Aroh Chapter 12 मीरा
  • Sponsor Area

    NCERT Solution For Class 11 Hindi Aroh

    मीरा Here is the CBSE Hindi Chapter 12 for Class 11 students. Summary and detailed explanation of the lesson, including the definitions of difficult words. All of the exercises and questions and answers from the lesson's back end have been completed. NCERT Solutions for Class 11 Hindi मीरा Chapter 12 NCERT Solutions for Class 11 Hindi मीरा Chapter 12 The following is a summary in Hindi and English for the academic year 2021-2022. You can save these solutions to your computer or use the Class 11 Hindi.

    Question 1
    CBSEENHN11012201

    मीराबाई के जीवन का परिचय देत हुए उनका साहित्यिक परिचय दीजिए।

    Solution

    जीवन-परिचय-कृष्णभक्त कवियों में मीराबाई का नाम सर्वोच्च स्थान पर है। मीरा का जन्म राजस्थान में मेड़ता कं निकट कुड़की ग्राम के प्रसिद्ध राज परिवार में 1498 ई. में हुआ था। उनके पिता का नाम रतनसिंह था। मीरा का विवाह केवल 12 वर्ष की आयु में चितौड़ के राजा राणा सांगा के पुत्र कुँवर भोजराज के साथ हुआ था। दुर्भाग्यवश विवाह के 7-8 वर्ष बाद ही मीरा पर वैधव्य कै दु:ख का पहाड़ टूट पड़ा। मीरा के बचपन में ही उनकी माता का देहांत हो गया था।

    मीरा बाल्यकाल से ही कृष्णा भक्ति में लीन रहती थी, पर पति की मृत्यु के बाद तो मीरा ने अपना सारा जीवन कृष्ण- भक्ति में ही लगा दिया। वे साधु-संतों के सत्संग में रहने लगीं। शीघ्र ही उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैल गई। राजघराने की एक रानी का साधु - संतो से मिलना-जुलना और कीर्तन करना उनके परिवार वालों को अच्छा नहीं लगा। उन्हें तरह-तरह की यातनाएँ दी गईं। अंत में तंग आकर मीरा न मेवाड़ छोड़ दिया और मथुरा-वृंदावन की यात्रा करते हुए द्वारिका जा पहुँची। वहाँ वे भगवान् रणछोड़ की आराधना में लीन हो गई।

    मीरा लौकिक बंधनों से पूर्णत: मुक्त होकर निश्चित भाव से साधु-संगति और कृष्ण पूजा-उपासना में अपना समय व्यतीत करने लगीं। ऐसी परिस्थिति में मीरा गा उठीं-

    “मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरी न कोई

    जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई।।”

    लौकिक सुहाग मिटा तो मीरा ने अलौकिक सुहाग पा लिया। वह तो ‘पग घुँघरूँ बाँध मीरा नाची रे’ की अवस्था में आ गईं। देवर राणा विक्रमादित्य ने जहर का प्याला भेजा और मीरा उसे -गिरधर का चरणामृत समझकर पी गई। ऐसा अनुमान है कि मीरा ने 1546 ई. के आस-पास अपना नश्वर शरीर त्यागा।

    रचनाएँ-मीरा ने मुख्यत: स्फुट पदों की ही रचना की है। ये पद ‘मीराबाई की पदावली’ नाम से संकलित हैं। इस पदावली से ही कुछ पद छाँटकर लोगों ने ‘राम मूलार’, ‘राग सोरठ संग्रह’, राग गोबिंद’ आदि संकलन चना डाले। सच यही है कि भिन्न-भिन्न रागनियों में गाए जाने वाली भक्तिपूर्ण ‘पदावली’ मीरा की प्रामाणिक रचना है।

    साहित्यिक विशेषताएँ:

    भक्ति- भावना-मीरा की भक्ति मार्धुय भाव की कृष्णा भक्ति है। इस भक्ति में विनय भावना , वैष्णवी प्रपत्ति, नवधा भक्ति के सभी अंग शामिल हैं। कृष्णा प्रेम में मतवाली मीरा लोक-लाज, कुल-मर्यादा सव त्यागकर, ढोल बजा-बजाकर भक्ति के राग गाने लगी। वह कहतीं-

    “माई गई! मैं तो लिया गोविंदा मोल।

    कोई कहै छानै, कोई कहै छुपकै, लियो री बजता ढोल।”

    मीरा के लिए राम और कृष्ण के नाम में कोई अंतर नहीं है। एक स्थल पर वह कहती हैं-

    “राम-नाम रस पीजै।”

    मनवा! राम-नाम रस पीजें।”

    + + +

    “मेरौ मन राम-हि-राम रटै

    राम-नाम जप लीजै प्राणी! कोटिक पाप कटै।”

    मीरा ने आँसुओं के जल से जो प्रेम-बेल बोई थी. अब वह फैल गई है और उसमें आनंद- फल लग गए हैं। मीरा के लिए जप - तप, तीर्थ आदि सब साधन व्यर्थ थे। उनके लिए तो प्रेम- भक्ति ही सार -तत्व है। वे कहती हैं -

    “भज मन चरण कँवल अविनासी।

    कहा भयौ तीरथ ब्रत कीन्हे, कहा लिए करवत कासीं।”

    मीरा तो अपने साँवरे के रंग में सराबोर हो गई है--

    “मैं तो साँवरे के रंग राँची।

    साजि सिंगार बांधि पग घुँघरूँ लोक लाज तजि नाची।”

    कवयित्री की कामना है कि उसके प्रिय कृष्ण उसकी आँखों में बस जाएँ-

    “बसी मेरे नैनन में नंदलाल

    मोहनि मूरति साँवरि सूरति नैणां बने बिसाल।

    अधर सुधारस मुरली राजति उर बैजंती माल।।”

    मीरा के पदों की कड़ियाँ अश्रुकणों से गीली हैं। सर्वत्र उनकी विरहाकुलता तीव्र भावाभिव्यंजना के साथ प्रकट हुई है। उनकी कसक प्रेमोन्माद कै रूप में प्रकट होती है। उनका उन्माद तल्लीनता और आत्मसमर्पण की स्थिति तक पहुँच गया है। प्रकृति की पुकार में उनका दर्द और बढ़ जाता है --

    “मतवारो बादर आयै।

    हरि को सनेसो कबहु न लायै।।”

    मीरा की भक्ति में उद्दामता है, पर अंधता नहीं। उनकी भक्ति के पद अतिरिक गढ़ भावों के स्पष्ट चित्र हैं। मीरा के पदों में श्रृगार रस के संयोग और वियोग दोनों पक्ष पाए जाते हैं, पर उनमें विप्रलंभ शृंगार की प्रधानता है। उन्होंने शांत रस के पद भी रचे हैं। उन्होंने ‘संसार को चहर की बाजी’ कहा है, जो साँझ परे उठ जाती है।

    मीरा की भक्ति के सरस-सागर की कोई थाह नहीं है, जहाँ जब तक चाहो, गोते लगाओ। इसमें रहस्य-साधना भी समाई हुई है। संतों के सहज योग को भी मीरा ने अपनी भक्ति का सहयोगी बना लिया था-

    “त्रिकुटी महल में बना है झरोखा तहाँ तै झाँकी लाऊ री।”

    कलापक्ष: मीरा के पदों में उनकी अनुभूति के सहज उच्छ्वास हैं। उन्हें अनुमान भी न था कि उनके ये उच्छ्वास पदों के रूप में काल के अक्षय भंडार के रूप में संकलित किए जाएँगे। उन्हें अलंकारों के आवरण में भावों को छिपाने की कोई आवश्यकता नहीं थी। उनका भावपक्ष इतना सबल है कि कलापक्ष का अभाव उसके नैसर्गिक सौंदर्य को साकार कर देता है। मीरा का काव्य तीव्र भावानुभूति का काव्य है, उसमें भाषा के सजाने-सँवारने की आवश्यकता ही नहीं रह जाती।

    मीरा के पदों की भाषा सरल है। उनकी भाषा में राजस्थानी मिश्रित ब्रजभाषा का प्रयोग मिलता है। कहीं-कहीं गुजराती के शब्द भी आ गए हैं।

    मीरा के काव्य में कई जगह अपने आप उपमा, रूपक, अतिश्योक्ति, विरोधाभास आदि अलंकार आ गए हैं- ‘दीपक जोऊँ ज्ञान का’, ‘सील संतोस को केसर घोली प्रेम-प्रीत पिचकारी’, ‘विरह-समुंद में छोड़ गया, नेह री नाव चढ़ाव।’ आदि में अलंकारों का महज प्रयोग दिखाई देता है।

    मीरा के पद गीति-काव्य का चरम उत्कर्ष है। ये पद संगीतज्ञों के कंठहार बने हुए है और आज तक सहृदयों को रससिक्त कर रहे हैं। गीतिकाव्य में मीरा आज भी अप्रतिम हैं। प्रेमोन्माद, तीव्रता और तन्मयता की त्रिवेणी का पूरा वेग उनकी रचनाओं में परिलक्षित होता है। “हे री मैं तो प्रेम दीवाणी। मेरी दरद न जाने कोय” की आत्माभिव्यक्ति अपनी तल्लीनता और तन्मयता कै लिए प्रमाणस्वरूप है।

    Question 2
    CBSEENHN11012202

    ‘मेरे तो गिरधर गोपाल’ पद का सार अपने शब्दों में लिखिए।

    Solution

    यह पद कृष्ण भक्त कवयित्री मीराबाई द्वारा रचित है। इस पद में मीराबाई कहती है कि श्रीकृष्ण के अतिरिक्त उनका कोई दूसरा आराध्य देव नहीं है। केवल श्रीकृष्ण ही मेरे प्राणाधार हैं। जिस श्रीकृष्ण के सिर पर मोर-मुकुट बँधा हुआ है, श्रीकृष्ण का वही रूप मेरा पति है अर्थात् मोर मुकुट धारण किए हुए श्रीकृष्ण ही मेरा पति है। उस श्रीकृष्ण की प्राप्ति के लिए मैंने अपने कुल की परम्पराओं को छोड़ दिया। अब मेरा कोई क्या कर सकता है। मैंने साधु --संतों के पास बैठ-बैठकर अपनी लोक-लज्जा का भी परित्याग कर दिया है। मैंने श्रीकृष्णा के प्रति प्रेम की बेल को बो दिया है और उसे आँसुओं के जल से सींच-सींचकर विकसित किया है। भाव यह है कि श्रीकृष्ण के वियोग की पीड़ा को सहन करते हुए मैंने निरंतर आँसू बहाते हुए अपनी उस प्रेम बेल को पोषित किया है। अपने इस प्रयत्न की सार्थकता बताते हुए मीरा कहती है कि अब तो वह प्रेम रूपी बेल फैल गई है और उसमें आनंद रूपी फल भी फलने लगे हैं। मैं भक्ति भावना को देखकर प्रसन्न होती हूँ और लोग सांसारिकता की विषय भोगों की बात करते हैं तो मैं रोती हूँ। वह ईश्वर से प्रार्थना करती हुई कहती हैं कि हे गिरिधर लाल या गिरिधारी लाल मैं तो तुम्हारी दासी हो गई हूँ अब तुम्हीं मेरा उद्धार करो या मुझे भवसागर पार कराओ।

    Question 3
    CBSEENHN11012203

    ‘पद घुँघरू बांधि मीरां नाची’ पद का सार अपने शब्दों में लिखिए।

    Solution

    इस पद में मीरा अपने पैरों में घुँघरू बाँधकर अपने प्रिय कृष्ण के सम्मुख नाचती है। वह अपने नारायण की हो गई है। लोग भले ही उसे पागल कहें या उसे कुल का नाश करने वाली कहें, वह इन बातों की परवाह नहीं करती है। मीरा के देवर राणा ने उसे मारने के लिए जहर का प्याला भेजा, तो मीरा उसे पीकर हँसने लगी। वह उसके लिए अमृत के समान ही गया। उस विष के प्याले को पीकर वह अमर हो गई है। मीरा को उसके प्रभु मिल गए हैं। उन्हें सहजता से प्राप्त किया जा सकता है।

    Question 4
    CBSEENHN11012204

    मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई

    जा के सिर मोर-मुकट, मेरो पति सोई

    छांड़ि दयी कुल की कानि, कहा करिहै कोई?

    संतन ढिग बैठि-बैठि, लोक-लाज खोयी

    असुवन जल सींचि- सींचि, प्रेम-बेलि बोयी

    अब त बेलि फैलि गई, आणंद-फल होयी

    दूध की मथनियाँ बड़े प्रेम से विलोयी

    दधि मथि मृत काढ़ि लियो, डारि दयी छोयी

    भगत देखि राजी हुयी, जगत देखि रोयी

    दासि मीरा लाल गिरधर! तारो अब मोही।

    Solution

    प्रसंग- प्रस्तुत पद कृष्णभक्त कवयित्री मीराबाई द्वारा रचित है। मीराबाई ने श्रीकृष्ण को अपना पति मानकर उनकी भक्ति की है। इसके लिए उन्होंने किसी की भी परवाह नहीं की। अब तो फल प्राप्ति का समय आ गया है!

    व्याख्या-मीराबाई कहती हैं-मेरे तो गिरिधर गोपाल अर्थात् श्रीकृष्ण ही सर्वस्व हैं। ‘अन्य किसी से मेरा कोई संबंध नहीं है। जिस कृष्ण के सिर पर मोर-मुकुट है, वही मेरा पति है। मैं श्रीकृष्ण को ही अपना पति (रक्षक) मानती हूँ। इस भक्ति के लिए मैंने अपने माता-पिता, भाई-बंधु आदि सभी को छोड़ दिया है। वे मरे कोई नहीं होते। मैंने तो अपने वंश-परिवार की मर्यादा का भी त्याग कर दिया है, अब मेरा कोई कुछ नहीं कर सकता अर्थात् मुझे किसी की चिंता नहीं है। मैंने तो लोक-लज्जा -को खोकर संतों के निकट बैठना स्वीकार कर लिया है। साधु-सन्तों के पास बैठने से यदि लोक-लज्जा जाती है तो भले ही चली जाए, मुझे कोई अंतर नहीं पड़ता। मैंने तो अपनै आँसुओं रूपी जल से प्रभु-प्रेम रूपी बेल को बोया है। अब तो यह प्रेम बेल फलने-फूलने लगी है और इसमें आनंद रूपी फल आ रहा है। कवयित्री कहती है कि मैंने दूध की मशनियाँ को बड़े प्रेम से मथा है। इसमें दही को मथकर घी तो निकाल लिया और छाछ को छोड़ दिया है अर्थात् सार-तत्व को तो ग्रहण कर लिया और सारहीन अंश को छोड़ दिया है। मैं तो भक्तों को देखकर प्रसन्न होती हूँ और संसार के रंग-ढंग को देखकर रोती हूँ अर्थात् दुखी होती हूँ।

    मीरा अपने प्रभु से प्रार्थना करती है कि मैं तो आपकी दासी हूँ। आप मुझे इस भवसागर से पार उतारिए।

    विशेष: 1. इस पद में मीरा कृष्ण-प्रेम में निमग्न प्रतीत होती है। उसने कृष्णा को ही अपना सर्वस्व मान लिया है। वह इसमें गर्व का अनुभव करती हैं और उसे समाज की कोई परवाह नहीं है। वह संतों की संगति में रहती है। कृष्ण प्रेमकी बेल को आँसुओं से सींचकर उसनें आनंद का फल प्राप्त किया है।

    2. इस पद में अनुप्रास और रूपक अलंकार की छटा रखतें ही बनती है-मोर-मुकुट, कुल की कानि कहा करि, लोक लाज में अनुप्रास, प्रेम-बेलि, आणंद फल में रूपक है।

    3. बैठि-बैठि, सींचि-सींचि में पुनरूक्ति प्रकाश .अलंकार है।

    4. माधुर्य गण का समावेश है।। राजस्थानी और ब्रजभाषा का मिला-जुला रूप प्रयुक्त हुआ है।

    Mock Test Series

    Sponsor Area

    Sponsor Area

    NCERT Book Store

    NCERT Sample Papers

    Entrance Exams Preparation