े में रखते जा रहे थे लेकिन कबूतर का पलड़ा अभी भी भारी था। राजा शिवि आर्श्क्यचकित थे। अंत में वे स्वयं ही पलड़े मैं बैठ गए। यह क्या! राजा ने पलटकर बाज को संबोधित करना चाहा। लेकिन वहाँ न तो बाज था और न कबूतर। उन दोनों कं स्थान पर इंद्रदेव और अग्निदेव उपस्थित थे। उन्होंने राजा के घावग्रस्त शरीर को पुन: पूर्ण और स्वस्थ कर दिया। दोनों देवताओं ने राजा की प्रशंसा करते हुए कहा कि वे धरती पर उनकी दानवीरता की परीक्षा लेने ही आए थे। अग्निदेव ने कबूतर का और इंद्रदेव न बाज का रूप धारण किया था। उन्होंने प्रसन्न होकर राजा शिवि को आशीर्वाद दिया-”जब तक यह संसार रहेगा, तुम्हारी दानवीरता और तुम्हारा नाम अमर रहेगा। तुम वास्तव में दानी हो।”
राजा ने दोनों देवों को प्रणाम किया। दोनों देवता राजा को आशीर्वाद देते हुए स्वर्ग लौट गए।
वैज्ञानिक रूप से बस ऐसा साधन नहीं है जो अंतरिक्ष के पार जा सकें। यह मात्र कवयित्री की कल्पना है क्योंकि कवि सदा कल्पना लोक में विचरण करते हैं। इसे सच या झूठ का नाम न देकर काल्पनिक अनुभव कहा जाना चाहिए। कविता में झूठ नहीं एक कल्पना की गई है। लेकिन कल्पना को शब्दों का आवरण इस प्रकार से पहनाया गया है कि यह सच प्रतीत होने लगता है। आशावादिता के अनुसार एक काल्पनिक तथ्य सामने आता है कि हमारे विकास और उत्थान के लिए अंतरिक्ष से संदेश लेकर कोई वाहन धरती पर आता है।
यहाँ तो कवयित्री ने अंतरिक्ष संबंधी विज्ञान कथा का आधार यह माना है कि बस कैसी होगी? वे बचे हुए लोग खतरों से क्यों घिर गए होंगे। इस संदर्भ पर कथा लिखने हेतु निम्न संकेत बिंदुओं का सहारा लिया जा सकता है-
1. बस का सुंदर रूप 15 से 20 लोगों के बैठने का स्थान।
2. बस में ऑक्सीजन व खाने-पीने के सामान का पूरा प्रबंध।
3. बस पहिए से नहीं ऊर्जा से चलने वाली।
4. अपनै लक्ष्य मै, पूर्णतया सफल।
5. अचानक मौसम का खराब होना।
6. लोगों का बेहोश होना।
7. मुश्किल से राह मिलना।
8. बच लोगों का वापिस आना।
9. लोगों का विभिन्न जानकारियां एकत्रित करना।
10. उनकी खुशी का ठिकाना न होना।
11. ऑक्सीजन की कमी हो जाना।
12. डॉक्टर का भरसक प्रयत्न।
13. कुछ लोगों की मृत्यु।
14. परिवारजनों की आँखें खुशी से नम हो जाना।
C.
जीवन में कभी निराश न होकर, प्रयत्न करके लक्य की ओर बढ़ना चाहिए।C.
वह हिस्सा जो कहानी की पूरी शिक्षा देता है।B.
यह समय कठिन नहीं, अपने लक्ष्य की ओर बढ़ने हेतु संकोच नहीं करना चाहिए।A.
क्योंकि वह घोंसले का निर्माण करना चाहती है।Sponsor Area
B.
पेड़ से गिरती पत्ती को कोई सहास देता है।A.
यदि तुम लक्ष्य पर रास्ता भटक जाओ तो कोई अनुभवी हाथ तुम्हें सहारा जरूर देगा।B.
सूरज ढ़लने से पूर्व सभी अपने घर आ जाए।B.
समयानुसार लक्ष्य की ओर बड़ जाना चाहिए।B.
संदेश का भाग यानी शिक्षाप्रद हिस्साC.
क्योंकि उसमें कहानी का संदेश है।A.
नई जानकारियाँ प्राप्त करनेA.
वह बस उन बचे हुए लोगों का समाचार लाएगी जिन्होंने हिम्मत न हारकर मृत्यु से जूझते अपने लक्ष्य में सफलता प्राप्त की।Sponsor Area
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